नवजातों की किसी को चिंता नहीं, ये वोटर थोड़े ही हैं ! | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। यूनिसेफ की रिपोर्ट नकारी नहीं जा सकती खासकर नवजात शिशुओं के मामले में। उनकी चिंता वैसे भी भारत में कोई राजनीतिक दल इस कारण नहीं करता कि वे वोट बैंक नहीं है। यूनिसेफ द्वारा जरी आंकड़े 2017 के हैं। वे बताते है कि देश की राजधानी दिल्ली में, वर्ष 2017 की पहली छमाही में 433 बच्चे अपने जीवन के तीस दिन भी पूरे नहीं कर पाए। कारण न्यूमोनिया, मैनिंजाइटिस और छोटे-मोटे इनफेक्शन थे, ये ऐसी बीमारियाँ है जिनसे शिशुओं को बचाने के उपाय पूरी दुनिया जानती हैं। यूनिसेफ ने इस साल दुनिया में नवजात मृत्यु दर की पोल खोल कर रख दी। पडौसी देश पाकिस्तान अपने नवजात शिशुओं को बचाने में सबसे फिसड्डी साबित हुआ है। इससे हमें खुश नहीं होना चाहिए, हमारी छबि भी कोई बहुत बेहतर नहीं है।

पिछले साल 2 लाख 84 हजार बच्चों की मौत पैदा होने के महीने भर के अंदर उन्हीं बीमारियों से हुई, जिनके शिकार दिल्ली के बच्चे हुए थे। वैसे, दुनिया भर में पैदा होने के महीने भर के अंदर मरने वाले बच्चों की संख्या देखें तो 12वें नंबर पर होने के बावजूद यह दुख दुनिया में सबसे ज्यादा भारत के ही हिस्से आया है। पिछले साल देश में 6 लाख 40 हजार बच्चों ने जीवन का 31वां दिन नहीं देखा। यह चीज हमारे देश को बांग्लादेश, भूटान, मोरक्को और कांगो से भी पीछे धकेल देती है। बदहाली में पाकिस्तान के पहले नंबर पर होने का कारण यह है कि वहां दस हजार लोगों पर केवल 14 स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं। राजनीतिक ढांचा डांवाडोल है और अशिक्षा तो भीषण है। 

कहने को भारत में यह मोर्चा उतना बदहाल न सही, पर अपने यहां सात हजार की आबादी एक ही डॉक्टर के सहारे है। सन 2002 में तय की गई भारतीय स्वास्थ्य नीति में स्वास्थ्य पर जीडीपी का दो प्रतिशत इस मद खर्च करने की बात थी। यह लक्ष्य आज तक तो पूरा हुआ नहीं, ऊपर से हमारी सरकारें हर साल स्वास्थ्य सुविधाओं को और बीमार करती जा रही हैं। देश के राज्यों में केरल, गोवा और मणिपुर ही हैं, जिनके बारे में कहा जा सकता है कि जहाँ विश्व स्तरीय सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं आम आदमी को उपलब्ध हैं। 

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं का हाल इतना बुरा है कि डब्लूएचओ के आंकड़ों मुताबिक इथियोपिया, घाना और आपदाग्रस्त हैती में भी यहां से अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं मिलती हैं। यूनिसेफ ने बताया है कि जापान, सिंगापुर या आइसलैंड में जन्म लेना दुनिया में सबसे सुरक्षित है। हमारे बच्चों की जान बच सकती है, बशर्ते देश के अस्वस्थ राज्य  जिनमे मध्यप्रदेश भी है केरल, गोवा और मणिपुर के मॉडल की नकल करना शुरू करें। मध्यप्रदेश को इस दिशा में सोचना नही पहल करना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !