भोपाल इतिहास

भोपाल भारत देश में मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी है और भोपाल ज़िले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। भोपाल को झीलों की नगरी भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ कई छोटे-बडे ताल हैं । यह शहर अचानक सुर्ख़ियों मे तब आ गया जब 1984 में अमरीकी कंपनी यूनियन कार्बाइड से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के रिसाव से लगभग बीस हजार लोग मारे गये थे। भोपाल गैस कांड का कुप्रभाव आज तक वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण के अलावा जैविक विकलांगता एवं अन्य रूपों में आज भी जारी है। इस वजह से भोपाल शहर कई आंदोलनों का केंद्र है।



भोपाल में भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) का एक कारखाना है। हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र ने अपना दूसरा 'मास्टर कंट्रोल फ़ैसिलटी' स्थापित की है। भोपाल मे ही भारतीय वन प्रबंधन संस्थान भी है जो भारत में वन प्रबंधन का एकमात्र संस्थान है। साथ ही भोपाल उन छह नगरों मे से एक है जिनमे भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान खोलने का फ़ैसला लिया गया है। इसके अतिरिक्त यहाँ एक विश्वविद्यालय, अनेक इंजीनियरिंग महाविद्यालय तथा अनेक पब्लिक स्कूल हैं।



भोपाल का इतिहास
भोपाल प्राचीन नाम भूपाल है भूपाल, भू-पाल भू = भूमि, पाल=दूध। एक दूसरा मत यह है कि इस शहर का नाम एक अन्य राजा भूपाल के नाम पर पड़ा।
समय गुज़रने के साथ यह शहर उजड़ गया। 18वीं सदी में यह स्थानीय गोण्ड राज्य का एक छोटा-सा गाँव मात्र था। वर्तमान भोपाल शहर की स्थापना मुगल सल्तनत के एक अफ़्गान सरदार दोस्त मुहम्मद खान ने की थी।

मुगल साम्रज्य के विघटन का फ़ायदा उठाते हुए खान ने बेरासिया तहसील हड़प ली। कुछ समय बाद गोण्ड रानी कमलापती की मदद करने के लिए खान को भोपाल गाँव भेंट किया गया। रानी की मौत के बाद खान ने छोटे से गोण्ड राज्य पर कब्ज़ा जमा लिया।



1720-1726 के दौरान दोस्त मुहम्मद खान ने भोपाल गाँव की किलाबन्दी कर इसे एक शहर में तब्दील किया। साथ ही उन्होंने नवाब की पदवी अपना ली, और इस तरह से भोपाल राज्य की स्थापना हुई। मुगल दरबार के सिद्दीकी बन्धुओं से दोस्ती के नाते खान ने हैदराबाद के निज़ाम मीर क़मर-उद-दीन (निज़ाम-उल-मुल्क) से दुश्मनी मोल ले ली। सिद्दीकी बन्धुओं से निपटने के बाद 1723 में निज़ाम ने भोपाल पर हमला बोल दिया, और दोस्त मुहम्मद खान को निज़ाम का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ा।

मराठाओं ने भी भोपाल राज्य से चौथ (कुल लगान का चौथा हिस्सा) वसूली की। 1737 में मराठाओं ने मुगलों को भोपाल की लड़ाई में मात दी। खान के उत्तराधिकारियों ने 1818 में ब्रिटिश हुकुमत के साथ सन्धि कर ली, और भोपाल राज्य ब्रिटिश राज की एक रियासत बन गया। 1947 में जब भारत को आज़ादी मिली, तब भोपाल राज्य की वारिस आबिदा सुल्तान पाकिस्तान चली गईं। उनकी छोटी बहन बेगम साजिदा सुल्तान को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया। 1949 में भोपाल राज्य का भारत में विलय हो गया।

भौगोलिक स्थिति
भोपाल भारत के मध्य भाग में स्थित है और इसके निर्देशांक २३.२७º उ. एवं ७७.४º पू. हैं। यह विंध्य पर्वत श्रृंखला के पूर्व में है। भोपाल एक पहाड़ी इलाक़े पर स्थित है किंतु इसका तापमान अधिकतर गर्म रहता है। इसका भू-भाग ऊँचा-नीचा है एवं इसके दायरे मे कई छोटे पहाड़ हैं। उदाहरण के लिए श्यामला हिल, ईदगाह हिल, अरेरा हिल इत्यादि। यहाँ गर्मियाँ गर्म और सर्दियाँ सामान्य ठण्डी रहती हैं। बारिश का मौसम जून से ले के सितंबर-आक्टोबर तक रहता है और सामान्य वर्षा दर्ज की जाती है।

नगर निगम की सीमा २८९ वर्ग किमी है। शहरी सीमा के भीतर दो मानव निर्मित झीलें है जो संयुक्त रूप से भोज स्थल के नाम से जानी जाती हैं। बड़ी झील राजा भोज द्वारा निर्मित करवाई गई थी जिसका कुल जल ग्रहण क्षेत्र ३६१ वर्ग कि. मी. है। छोटी झील का निर्माण राजा भोज ने करवाया।



ताज-उल-मस्जिद, भोपाल
यहां का छोटा तालाब, बडा तालाब, भीम बैठका, अभ्यारण्य तथा भारत भवन देखने योग्य हैं| भोपाल के पास स्थित सांची का स्तूप भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। भोपाल से लगभग २८ किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर मन्दिर एक एतिहासिक दर्शनिय स्थल है।

लक्ष्मीनारायण मंदिर, भोपाल
भोपाल के अरेरा पहाड़ी पर पाँच दशक पूर्व स्थापित बिड़ला मंदिर वर्षों से धार्मिक आस्था का केन्द्र रहा है। मंदिर में स्थापित भगवान श्रीहरि विष्णु एवं लक्ष्मीजी की मनोहारी प्रतिमाएँ बरबस ही श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकृष्ट कर रही हैं। करीब 7-8 एकड़ पहाड़ी क्षेत्र में फैले इस मंदिर की ख्याति देश व प्रदेश के विभिन्न शहरों में फैली हुई है।

जानकारों के अनुसार इस मंदिर का शिलान्यास वर्ष 1960 में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. कैलाशनाथ काटजू ने किया था और उद्‍घाटन वर्ष 1964 में मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के हाथों संपन्न हुआ। मंदिर के अंदर विभिन्न पौराणिक दृश्यों की संगमरमर पर की गई नक्काशी दर्शनीय तो है ही, उन पर गीता व रामायण के उपदेश भी अंकित हैं।

मंदिर के अंदर विष्णुजी व लक्ष्मीजी की प्रतिमाओं के अलावा एक ओर शिव तथा दूसरी ओर माँ जगदम्बा की प्रतिमा विराजमान हैं। मंदिर परिसर में हनुमानजी एवं शिवलिंग स्थापित हैं। वहीं मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने बना विशाल शंख भी दर्शनीय है। मंदिर की स्थापना के समय पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश नाथ ने बिड़ला परिवार को शहर में उद्योग स्थापित करने के लिए जमीन देने के साथ ही यह शर्त भी रखी थी कि वह इस दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में एक भव्य तथा विशाल मंदिर का निर्माण करवाएँ। मंदिर के उद्‍घाटन के समय यहाँ विशाल विष्णु महायज्ञ भी आयोजित किया गया था, जिसमें अनेक विद्वानों व धर्म शास्त्रियों ने भाग लिया था। आज भी यह मंदिर जन आस्था का मुख्य केन्द्र बिन्दु है। जन्माष्टमी पर यहाँ श्रीकृष्ण जन्म का मुख्य आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होकर विष्णु की आराधना करते है।

भोजपुर
यह प्राचीन शहर दक्षिण पूर्व भोपाल से 28 किमी की दूरी पर स्थित है। यह शहर भगवान शिव को समर्पित भोजेश्‍वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर को पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है। भोपाल से 28 किमी. दूर स्थित भोजपुर की स्थापना परमार वंश के राजा भोज ने की थी। इसीलिए यह स्थान भोजपुर के नाम से चर्चित है। इस प्राचीन नगर को उत्तर भारत का सोमनाथ कहा जाता है। यह स्थान भगवान शिव के शानदार मंदिर और साईक्लोपियन बांध के लिए जाना जाता है। यहां के भोजेश्‍वर मंदिर की सुंदर सजावट की गई है। मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना है जिसके गर्भगृह में लगभग साढे तीन मीटर लंबा शिवलिंग स्थापित है। इसे भारत के सबसे विशाल शिवलिंगों में शुमार किया जाता है।

मोती मस्जिद, भोपाल
इस मस्जिद को कदसिया बेगम की बेटी सिकंदर जहां बेगम ने 1860 ई. में बनवाया था।

ताज-उल-मस्जिद, भोपाल
यह मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल के आठवें शासक शाहजहां बेगम के शासन काल में प्रारंभ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी।
शौकत महल, भोपाल और सदर मंजिल, भोपाल
शौकत महल शहर के बीचोंबीच चौक एरिया के प्रवेश द्वार पर स्थित है।

गोहर महल, भोपाल
झील के किनारे बना यह महल शौकत महल के पीछे स्थित है।
पुरातात्विक संग्रहालय, भोपाल
बनगंगा रोड पर स्थित इस संग्रहालय में मध्‍यप्रदेश के विभिन्‍न हिस्‍सों से एकत्रित की हुई मूर्तियों को रखा गया है।

भारत भवन, भोपाल
यह भवन भारत के सबसे अनूठे राष्‍ट्रीय संस्‍थानों में एक है। 1982 में स्‍थापित इस भवन में अनेक रचनात्‍मक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय
यह अनोखा संग्रहालय श्यामला की पहाडियों पर 200 एकड के क्षेत्र में फैला हुआ है।

भीमबेटका गुफाएं
दक्षिण भोपाल से 46 किमी. दूर स्थित भीमबेटका की गुफाएं प्रागैतिहासिक काल की चित्रकारियों के लिए लोकप्रिय हैं। यह गुफाएं चारों तरफ से विन्‍ध्‍य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका संबंध नवपाषाण काल से है। इन गुफाओं के अंदर बने चित्र गुफाओं में रहने वाले प्रागैतिहासिक काल के जीवन का विवरण प्रस्‍तुत करते हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12 हजार वर्ष पूर्व की मानी जाती है।


वायु मार्ग
भोपाल का राजा भोज हवाई अड्डा शहर से १२ कि॰मी॰ की दूरी पर है। दिल्‍ली, मुंबई, इंदौर, अहमदाबाद, चेन्नै, चंडीगण, हैदराबाद, कोलकाता, रायपुर से यहां के लिए एयर इंडिया एवम अन्य निजी एयरलाइन्स कंपनियों की नियमित उडान सेवाएँ हैं।

रेल मार्ग
भोपाल का रेलवे स्थानक देश के विविध रेलवे स्थानकों से जुडा हुआ है। यह रेलवे स्थानक भारतीय रेल के दिल्‍ली-चैन्‍नई मुख्य मार्ग पर पडता है। शताब्‍दी एक्‍सप्रेस भोपाल को दिल्‍ली से सीधा जोडती है। साथ ही यह शहर मुम्‍बई, आगरा, ग्‍वालियर, झांसी, उज्‍जैन, कोलकाता, चेन्नै, बंगलूरू, हैदराबाद आदि शहरों से अनेक रेलगाडियों के माध्‍यम से जुडा हुआ है।

सडक मार्ग
सांची, इंदौर, उज्‍जैन, खजुराहो, पंचमढी, जबलपुर आदि शहरों से आसानी से सडक मार्ग से भोपाल पहुंचा जा सकता है। मध्‍य प्रदेश और पडोसी राज्‍यों के अनेक शहरों से भोपाल के लिए नियमित बसें चलती हैं।

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