गुजरात के बाद अब मप्र में भी पाटीदार पॉलिटिक्स | MP NEWS

भोपाल। जातिवाद की राजनीति का इतिहास मध्यप्रदेश में कभी नहीं रहा। थोड़ा बहुत जातिगत संतुलन जरूर बनाया जाता है। चुनाव में टिकट और पार्टी में पदों का बंटवारा करते समय एक ध्यान देने योग्य विषय जाति भी होती है परंतु यह प्राथमिकता नहीं होती लेकिन अब मध्यप्रदेश में जातिवाद की राजनीति शुरू की जा रही है। गुजरात के बाद मध्यप्रदेश में भी पाटीदार पॉलिटिक्स शुरू हो गई है। सीएम शिवराज सिंह अपने जीत को सुनिश्चित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते अत: उन्होंने खुद इस आग में घी डाल दिया है। 

मंदसौर में हुए किसान आंदोलन और गोलीकांड के केंद्र में पाटीदार ही थे। मध्यप्रदेश की आम जनता की नजर में वो किसान थे परंतु भाजपा और कांग्रेस की नजर में पाटीदार थे। पाटीदारों को भाजपा का वोटबैंक माना जाता है। मंदसौर कांड के बाद इसे कांग्रेस ने लपक लिया था। सीएम शिवराज सिंह ने पाटीदारों को वापस भाजपा के खाते में दर्ज कराने के लिए एक पाटीदार विधायक को मंत्री बना दिया। अब कांग्रेस पाटीदारों को अपने खाते में बनाए रखने के लिए नई रणनीति बना रही है। 

कांग्रेस जिला अध्यक्षों की नियुक्ति और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के विस्तार में इसकी झलक दिखाई देगी। खासकर कांग्रेस सक्रिय पाटीदार और मीणा नेताओं को आगे लाने की तैयारी है। इसमें पांच जिलों में इस समाज को महत्व दिया जा सकता है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के होने वाले विस्तार में भी जातीय समीकरण साधने के प्रयास होंगे।

यहां बदले जाएंगे अध्यक्ष
सूत्रों की मानी जाए तो कांग्रेस शाजापुर, खरगौन, उज्जैन, नीमच, मंदसौर जिलों में से किसी एक जिले की कमान पाटीदार, मीणा समाज के सक्रिय नेता को देना चाहती है। इसके लिए वह इन दोनों जाति में सक्रिय नेताओं की तलाश में गुपचुप रूप से जुटी हुई है। इस तलाश को भाजपा के जातीय समीकरण को टक्कर देने के लिए माना जा रहा है। भोपाल शहर और ग्रामीण जिला कांग्रेस में ब्राह्मण अध्यक्ष हैं। बदलाव के बाद यहां पर ब्राह्मण नेता को इनमें से एक जिले की कमान दी जाएगी। भोपाल में ब्राह्मण वोटरों की संख्या खासी मानी जाती है। वहीं शिवपुरी और सागर शहर में यादव को कमान दी जा सकती है।

PCC का भी हो सकता है विस्तार
इधर प्रदेश कांग्रेस कमेटी में भी निष्क्रिय लोगों को बाहर का रास्ता दिखाने को लेकर निर्णय होना है। दिल्ली में सात जनवरी को दिग्गज नेताओं के बीच हुई बैठक में यह तय हो चुका था कि निष्क्रिय रहने वाले और पीसीसी की बैठक में शामिल नहीं होने वालों को हटाया जाए। इनकी जगह सक्रिय लोगों को शामिल किया जाए। हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि पीसीसी में फेरबदल की जगह पर विस्तार होगा, जिसमें जातीय संतुलन बनाने का प्रयास किया जाएगा।

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