MP के इस गांव में स्थापित हैं पांडवों की कुलदेवी, नवमी को गुफा से बाहर आतीं हैं

मुरैना। इन दिनों पूरा देश देवी भक्ति में लीन है। नवरात्रि में हर जगह लोग माता के जयकारे के साथ पूजा व व्रत कर रहे हैं। हर देवी की कोई न कोई कहानी और दंतकथाएं प्रचलित हैं। महाभारत काल से जुड़ी हुई कुछ ऐसी ही कहानी है बहरारे वाली माता की। भारत में यूं तो माता के कई प्राचीन मंदिर है लेकिन पहाड़गढ़ के जंगलो में मां बहरारे वाली माता विराजमान हैं। नवरात्र के दिनों में मां बहरारे की मूर्ति रोज बड़ा रूप धारण करती है और नवमी के दिन मां की मूर्ति गर्भ गुफा से बाहर आ जाती है। बहरारे वाली माता के मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां पाडंवों ने अज्ञातवाश के दौरान अपनी कुलदेवी की पूजा की थी और इस पूजा के दौरान कुलदेवी एक बड़ी शिला में समा गईं थीं।

उस शिला को कई बार स्थानीय लोगों ने मूर्ति रूप देने का प्रयास किया लेकिन सभी कोशिशें बेकार साबित हुईं। बताया जाता है कि यहां माता को पांडव लाये थे और माता की प्रतिष्ठा कराई थी। उस वक्त यहां बहुत घना जंगल था और दूर-दूर तक कोई भी नहीं रहता था। उसके बाद सम्बत 1152 में विहारी ने बहरारा बसाया था। तदुपरांत सम्वत 1621 में खांडेराव भगत ने बहरारा माता के मंदिर का निर्माण कराया था। तब से लेकर आज तक मांदिर परिसर को श्रद्धालुओं के सहयोग से विकसित किया गया है और हर नवरात्रि पर मेला और भक्तों का तांता लगा रहता है।

बताया जाता है कि पांडवों की पूजा के बाद प्रसन्न हुई कुलदेवी ने अर्जुन से यथेच्छ वर मांगा। कुलदेवी ने अर्जुन से कहा कि हे अर्जुन, मैं तुम्हारी भक्ति और पूजा से खुश हूं। बताओं तुम्हे क्या वरदान चाहिए। तब अर्जुन ने कहा हे मां, मुझे आपसे वरदान में ज्यादा कुछ नहीं चाहिए, न ही मैंने आपकी पूजा किसी वरदान के लिए की है। मेरी तो बस ये इच्छा है कि समय और नीति के अनुसार हम पांचों भाईयों को 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवाश का समय व्यतीत करना है, इसलिए मैं चाहता हूं कि आप प्रसन्नता पूर्वक मेरे साथ चलें। 

अर्जुन से प्रसन्न होकर माता ने दिया था वरदान
तब कुलदेवी ने कहा कि हे अर्जुन मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत खुश हूं। तुम मेरे कृपापात्र बन गए हो, मैं चाहते हुए भी तुम्हें मना नहीं कर सकती, अर्जुन मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूं पर मेरी एक शर्त है। कि तुम आगे चलोगे और मैं पीछे। जहां भी तुमने मुझे पीछे मुड़कर देखा मैं वहीं पर स्थाई रूप से विराजित हो जाऊंगी। अर्जुन ने अपनी कुल देवी की बात मान ली और वह आगे-आगे चल दिए। 

पाडंवों के पीछे मुड़ते ही शिला बन गई कुलदेवी
काफी समय चलने के बाद जब अर्जुन जंगलों के रास्ते से गुजरते हुए विराट नगरी पहुंचे तो उन्हें लगा कि देख लूं कुलदेवी कहीं पीछे तो नहीं रह गई। तभी अर्जुन ने पीछे मुड़कर देख लिया। अर्जुन के पीछे मुड़ते ही हस्तिनापुर से पीछे-पीछे चल रही कुलदेवी एक शिला में प्रवेश कर गईं। तब अर्जुन को कुलदेवी को दिया हुआ वचन याद आया। अर्जुन ने बार-बार कुलदेवी से विनती की लेकिन कुलदेवी ने कहा, अर्जुन अब मैं यही पर इस शिला के रूप में ही रहूंगी। तब से आज तक पांडवों की कुल देवी आज भी शिला के रूप में ही पूजी जाती है।

माता के चरणों में हैं कभी न सूखने वाला जलकुंड
मुरैना से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी एवं कैलारस से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर माता बहरारे का मंदिर स्थित हैं। यहां प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालू माता के दर्शन करने आते है। बहरारे वाली माता मंदिर से लोगों की अटूट श्रद्धा और आस्था जुड़ी हुई है मंदिर में माता के चरणों में जल कुंड है। इसका जल कभी भी नहीं सूखता है। इस जल को ग्रहण करने वालों की मनोकामना पूर्ण होती है और सारे रोग दोष क्लेश नष्ट हो जाते है। 

चैत्र और क्वार नवरात्रि में विशेष मेले का अयोजन
माता के मंदिर की महिमा दूर-दूर तक फैली है। मंदिर के दर्शन करने के लिये श्रद्धाभाव से लोग पैदल और कनक दंड देते आते है। साथ ही माता मंदिर पर चैत्र और क्वार के माह में नवरात्रि में विशेष मेले का अयोजन किया जाता है। मां के दरबार में भवबंधन से मुक्ति मिलती है। यहां पर मान्यता है कि जो लोग मन्नत मांगते है वह पूरी होती है। इन सभी मान्यताओं के कारण से यहां प्रतिमाह माता का मंदिर सजाया जाता हैं।

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