शर्मनाक: शौचालय के लिए भी अदालती फरमान

राकेश दुबे@प्रतिदिन। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को लेकर देश में माहौल बनाने में जुटी  केंद्र सरकार के हाथों में उच्चतम न्यायलय का आदेश पहुंच चुका है, पर इस पर कोई आदेश या अध्यादेश की तैयारी नहीं है | क्योंकि मामला बच्चों का है | शौचालयों का साफ होना भी किसी बच्चे की अच्छी सेहत के लिए जरूरी पहलू है?  इसलिए मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय ने स्कूलों में शौचालयों और सफाई की व्यवस्था को लेकर सख्त रुख अख्तियार किया है|

न्ययालय ने  कहा कि स्कूलों में महज ढांचे को शौचालय के रूप में देखने और फिर उसे भुला देने के सोच के चलते ही यह समस्या अब तक बनी हुई है। यह छिपा नहीं है कि महज एक ढांचा खड़ा कर अक्सर उसे शौचालय के रूप में पेश कर दिया जाता है। जबकि अगर उसकी नियमित रूप से साफ-सफाई न हो तो उसका कोई मतलब नहीं रह जाता। पिछले कई सालों से इस समस्या के निदान संबंधी सरकारी दावों की हकीकत इसी से समझी जा सकती है कि अब अदालत ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों की ओर से इसके लिए बनाई गई योजनाओं की समीक्षा करने का फैसला किया है।

शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुए भी कई साल गुजर चुके हैं और सरकारें शिक्षा-व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव लाने के दावे कर रही हैं। मगर सवाल है कि अगर बहुत सारे बच्चे महज पीने के पानी और शौचालयों के अभाव या उनमें गंदगी के चलते स्कूल नहीं जाते या बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? क्या यह सरकारों के लिए शर्मिंदगी का विषय नहीं होना चाहिए कि स्कूलों में बहुत सारी लड़कियों को शौचालय के अभाव में जोखिम उठा कर खुले मैदानों में जाना पड़ता है या फिर वे घर लौट जाती हैं? कई अध्ययनों में यह तथ्य उजागर हो चुका है कि लड़कियों के बीच में पढ़ाई छोड़ने की बड़ी वजहों में एक यह भी है कि उनके लिए स्कूलों में अलग शौचालयों का इंतजाम नहीं होता। विचित्र है कि जो काम सरकारों की जिम्मेदारी है और उसके लिए अपनी ओर से पहल करनी चाहिए, उसके लिए वे अदालतों की फटकार का इंतजार करती हैं!

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com


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