कोलारस उपचुनाव: शिवराज सिंह बैकफुट पर आए, यशोधरा राजे को सौंपी कमान | MP BY-ELECTION NEWS

भोपाल। मध्यप्रदेश में हो रहे 2 उपचुनावों में सीएम शिवराज सिंह ने बेहतरीन चाल चली है। उन्होंने कोलारस विधानसभा सीट की कमान यशोधरा राजे सिंधिया को सौंप दी है। मप्र में पहली बार ऐसा हो रहा है जब सीएम शिवराज सिंह अपने नाम पर वोट नहीं मांगेंगे। उन्होंने किसी क्षेत्रीय नेता को आगे बढ़ाया है। इस फैसले के साथ यह भी तय हो गया कि कोलारस की हार या जीत का श्रेय यशोधरा राजे सिंधिया को जाएगा। बता दें कि यह सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाली मानी जाती है। अब तक कहा जा रहा था कि मुकाबला सिंधिया और शिवराज के बीच होगा परंतु उन्होंने भाजपा की तरफ से खिलाड़ी ही बदल दिया। अब मुकाबला सिंधिया विरुद्ध सिंधिया हो गया है। 

आलोचकों का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान ने संभावित हार के डर से यह कमान क्षेत्रीय नेता को सौंपी है। इसके पीछे लम्बी रणनीति बनाई गई और उस पर सफलतापूर्वक काम भी हुआ। इसे समझने के लिए कुछ समय पीछे जाना होगा। इससे पहले यह याद दिला दें कि यशोधरा राजे सिंधिया मप्र की उद्योग मंत्री हुआ करतीं थीं। सीएम शिवराज सिंह ने एक आईएएस अफसर के कहने पर उनसे यह विभाग छीन लिया। तभी से यशोधरा राजे सिंधिया नाराज चल रहीं थीं। उन्होंने सीएम शिवराज सिंह से संपर्क ही तोड़ लिया था। वो मंत्री थीं, परंतु उन्होंने खुद को शिवपुरी विधानसभा तक सीमित कर लिया था। यह तनाव लम्बा चला और यशोधरा राजे सिंधिया किसी भी स्थिति में समझौता करने को तैयार नहीं थीं। 

यशोधरा जो कार्यक्रमों तक में नहीं बुलाया 
कोलारस में उपचुनाव की तैयारियों के दौरान यशोधरा राजे सिंधिया की पूछपरख तक नहीं थी। हालात यह थे कि शिवपुरी जिले में सरकारी कार्यक्रम हो रहे थे और यशोधरा राजे सिंधिया को आमंत्रित तक नहीं किया जा रहा था। सीएम शिवराज सिंह ने यहां करीब आधा दर्जन दौरे और सभाएं कीं, किसी एक में भी यशोधरा राजे सिंधिया उपस्थिति नहीं थीं। 

नाराजगी का आलम यह था कि कोलारस विधानसभा सीट पर भाजपा की ओर से यशोधरा राजे विरोधियों को तवज्जो दी जा रही थी। पार्टी के नेता गांव गांव गए, मंत्रियों के केंप कराए गए और विधानसभा की थाह ली गई। टिकट के दावेदारों में यशोधरा राजे के परम विरोध देवेन्द्र जैन प्रमुख थे, इसके अलावा सिंधिया विरोधी नेता वीरेन्द्र रघुवंशी दूसरे प्रमुख दावेदार थे। तय किया गया था कि यह चुनाव यशोधरा राजे के बिना ही लड़ा जाएगा। 

जब जमीनी हकीकत सामने आई तो रणनीति बदल दी गई। दशकों से यशोधरा राजे का विरोध कर रहे देवेन्द्र जैन अचानक यशोधरा राजे से मिलने पहुंचे और आशीर्वाद मांगा। इस मीटिंग को सार्वजनिक किया गया। जब देवेन्द्र जैन का टिकट फाइनल हुआ तो यह बयान दिलवाया गया कि यह टिकट यशोधरा राजे के आशीर्वाद से मिला है। पर्चा दाखिली के दिन सीएम शिवराज सिंह रोडशो में शामिल थे परंतु यशोधरा राजे के पीछे खड़े थे। उन्होंने प्रत्याशी देवेन्द्र जैन के साथ यशोधरा राजे को आगे बढ़ा दिया। 

सीन बिल्कुल स्पष्ट हो गया है। शिवराज सिंह ने इस चुनाव से अपनी प्रतिष्ठा को अलग कर ​लिया है। उन्होंने खुद ऐलान किया कि इस चुनाव में मतदान की तारीख तय यशोधरा राजे ही लीड करेंगी और वही चुनाव की स्टार प्रचारक होंगी। एक सफल रणनीति के तहत उन्होंने इस चुनाव को सिंधिया विरुद्ध शिवराज से अलग कर दिया। 

फायदा क्या होगा
फायदा यह होगा कि कोलारस की जमीन पर सिंधिया विरुद्ध सिंधिया की सीधी लड़ाई दिखाई देगी। 
महल की दरारें कुछ और बड़ी हो जाएंगी जो सीएम शिवराज सिंह के लिए काफी फायदेमंद साबित होंगी। 
लोग हार का ढीकरा शिवराज सिंह के सिर पर नहीं फोड़ पाएंगे, जैसा कि अटेर और चित्रकूट में हुआ। 
जीत मिली तो वो भाजपा की होगी। यशोधरा राजे का कद कुछ खास नहीं बढ़ेगा। वैसे भी वो राजनीति में अभी तक कच्ची ही हैं। 
रिकॉर्ड बताता है कि कुछ चुनावों में जहां जहां शिवराज सिंह ने रैलियां कीं, भाजपा हार गई। इस बार प्रयोग करके देख लिया जाएगा। यह कलंक भी मिट जाएगा। 
शिवपुरी में एक मंत्री ने तक कह दिया था कि 'हर सप्ताह सीएम आ जाते हैं, कर्मचारी काम कैसे करें।' अब वो शिकायत भी नहीं रहेगी। 
यदि कोलारस हार गए तो यशोधरा राजे कभी आंख मिलाकर बात नहीं कर पाएंगी। 
नतीजा कुछ भी हो, सीएम शिवराज सिंह हर हाल में फायदे में रहेंगे। 

लेकिन कलंक भी लगेगा
लेकिन इन सबके बीच एक कलंक जरूर शिवराज सिंह के माथे पर लगेगा और वो यह कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को सामने देख शिवराज सिंह कोलारस छोड़कर भाग गए।

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