खंडवा। रविवार को घोघलगांव जल सत्याग्रह को एक माह पूरा हो गया, लेकिन सुलह समझौते की कोई बात आगे नहीं बढ़ी। सरकार अपनी बात पर अड़ी है और आंदोलनकारी अपनी बात पर। उनका आरोप है कि सरकार जो जमीन दे रही है वो बंजर है। उन्हे सिंचित जमीन के बदले सिंचित जमीन चाहिए। आंदोलनकारियों के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट होती जा रही हैं। इस बीच रविवार को पुलिस और प्रशासन का कोई मूवमेंट शाम तक घोघलगांव में नहीं रहा।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की वरिष्ठ कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित व रमेश तिरोले ने बताया कि आंदोलनकारियों के पैर गलने लगे हैं। पैर लहूलुहान होकर आंदोलनकारियों की तबीयत बिगड़ रही है। इसके बाद भी सरकार की बेरूखी और असंवेदनशीलता से लोगों में आक्रोश पनप रहा है।
सुश्री पालित के अनुसार दूर-दूर से आ कर लोगों ने जल सत्याग्रह को अपना समर्थन दिया है। साथ ही देश के सौ से अधिक बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस मसले को सुलझाने की दिशा में सार्थक पहल करने का आग्रह किया है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन का आरोप है कि सत्याग्रह कर रहे लोगों को जबरन उठाने की पुलिस और प्रशासन की तैयारी चल रही है। इससे सरकार की लोगों के प्रति कार्य करने की इच्छा शक्ति की विफलता ही उजागर होती है।
ऐसा निकला महीना
- 11 अप्रैल से शुरू हुआ जल सत्याग्रह।
- 15 अप्रैल को नबआं के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्य सचिव से मुलाकात की।
- 23 अप्रैल को एनवीडीए के मंत्री लालसिंह आर्य से चर्चा की गई।
- 25 आंदोलन को आप के राष्ट्रीय नेता कुमार विश्वास पहुंचे।
- 30 अप्रैल को सत्याग्रह को समर्थन करते हुए बड़ी संख्या में विस्थापित पानी में उतरे।
- 4 मई को नरसिंहपुर में विस्थापितों ने जमीन देखी।
- 6 मई को विस्थापितों ने भोपाल में प्रदर्शन किया।