मध्यप्रदेश के आयुर्वेद कॉलेजों की मान्यता खतरे में

भोपाल। मध्यप्रदेश के ज्यादातर सरकारी आयुर्वेद कॉलेजों की मान्यता खतरे में आ गई है। इन कॉलेजों के पास स्टूडेंट्स तो हैं लेकिन पढ़ाने के लिए प्रोफेसर्स नहीं है, इसी के चलते आगामी सत्र 'जीरो ईयर' घोषित हो सकता है।

सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआईएम) ने साफ कहा है कि आगामी शैक्षणिक सत्र से सिर्फ उन्हीं कॉलेजों को मान्यता मिलेगी, जो 100 फीसदी मापदंडों पर खरा उतरेंगे। सीसीआईएम की सख्ती के बाद आयुर्वेद कॉलेजों की नींद उड़ गई है। इसकी वजह यह कि किसी भी कॉलेज में मापदण्डों के मुताबिक शिक्षक नहीं है। सबसे ज्यादा कमी प्रोफेसरों की है। इनके 88 में से महज 13 पद भरे हैं। उनकी कमी रीडरों से पूरी हो सकती है, लेकिन रीडर के भी लगभग 40 पद खाली पड़े हैं।

दो साल में पूरी नहीं की कमियां
सीसीआईएम ने 2012 में साफ कहा था कि दिसंबर 2014 के मापदंडों में कोई छूट नहीं दी जाएगी। इसके बाद भी शासन ने कमियां पूरी करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाया। शिक्षकों के 2 साल पहले खाली पद आज तक नहीं भरे गए हैं। सुविधाओं की कमी के चलते कुछ कॉलेजों में ओपीडी और भर्ती मरीजों की संख्या भी मापदंड के अनुसार नहीं है।

15 के बाद शुरू होगा कॉलेजों का निरीक्षण
शैक्षणिक सत्र 2015-16 के लिए आयुर्वेद कॉलेजों का निरीक्षण 15 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। ऐसे में सरकार के पास कमियां पूरी करने के लिए पर्याप्त समय भी नहीं बचा है। शिक्षकों की कमी पूरी करने के लिए डीपीसी की जानी है, लेकिन टीम के आने के पहले डीपीसी कर प्रोफेसर और रीडर्स के खाली पदों को भरना आसान नहीं है।

60 से 100 सीटों के लिए मापदण्ड
शिक्षकों की संख्या-42
मार्डन मेडिसीन के शिक्षक- 8
योग का शिक्षक - 1
रोजाना ओपीडी - 120

भर्ती मरीजों की संख्या कुल बिस्तर की 40 फीसदी

खुशीलाल आयुर्वेद कॉलेज पर भी संकट
प्रदेश के का सबसे अच्छा संस्थान भोपाल का पंडित खुशीलाल शर्मा आयुर्वेद कॉलेज माना जाता है, लेकिन आगामी सत्र में इस कॉलेज की मान्यता भी अधर में है। कॉलेज में काय चिकित्सा और शालक्य में प्रोफेसर नहीं हैं। एक लेक्चरर का पद खाली है। कॉलेज के प्राचार्य डॉ.उमेश शुक्ला ने कहा कि अस्पताल में ओपीडी और भर्ती मरीजों की संख्या सीसीआईएम के मापदण्डों के अनुसार है।

लेक्चरर के पद भरने की कोशिश की जा रही है। डीपीसी कर रीडर और प्रोफेसर के पद भरे जाएंगे।
डॉ. नवनीत मोहन कोठारी,
संचालक, आयुष

आयुर्वेद कॉलेजों में सालों से कमियां रही हैं। शासन एलोपैथी की तरह आयुर्वेद में भी ध्यान दे तो दिक्कत नहीं आएगी। खाली पदों को भरने के लिए अन्य राज्यों में वाक-इन-इंटरव्यू चल रहे हैं। मप्र में भी वही करना चाहिए।
डॉ.राकेश पांडेय,
अध्यक्ष, आयुष मेडिकल एसो.

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