लोकतंत्र की सुदृढ़ता हेतु क्या चुनाव आयोग निष्पक्ष व साधिकार नहीं होना चाहिए? | my opinion by brijendra dwivedi

ब्रजेन्द्र द्विवेदी। माना जाता है कि देश में निष्पक्ष तथा ईमानदार चुनावों के लिए हमारे चुनाव आयोग की उपादेयता और कार्यक्षमता जगत्प्रसिद्ध है। विश्व के कतिपय देशों की सरकारों ने हमारे चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली तथा कार्य व्यवहार की जानकारी प्राप्त करने की कोशिशें की हैं। पर देश के लोकतंत्र की आयु जैसे-जैसे बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे हमारे राजनेता और राजनैतिक दल बेईमानी के प्रकरणों में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। अब तो देश की सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की दाण्डिक क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता भी जताई है।

देखा गया है कि श्री टी.एन. शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर देश से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की दृष्टि से जो ताकत दिखाई थी वह कहीं ओर से नहीं आई थी। संसद द्वारा प्रदत्त शक्तियों का सही तरीके से पालन करते हुए ही श्री शेषन ने चुनाव आयोग को इतना बलशाली बना लिया था कि बेईमान तथा भ्रष्ट नेता और उनके दल मजबूर हो गए थे। श्री शेषन जैसी इच्छा शक्ति आयोग के बाद के अधिकारियों ने क्यों नहीं दिखाई।

इसीलिए वे जाने-अनजाने राजनैतिक कुचेष्टाओं के शिकार बनने लगे। आज क्या सत्ताधारी दलों के नेताओं के विरुद्ध आचार संहिता भंग करने की शिकायतों पर चुनाव आयोग ने जो सजाएँ दी हैं क्या वे हास्यास्पद नहीं हैं? इससे क्या प्रतीत नहीं होता है कि आयोग सत्ताधारी दल के प्रति ज्यादा उदार है। धमकी भरे लालच देने वाले और शेख चिल्ली की तरह सब्जबाग दिखाने वाले कतिपय भाषणों पर राजनैतिक दलों के दोषी उम्मीदवारों का नामांकन रद्द होने जैसा दंड नहीं दिया जाना चाहिए? उत्तर प्रदेश में एक कतिपय नेता द्वारा अश्लील संकेतों का भाषण देने पर उसे चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य होने का दंड नहीं दिया जाना चाहिए था। वोट नहीं देने पर किसी वर्ग विशेष को विकास कार्यक्रमों से मरहूम किए जाने की धमकी से लोकतंत्र की कौन सी ताकत बढ़ रही है?

यहाँ शिकायतें करने पर उनका परीक्षण करने के नाम पर आयोग द्वारा अनावश्यक विलंब करना क्यों जरूरी है? इससे आरोपी नेता कैसे हतोत्साहित होंगे? यह सच है कि लोकतंत्र में कानूनी शक्तियाँ विधायिका यानी संसद से ही मिलती है। लोकतंत्र का यह क्या मजाक है कि निष्पक्ष चुनावों के संचालन के लिए जरूरी विधिक शक्तियों के लिए उन्हीं नेताओं का मुंह देखते हैं जो येन केन प्रकारेण संसद या विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि आरोपी स्वयं कहे कि मैंने लोकतंत्र की कमियों का सहारा लेकर जनतंत्र का उपहास किया है? मुझे गिरफ्तार करें?

एक सुझाव है कि चुनाव आयोग को सही माने में शक्तिशाली बनाने के लिए उसका गठन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की समिति द्वारा तैयार पैनल में से किया जाए। फिर लोकसभा और राज्यसभा मिलकर सर्वसम्मति से मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य सहयोगी आयुक्तों की नियुक्ति की जाए। उन्हें पर्याप्त दाण्डिक अधिकार और सभी संभव साधन उपलब्ध कराए जाएं।
इस चुनाव आयोग की कार्य प्रणाली की देख रेख हेतु भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्यायविदों की एक समिति का गठन हो, जिसे गड़बड़ी करने वाले आयुक्त व अन्य अधीनस्थ अधिकारी के विरुद्ध भी कानूनी कार्यवाही करने का अधिकार हो।
(लेखक ब्रजेन्द्र द्विवेदी जनसंपर्क विभाग के पूर्व संयुक्त संचालक हैं। मो. ९४२५०९२२४४)
If you have any question, do a Google search

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!