आलोक संजर: इसे कहते हैं सेटिंग की पॉलिटिक्स

भोपाल। मध्यप्रदेश की बहुप्रतीक्षित लोकसभा सीट भोपाल से आलोक संजर का नाम फाइनल हो गया है और इसी के साथ एक बार फिर प्रमाणित हो गया कि भाजपा में सेटिंग की सिटिंग को ज्यादा महत्व दिया जाता है। आलोक संजर भाजपा के वो नेता हैं जो पार्षद के बाद सीखे सांसद के लिए चुनाव लड़ेंगे।

मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से भोपाल इकलौती ऐसी सीट है जिसके प्रत्याशी चयन में भाजपा हाईकमान को भी पसीने आ गए थे। भाजपा में राजनीति के संत कैलाश जोशी ने भाजपा के पितामह लालकृष्ण आडवाणी के लिए भोपाल सीट से अपनी दावेदारी छोड़ी थी। यह वो सीट है जहां से मप्र की पूर्व सीएम उमा भारती चुनाव लड़ना चाहतीं थीं, जबकि सुषमा स्वराज का नाम भी इसी सीट के लिए चलाया गया था। इसके अलावा सीएम शिवराज सिंह चौहान की पत्नि साधना सिंह का नाम भी इसी सीट से शामिल किया गया था। इस सीट की कथा यहीं नहीं रुकती। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर अपनी पुत्रवधु एवं भोपाल महानगर की महापौर कृष्णा गौर के लिए भी इसी सीट से टिकिट मांग रहे थे। इसके अलावा और कितने नाम चले, इसकी गिनती भी नहीं है, लेकिन एक बात तय थी कि भाजपा के लिए यह सीट व्हीआईपी हो गई थी और आलोक संजर का कहीं कोर्इ् जिक्र ही नहीं था।

जैसे ही लालकृष्ण आडवाणी का पत्ता इस सीट से साफ किया गया, राजनीति एकदम से तेज हो गई और अंतत: टिकिट एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में दिखाई दिया, जिसकी कल्पना ज्यादातर राजनैतिक पंडितों ने नहीं की थी।

आलोक संजर के विषय में यहां केवल इतना बताया जा सकता है कि वो भाजपा के नेता है एवं अपने सार्वजनिक जीवन में उन्होंने केवल एक बार पार्षद का चुनाव लड़ना है। इसके बाद वो जन जन की राजनीति से दूर हो गए थे। कई सालों बाद वो आमजन के बीच हाथ जोड़ते नजर आएंगे। अब देखना यह है कि इस डिसीजन के बाद भी क्या भोपाल की सीट भाजपा के हाथ में बनी रहेगी।

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