कर्नाटक : चुनाव के बीच पकौड़ा आ गया | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। चुनाव भारत में जो न कराए थोडा है। देश भर में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस पकौड़े तलने लगी है। यूँ तो भाजपा के लिए हर चुनाव मायने रखते हैं, परन्तु कर्नाटक का भाजपा के लिए अलग अर्थ है। भाजपा यह चुनाव हर हाल में जीतना चाहेगी, ताकि गुजरात चुनाव के बाद बनी इस धारणा को खंडित कर सके कि मोदी की लोकप्रियता घटी है। इतना ही नहीं, यही से उसे दक्षिण में पांव जमाने का मौका मिलने की सम्भावना दिखती है। 

ऐसा भाजपा का मानना है की वह  अब उत्तर में स्थिर हो चुकी है और उसकी सीटों में वृद्धि नए क्षेत्रों में ही होगी। कांग्रेस के लिए यह चुनाव महत्वपूर्ण है। कर्नाटक ही अब एक बड़ा राज्य है, जहां वह सत्ता में है। अगर वह यहां वापिसी में विफल रही, तो भाजपा का नारा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ कम से कम चुनावी संदर्भ में हकीकत बन जाएगा। कांग्रेस में राहुल गांधी को भी गुजरात में उल्लेखनीय प्रदर्शन के बाद अपनी निरंतरता साबित करनी है। गुजरात में हार के बावजूद उनका कद बढ़ा है, पर कर्नाटक में हारने का मतलब होगा, पार्टी में उनकी नेतृत्व क्षमता पर फिर से संदेह बढ़ना।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार के दौरान बहुत से दावे और वादे किये। प्रधानमंत्री के तमाम दावों का खंडन करने में कांग्रेस ने देर नहीं लगाई। प्रत्यारोपों की शुरुआत मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने की। उन्होंने यह कहते हुए प्रधानमंत्री पर कटाक्ष किया कि ‘भारत के प्रगतिशील सूबों में से एक में’ उनका स्वागत है। उन्होंने भ्रष्टाचार के मसले पर येदियुरप्पा की याद दिलाई और कर्नाटक के सम्मान को कमतर करने का आरोप भी मढ़ा। केंद्र व राज्यों के बीच संसाधनों का बंटवारा एक तय फॉर्मूले पर होता है, इसलिए यह साफ है कि मोदी के दावे मुख्यत: चुनाव के समय किए जाने वाले जुबानी जमा-खर्च थे। मगर प्रधानमंत्री द्वारा लगाए गए आरोपों को गंभीरता से लेना चाहिए और यह जरूरी है कि राज्य सरकार उन आरोपों की सच्चाई बताए। हालांकि जैसे-जैसे चुनावी तापमान बढ़ेगा, यह अंसभव ही है कि विकास का मुद्दा टिक सकेगा। ज्यादा संभव है कि चुनाव अभियान अपनी आखिरी बेला में पक्ष व विपक्ष के बीच बेजा जुबानी आरोप-प्रत्यारोप तक सिमट जाए। सिद्धरमैया ‘पहचान की राजनीति’ कर सकते हैं, तो भाजपा सांप्रदायिक धुव्रीकरण का सहारा ले सकती है।

टेक्नोलॉजी यानी तकनीक व प्रौद्योगिकी भी एक अन्य मसला है, जिसे चुनाव में किनारे किया जा सकता है। ऐसे वक्त में, जब भारत वैश्विक नेतृत्व की भूमिका की ओर बढ़ रहा हो, अच्छा होगा कि हम इस समस्या को प्रौद्योगिकी की नजर से देखें। आज अमेरिका के घटते वर्चस्व और चीन की संभावना को लेकर एक विश्वव्यापी बहस छिड़ी हुई है। इसका एक पहलू प्रौद्योगिकी भी है। आज भारत में विकासात्मक मुद्दों पर जोरदार बहस की जरूरत है, पर दुर्भाग्य से इसे चुनावों में पिछली सीटों पर धकेल दिया जाता है, और तकनीक पर तो खैर बात भी नहीं होती। बेंगलुरु इसी सच्चाई को फिर से स्थापित कर रहा है।भाजपा जहाँ येदुरप्पा के चेहरे से आगे बढना चाहती है तो कांग्रेस सिद्ध्ररमैया के साथ इस चुनाव में जोर मार रही है। विकास का मुद्दा और तकनीकी प्रवीणता इसमें कहीं खो जाएगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !