नरेंद्र मोदी सरकार ला रही है सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना | NATIONAL NEWS

नई दिल्ली। केंद्र सरकार श्रमिकों के लिए सोशल सिक्योरिटी स्कीम (सामाजिक सुरक्षा योजना) का खाका तैयार कर रही है, जिसका उद्देश्य असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा देना है. श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने सामाजिक सुरक्षा कोड का मसौदा भी तैयार कर लिया है, जिसमें EPFO और ESIC के दायरे में ना आने वाले लोग भी शामिल किए जाएंगे. इस योजना में अनिवार्य पेंशन, विकलांगता और मृत्यु का बीमा, वैकल्पिक चिकित्सा, मातृत्व और बेरोजगारी का कवरेज शामिल है.

चुनाव से पहले लॉन्च की जा सकती है स्कीम
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार इस योजना में भागीदारी के लिए राज्यों से बात की जा रही है. इस योजना को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले लॉन्च किया जा सकता है. एक वरिष्ठ श्रम मंत्रालय के अधिकारी ने बताया, 'EPFO और ESIC में नियोक्ता उतनी ही राशि का योगदान देता है, जितनी राशि कर्मचारी देता है. अगर ऐसी योजनाओं में पूरी आबादी को लाया जा रहा है, तो एक वर्ग ऐसा भी होगा, जो इसके लिए समर्थ नहीं होगा. अब गरीबी रेखा के नीचे आने वाले वर्ग के लिए सरकार योजना बना रही है, जो राज्यों और केंद्र के बीच साझा किया जाना जरूरी है.

ये प्रस्ताव मंत्रालयों और राज्यों को सर्कुलेट कर दिया गया है. अधिकारी ने संकेत दिया है कि इस योजना की फंडिंग के लिए काम चल रहा है और इसकी फंडिंग कई मौजूदा योजनाओं के आवंटन पर निर्भर करती है.

अधिकारी ने कहा, 'हम फंडिंग के लिए काम कर रहे हैं. इसके साथ ही अब कई योजनाओं को लागू किया जा रहा है. सामाजिक सुरक्षा के लिए फंड ना केवल केंद्र से आते हैं, बल्कि इसमें राज्यों की भी भागीदारी होती है. उदाहरण के तौर पर अगर केंद्र सरकार ओल्ड एज पेंशन के लिए 300 रुपए दे रही है, तो राज्य इसमें और राशि जोड़ कर ज्यादा पेंशन दे रहे हैं. कुछ राज्यों में ओल्ड एज पेंशन न्यूनतम एक हजार रुपए है. बीमा योजनाएं, विकलांगता लाभ, मातृत्व लाभ जैसी और भी कई योजनाएं चल रही हैं.

अधिकारी ने कहा, 'राज्य और मंत्रालय कई योजनाओं को लागू करा रहे हैं. फंडिंग मौजूद है, हमें सिर्फ ये पता लगाना है कि और कितने धन की जरूरत है. क्या ये जरूरत उपलब्ध संसाधनों से पूरी हो सकती है, ये सब जानने के लिए बहुत काम करना होगा.' अधिकारी के मुताबिक सामाजिक सुरक्षा कोड के लिए काफी समय लगेगा. इसमें सभी हितधारकों के बीच आम सहमति जरूरी है. 2014 में सत्ता में आने के बाद, एनडीए सरकार ने 44 श्रम कानूनों को मजबूत करने की घोषणा की थी, जिसमें औद्योगिक संबंध, वेतन, सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की परिस्थितियां शामिल हैं.

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