प्रकरण पूर्ण विचारोपरांत अमान्य: आदेश में यह लाइन नहीं लिख पाएंगे अधिकारी | MP NEWS

अंजुल मिश्रा/जबलपुर। प्रदेश के प्रशासनिक और अर्द्ध न्यायिक अधिकारी अब 'प्रकरण पूर्ण विचारोपरांत अमान्य किया जाता है' नहीं लिख पाएंगे। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अवमानना याचिका पर कठोर निर्णय लेते हुए मध्यप्रदेश शासन को मेमो दिया है। इसके जवाब में शासन ने भी सभी मंत्रालय प्रमुखों को आदेश जारी कर न्यायालय के आदेश पर किसी भी आवेदन पर विचार करने के साथ उसे मान्य या अमान्य करने का विस्तृत ब्यौरा देना अनिवार्य कर दिया है।

हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने 23 सितंबर 2015 को निर्वाचन संबंधी याचिका पर निर्वाचन अधिकारी के लिए एक आदेश पारित किया था। लेकिन निर्वाचन अधिकारी ने उस पर कोई गौर नहीं किया। जिसके बाद पुनः याचिका दायर हुई और कोर्ट ने 21 सितंबर 2017 को आदेश पारित किया। इस आदेश के बाद भी निर्वाचन अधिकारी ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया। जब मामला अवमानना में आया तो संबंधित अधिकारी ने एक लाइन की टीप लिखकर उसका निराकरण कर दिया। 

आदेश पर पुनः एक याचिका दायर कर याचिकाकर्ता ने रिट पिटीशन दायर की जिस पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने उस आदेश के संबंध में 21 नवंबर 2017 को मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग और प्रमुख सचिव राजस्व विभाग को मेमो जारी कर पालन करने के निर्देश दिए, फिर भी उसका पालन नहीं हुआ। अंततः कोर्ट ने इस पर गंभीरता से निर्णय लिया और रजिस्टार प्रशासन चंद्रेश कुमार खरे ने 23 जनवरी 2018 को स्पीकिंग आर्डर पर अमल करवाने सभी प्रशासकीय विभाग और अर्द्घ न्यायायिक विभाग प्रमुखों को आदेश जारी कर दिया।

क्या था मामला
ग्वालियर बेंच की रिट पिटीशन 7120/15 तारा बाई विरूद्घ शांति बाई एवं अन्य की सुनवाई के समय मामले को गंभीरता से विचार करने के लिए निर्वाचन अधिकारी के पास भेजा था। यह याचिका विदिशा जिले के कुरवाई ब्लॉक की लचयारा ग्राम पंचायत से संबंधित है।

क्या है स्पीकिंग आर्डर
जब भी कोई मामला रिट पिटीशन के माध्यम से सीधे कोर्ट पहुंचता था तो कोर्ट एक आर्डर के साथ ही संबंधित विभाग प्रमुख को नियमानुसार कार्रवाई के लिए आदेश कर देते थे। इसके परिपालन में ज्यादा विभाग प्रमुख एक लाइन में आदेश पारित करते थे कि जिसमें लिखा होता था कि 'प्रकरण पूर्ण विचारोपरांत अमान्य किया जाता है'। कोर्ट ने इस तरह के आदेश को नियम विरूद्घ माना। कोर्ट ने कहा कि किसी भी प्रकरण को अमान्य करते हुए संबंधित अधिकारी को स्पष्ट करना चाहिए कि किस नियम के तहत इसे अमान्य किया जा रहा है।

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