राकेश दुबे@प्रतिदिन। वित्तीय मामलों में शोध करने वाली संस्था 'ग्लोबल फाइनैंशल इंटेग्रिटी' (जीएफआई) के आंकड़े कह रहे हैं कि भारत में हर साल देश में पैदा होने वाला काला धन सरकार की ओर से शिक्षा पर खर्च किए जाने वाले बजट से 120 प्रतिशत और स्वास्थ्य पर किए जाने वाले खर्च से 100 प्रतिशत अधिक यानी दोगुना है। अगर यह सद्कार्य में लग जाये तो, क्या कहना ? दुनिया के 82 विकासशील देशों पर किए गए शोध के आधार पर तैयार जीएफआई की इस रिपोर्ट का एक चौंकाने वाला निष्कर्ष यह है कि काले धन का गरीबी से गहरा नाता है। ऐसे देशों में जहां से काले धन की निकासी सबसे अधिक है, शिक्षा और मानव विकास का स्तर सबसे खराब है। कालेधन की अर्थव्यवस्था को समझने और उस संकट को दूर करने की एक अलग दृष्टि की जरूरत है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत से 2003 से 2012 के बीच हर साल करीब 44 अरब डॉलर की रकम काले धन के रूप में बाहर चली गई। यानी इस एक दशक में कुल 440 अरब डॉलर की रकम देश से बाहर जाकर अवैध खातों में जमा हो गई या उसका अवैध तौर पर निवेश किया गया। जीएफआई के मुताबिक काला धन बड़ी कंपनियों की ओर से सही ढंग से अंकेक्षित न किए जाने की वजह से पैदा होता है। भारत में यह आंकड़ा 98 प्रतिशत है, जहां अधिकतर कारोबार में ईमानदारी से देयक और अंकेक्षण का आभाव है ।
कालाधन वापस लाना एक चुनावी नारा बना था, पर जनता ने इसे एक राष्ट्रीय अजेंडा मान लिया था। अब लोग चाहते हैं कि किसी भी सूरत में काले धन पर रोक लगे। केंद्र सरकार विदेशों में जमा कालाधन वापस लाकर उसे जनता में बांटने का वादा तो पूरा नहीं कर पाई है, लेकिन जनता के दबाव में उसने कालेधन को लेकर एक कानून जरूर बनाया है जिसके तहत विदेश में अवैध धन रखने वालों के लिए 10 साल तक की कड़ी सजा और जुर्माना तथा 120 प्रतिशत तक कर वसूलने का प्रावधान है लेकिन सरकार का एक तबका ही इस कानून पर सवाल उठा रहा है। सरकार ने बेनामी ट्रांजैक्शन संशोधन बिल 2015 तैयार किया है जिसके कानून बनने पर बेनामी प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त और अवैध रूप से की गई खरीदारी पर रोक लग सकेगी।
इसके तहत कोई व्यक्ति अगर बेनामी कानून का उल्लंघन करते हुए पाया गया, तो न केवल उसकी संपत्ति जब्त होगी, बल्कि उसे सजा भी दी जा सकेगी। इस तरह के और भी उपाय किए जा रहे हैं। वैसे आम धारणा है कि भारत में काले धन का सबसे बड़ा अड्डा राजनीति है। सरकार अगर इस मुद्दे को लेकर वाकई गंभीर है तो उसे राजनीतिक चंदे को लेकर कोई पारदर्शी व्यवस्था बनानी चाहिए। लेकिन जीएफआई के संकेतों को समझते हुए शिक्षा और मानव विकास के क्षेत्र में भी कदम उठाने होंगे। नौकरशाही के भ्रष्टाचार के कारण इन मामलों में विकास की रफ्तार बेहद धीमी है। इसलिए यह सुनिश्चित करना होगा कि सरकारी स्कीमें जमीन पर भी उतरें।