भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अध्यापकों के संविलियन का ऐलान तो कर दिया, परंतु संविलियन की प्रक्रिया में अधिकारियों ने सीएम की घोषणा को उलझाकर रख दिया है। अधिकारियों का कहना है कि कितनी भी जल्दी कर लें, इस प्रक्रिया में कम से कम 8 माह का समय लगेगा। फिलहाल फरवरी चल रहा है। 8 महीना जोड़ें तो अक्टूबर आ जाएगा। थोड़ी देर सबेर हो गई तो चुनाव शुरू हो जाएंगे। अधिकारियों का कहना है कि ट्राइबल अध्यापकों के मामले में संविलियन अटक गया है। ट्राइबल के इन अध्यापकों को शिक्षा विभाग में कैसे लाया जाए इसके लिए अब विधि विशेषज्ञों की राय मांगी जा रही है।
आदिमजाति के 1.25 लाख अध्यापकों का विभाग कैसे बदलें
प्रदेश में 2 लाख 82 हजार अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन की घोषणा सीएम ने की थी। सीएम की घोषणा के बाद विभाग आनन-फानन में इसके लिए नीति बनाने में जुट गया है। इन अध्यापकों में प्रदेश के 89 आदिवासी ब्लाक में भर्ती किए गए सवा लाख अध्यापक भी हैं। इनकी भर्ती इसी विभाग ने की थी। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि संविलियन के बाद भी इन अध्यापकों का विभाग नहीं बदल सकता। इन्हें शिक्षा विभाग का कर्मचारी कैसे बनाया जाए इस पर विचार हो रहा है।
डाइंग कैडर को पुनर्जीवित करना भी चुनौती
अभी विभाग शिक्षकों के डाइंग कैडर को फिर से जीवित करने की प्रक्रिया में लगा है। 1994 में पंचायती राज व्यवस्था के तहत ये पद डाइंग कैडर में डाले गए थे। इनकी जगह शिक्षा कर्मी एक, दो और तीन बनाए गए थे। 2001 में इन्हें संविदा शाला शिक्षक और 2007 में अध्यापक का नाम दिया गया था। इसके लिए प्रस्ताव तैयार कर कैबिनेट में लाया जाएगा।
वित्त विभाग ने अटका दिया वेतनमान
सीएम की घोषणा के बाद शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों की मंत्री विजय शाह के साथ बैठक हुई थी। इसमें अध्यापकों का वेतनमान तय करने और अध्यापकों के शिक्षक बनने पर आने वाले भार की राशि के आंकलन के लिए वित्त विभाग को पत्र लिखा गया था पर एक पखवाड़े बाद भी फायनेंस ने अब तक कोई जवाब नहीं आया है।
आठ महीने का लगेगा समय
शिक्षा विभाग के अधिकारियों का मानना है कि अध्यापकों को शिक्षक बनाने की प्रक्रिया काफी लंबी और पेचीदा है। मामले को कैबिनेट के अलावा विधानसभा में भी ले जाना होगा। इस पूरी प्रक्रिया में वे कम से कम आठ महीने का समय लग सकता है। अध्यापकों के मामले में सरकारी रिकॉर्ड देखें तो समझ आता है कि शिक्षा विभाग के अधिकारी जितना वक्त बताते हैं, कम से कम उससे दोगुना वक्त लग जाता है। देखते हैं इस मामले में टाइमलाइन क्या कहेगी।