जबलपुर। देश के कई राज्यों में दूसरे राज्यों के उम्मीदवारों को नौकरी के अवसर ही नहीं दिए जाते, परंतु मप्र में शिवराज सिंह सरकार ने देशभर के उम्मीदवारों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। स्थानीय उम्मीदवारों ने इसका तीखा विरोध किया तो सरकार ने उनकी आयुसीमा घटा दी थी परंतु अब वो आयुसीमा बढ़ाने जा रही है। यह जानकारी राज्य शासन की ओर से महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव ने हाईकोर्ट में दी है। मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने इस जानकारी को रिकॉर्ड पर लेते हुए मामले की सुनवाई 2 सप्ताह के लिए बढ़ा दी।
इससे पूर्व याचिकाकर्ता उत्तरप्रदेश निवासी मुकेश कुमार उमर और रीता सिंह की ओर से अधिवक्ता ब्रम्हेन्द्र प्रसाद पाठक ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि पीएससी ने 12 दिसंबर 2017 को असिस्टेंट प्रोफेसर पद का विज्ञापन निकाला। इसके लिए जो आयुसीमा निर्धारित की गई, उसके तहत मध्यप्रदेश के मूल निवासी आवेदकों के लिए अधिकतम आयुसीमा 40 वर्ष रखी गई, जबकि मध्यप्रदेश के बाहर निवास करने वाले आवेदकों के लिए आयुसीमा 28 वर्ष रखी गई। चूंकि ऐसा करना संविधान के अनुच्छेद-14, 15 और 21 के विपरीत और भेदभाव भी श्रेणी में आता है, अतः पीएससी के लिए आयुसीमा निर्धारण की वैधता को चुनौती दे दी गई।
देश में बेरोजगार युवाओं की कमी नहीं है। ऐसे में पीएससी द्वारा आयोजित परीक्षाएं उत्तीर्ण करके रोजगार हासिल करने का सपना देखने वाले प्रत्येक आवेदक के साथ समानता का व्यवहार आवश्यक है। यदि बाहर के आवेदकों को भी 40 वर्ष की आयुसीमा तक छूट दे दी जाए तो अपेक्षाकृत अधिक आवेदक अपना भाग्य आजमा सकेंगे। शुक्रवार को सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव व अमित सेठ खड़े हुए।