भारत के एक गांव की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी | REPUBLIC DAY SPACIAL STORY

नई दिल्ली। अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के लिए कई लोगों ने अपने अपने तरीके से बलिदान दिए। आजादी के बाद सभी शहीदों को सम्मान मिला लेकिन एक गांव ऐसा भी है जहां का बच्चा बच्चा अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गया लेकिन आजादी के 70 साल तक यहां कभी तिरंगा तक नहीं लहराया। इस गांव की कहानी कुछ ऐसी है कि पढ़ते पढ़ते आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। (Story of revolutionary village Rohnag)

23 अंग्रेज अफसरों को मार गिराया था
देश की आजादी में हरियाणा के जिन वीर सपूतों ने अपना अहम योगदान दिया, उन वीर सपूतों में भिवानी जिले के गांव रोहनात के लोगों के भी नाम शुमार हैं। 29 मई 1857 को रोहनात गांव के वीर जांबाजों ने बहादुरशाह के आदेश पर अंग्रेजी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा दी। ग्रामीणों ने जेलें तोड़कर कैदियों को आजाद करवाया। 12 अंग्रेजी अफसरों को हिसार व 11 को हांसी में मार गिराया।

अंग्रेजों ने तोप लगाकर पूरा गांव तबाह कर दिया
इससे बौखलाकर अंग्रेजी सेना ने गांव पुट्‌ठी के पास तोप लगाकर गांव के लोगों को बुरी तरह भून दिया। सैकड़ों लोग जलकर मर गए, मगर फिर भी ग्रामीण लड़ते रहे। इतना ही नहीं इसके बाद भी अंग्रेजों ने जुल्म-ओ-सितम जारी रखे। औरतों व बच्चों को कुएं में फेंक दिया। दर्जनों लोगों को सरेआम जोहड़ के पास पेड़ों पर फांसी के फंदे पर लटका दिया।

क्रांतिकारियों को सड़क पर लिटाकर बुलडोजर चला दिया
इस गांव के लोगों पर अंग्रेजों के अत्याचार की सबसे बड़ी गवाह हांसी की एक सड़क है। इस सड़क पर बुल्डोजर चलाकर इस गांव के अनेक क्रांतिकारियों को कुचला गया था, जिससे यह रक्तरंजित हो गई थी और इसका नाम लाल सड़क रखा गया था।

पूरा गांव बागी घोषित कर नीलाम कर दिया
ग्रामीणों के अनुसार देश की आजादी के आंदोलन में सबसे अधिक योगदान के बावजूद उनके साथ जो हुआ, उसकी कसक आज भी उनके दिल में है। 14 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने इस गांव को बागी घोषित कर दिया व 13 नवंबर को पूरे गांव की नीलामी के आदेश दे दिए गए। 20 जुलाई 1858 को गांव की पूरी 20656 बीघे जमीन व मकानों तक को नीलाम कर दिया गया। इस जमीन को पास के पांच गांवों के 61 लोगों ने महज 8 हजार रुपए की बोली में खरीदा। अंग्रेज सरकार ने फिर फरमान भी जारी कर दिया कि भविष्य में इस जमीन को रोहनात के लोगों को न बेचा जाए।

आजादी के बाद वापस लौटे रोहनात के लोग
धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो गई और यहां के लोगों ने अपने रिश्तेदारों के नाम कुछ एकड़ जमीन खरीदकर दोबारा गांव बसाया, मगर लोगों को मलाल आज भी है कि देश की आजादी के लिए अपना सबकुछ खो देने के बावजूद उन्हें वो जमीन तक नहीं मिली, जिसके लिए आज तक लड़ाई लड़ रहे हैं।

2010 में लहराए थे काले झंडे
रोहनात के ग्रामीणों ने 2010 में स्वतंत्रता दिवस के दिन गांव में काले झंडे लहराए थे, जिसके बाद एकाएक प्रशासन हरकत में आ गया था। हालांकि बाद में ग्रामीणों को प्रशासन के आश्वासन के बाद मना लिया गया। सरपंच रविंद्र, पूर्व सरपंच अमीर सिंह व नगराधीश महेश कुमार बताते हैं कि वो भारत के संविधान व तिरंगे का आदर करते हैं, लेकिन जिन क्रांतिकारी पूर्वजों ने देश की स्वतंत्रता में अपने बलिदान की आहूति दी, उनके बारे में भी सरकार को सोचना चाहिए। क्या गांव की शहादत को ध्यान में लाना सरकार के लिए जरूरी नहीं है।

आजादी के 70 साल बाद लहराएगा तिरंगा
गुलामी का दंश झेलकर तंग आ चुके लोगों की आवाज को बवानीखेड़ा हलके के विधायक बिशंभर वाल्मीकि ने भी उठाया था व उनके नेतृत्व में अगस्त 2017 में सीएम से भिवानी दौरे के दौरान लोगों ने मुलाकात की। विधायक ने उस वक्त कहा था कि सीएम ने पूरे मामले में सकारात्मक रुख दिखाते हुए उपायुक्त को मामले की जांच की बात कही है। थक-हार चुके लोगों ने सीएम मनोहर लाल से मुलाकात के बाद उम्मीद जताई थी व मामले में कार्रवाई शुरू हुई तो अब सीएम ने बड़ा तोहफा इन लोगों को देने की बात कही। सीएम ने अधिकारियों को गांव की समस्याओं को जानकर उनके निराकरण के निर्देश दिए हैं। अब सूबे के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खुद 26 जनवरी को इस गांव में आएंगे व विकास कार्यों की घोषणा व लोकार्पण करेंगे।

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