राकेश दुबे@प्रतिदिन। अक्सर किसी आयोजन के पीछे कोई उद्देश्य होता है, लेकिन जब किस आयोजन से कोई उद्देश्य निकल आये तो कुछ और बात होती है। कल “चम्बल की बंदूकें गाँधी के चरणों में” का पुनर्प्रकाशन माधवराव सप्रे स्मृति समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान भोपाल द्वारा किया गया। गाँधीवादी एम् एस सुब्बाराव ने इसका विमोचन किया। श्री सुब्बाराव बीसवीं सदी में डकैतों के सबसे बड़े आत्मसमर्पण के साक्षी थे। अब 21वीं सदी में बैंक घपलेबाजों के सामने सरकारी “आत्मसमर्पण” को लेकर चिंतित।
इस विमोचन कार्यक्रम के दौरान मीडिया पर दो बड़े बैंक घोटालों की खबरें उजागर हुई। कोई कनिष्क गोल्ड 14 बैंकों के 824 करोड़ लेकर फरार हो गया है। तो सीबीआई ने हैदराबाद स्थित एक निर्माण और आधारभूत संरचना कंपनी के खिलाफ आठ बैंकों के संघ से कथित तौर पर 1394 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के संबंध में मामला दर्ज किया है। कई प्रमुख आधारभूत संरचना कंपनियों के लिए उप-ठेकेदार के तौर पर काम करने वाली टोटम इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और उसके प्रमोटर टोटमपुदी सलालिथ और टोटमपुदी कविता को सीबीआई की प्राथमिकी में नामजद किया गया है। आठ बैंकों में से एक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (यूबीआई) की तरफ से दी गई शिकायत के बाद यह मामला दर्ज किया गया है। आयकर विभाग द्वारा 2015 में जारी टैक्स डिफाल्टरों की सूची में भी इस कंपनी का नाम शामिल था और उस पर करीब 400 करोड़ रुपये का कर बकाया था। आयकर विभाग ने 2015 में कंपनी का सुराग देने वाले के लिए 15 लाख रुपये के इनाम की घोषणा करते हुए इसे और अन्य डिफाल्टरों को लापता करार दिया था। वे कहाँ है, सरकार को नहीं पता।
विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और अब उजागर हो रहे नामों ने तो चम्बल के उन डकैतों के वे सारे रिकार्ड तोड़ दिए, जिनके समर्पण की कहानी तत्समय स्व.प्रभाष जोशी, स्व.अनुपम मिश्र और श्री श्रवण गर्ग ने इस पुस्तक में बयान की है। कार्यक्रम में मौजूद हर आदमी इन शहरी डकैतों के बारे में सोच रहा था। अब विनोबा जी नहीं है, जयप्रकाश जी नहीं है उनके अनुयायी प्रदेश से लेकर देश की सरकारों में है। कोई इन घपलेबाजो के एनकाउंटर की नहीं सोच रहा है। सरकार घपले कब हुए यह बताकर आत्मसमर्पण की मुद्रा में है।
पुराने संस्करण के पेज 10-11 पर विनोबा जी का संस्मरण लिपिबद्ध है। “डाकू क्षेत्र” की नहीं “सज्जन क्षेत्र” की शुरुआत। आज की इबारत है, बैंक घपलेबाजों के सामने सरकारी “आत्मसमर्पण”। पता नहीं सरकार का रुतबा कब जागेगा। इस आयोजन से एक संदेश निकलता है “ सरकारें कुछ नहीं करती, समाज करता है।” भारत के समाज को जागना होगा, वरन घपले बाजों के सामने हर दिन सरकार का समर्पण होता ही रहेगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।