रजिस्ट्री स्टाम्प ड्यूटी मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला | NATIONAL NEWS

नई दिल्ली। LAND व PROSPERITY की खरीद फरोख्त में STAMP DUTY की वसूली उसका मौजूदा स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए ही ला सकती है। भविष्य में उस संपत्ति का क्या उपयोग होगा इसके मद्देनजर स्टांप डयूटी का आंकलन नहीं किया जा सकता है। यह अहम कानूनी बिंदु SUPREME COURT से लेकर TAX BOARD तक कई बार तय हो चुका है इसके बावजूद कलेक्टर स्टांप सहित अधीनस्थ ऑथोरिटी बार-बार संपत्तियों के भावी उपयोग को लेकर स्टांप डयूटी लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं यह साफ तौर पर उच्चतर न्यायालयों के आदेश की अनदेखी है। 

यह महत्वपूर्ण व्यवस्था व निर्णय राजस्थान टैक्स बोर्ड की खंडपीठ ने गुजरात की जीएसपीएल इंडिया गैसनेट लिमिटेड की ओर से जयपुर के कलेक्टर स्टांप के आदेश को चुनौती देते हुए दायर चार याचिकाओं का एक साथ निस्तारण करते हुए दिया है। खंडपीठ ने माना कि कलेक्टर स्टांप ने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल करते हुए प्रकरण का निस्तारण नहीं किया है। शायद उन पर आडिट दल की जांच में स्टांप कमी का मामले का दबाव रहता है। खंडपीठ ने चारों याचिकाओं में मिलाकर कुल 86 लाख 16 हजार 740 रुपए की स्टांप डयूटी कम होने संबंधी कलेक्टर स्टांप जयपुर के आदेश निरस्त कर दिए हैं। 

यह है मामला
जीएसपीएल इंडिया गैसनेट लिमिटेड ने जयपुर के विराटनगर और शाहपुरा सब रजिस्ट्रार को पक्षकार बनाते हुए कलेक्टर स्टांप जयपुर द्वारा राजस्थान स्टांप एक्ट की धारा 51 अलग-अलग चार आदेश जारी किए थे। मामले के अनुसार कंपनी द्वारा मेहसाना से भटिंडा के बीच गैस पाइप लाइन बिछाने के प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है। इसके तहत कंपनी को जगह-जगह पर आईपी पंपिंग स्टेशन बनाने होते हैं। कंपनी ने पंपिंग स्टेशन बनाने के लिए शाहपुरा व विराटनगर में कृषि भूमि खरीदी थी। कंपनी ने जमीन खरीद के दस्तावेज रजिस्टर्ड कराते समय औद्योगिक उपयोग मानते हुए डीएलसी रेट से ज्यादा स्टांप डयूटी का भुगतान किया था। दस्तावेज रजिस्टर्ड होने के बाद जयपुर के कलेक्टर स्टांप ने माना कि कंपनी जमीन का व्यवसायिक उपयोग करेगी। इस लिहाज से स्टांप डयूटी और रजिस्ट्रेशन चार्ज व्यवसायिक दर से दिया जाना चाहिए। 

आडिट दल ने लगाया था आक्षेप 
प्रकरण की सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि दोनों क्षेत्र के सब रजिस्ट्रार ने कंपनी द्वारा आंकी गई रेट को सही मानते हुए स्टांप डयूटी पर दस्तावेज रजिस्टर्ड कर दिया था। लेकिन इसी दौरान आडिट दल ने सब रजिस्ट्रार आफिस का निरीक्षण किया और आक्षेप लगा दिया। सब रजिस्ट्रार ने दबाव में कलेक्टर स्टांप को धारा 51 के तहत रेफरेंस कर दिया। कलेक्टर स्टांप ने भी न्यायिक विवेक का इस्तेमाल नहीं किया और आडिट दल के आक्षेप के मद्देनजर ही यह मान लिया कि कंपनी ने जो जमीन खरीदी है उसका भविष्य में व्यवसायिक उपयोग होगा इसलिए स्टांप डयूटी व्यवसायिक दर से ली जानी चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट से लेकर टैक्स बोर्ड दे चुके हैं व्यवस्था 
कंपनी की ओर से टैक्स बोर्ड के समक्ष दलील दी गई कि नेचुरल गैस की पाइप लाइन के लिए पंपिंग स्टेशन स्थापित किए जा रहे हैं और यह काम व्यवसायिक श्रेणी में नहीं आता है। कंपनी के वकील ने नजीर पेश की जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 20 जनवरी 2012 के निर्णय के अलावा राजस्थान हाईकोर्ट और टैक्स बोर्ड द्वारा पूर्व में इसी तरह के मामले शामिल थे। इन सभी में यह तय किया गया है कि जमीन या संपत्ति का भविष्य में क्या उपयोग होगा इसके आधार पर नहीं बल्कि बेचान का दस्तावेज रजिस्टर्ड किए जाते समय उसकी स्थिति के अनुसार स्टांप डयूटी ली जानी चाहिए। इन सभी निर्णयों का हवाला देते हुए खंडपीठ ने कलेक्टर स्टांप जयपुर के आदेश निरस्त कर दिए। 

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