कभी भी गिर सकती है रमन सिंह सरकार, चुनाव आयोग की कृपा से चल रही है | NATIONAL NEWS

नई दिल्ली। बेशक निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है परंतु यहां भी सबकुछ जनता की उम्मीदों जैसा नहीं है। मसलन, चुनाव आयोग को जब कोई काम होता है तो उसकी चिट्टी पर लिखा होता है 'ELECTION URGENT' यानि सारे काम छोड़कर पहले उनका काम करो और जब जनप्रतिनिधियों के खिलाफ शिकायतें की जातीं हैं तो चुनाव आयोग की टिपिकल बाबूगिरी दिखाई देने लगती है। छत्तीसगढ़ में RAMAN SINGH GOVERNMENT का कार्यकाल समाप्त होने को आ गया लेकिन चुनाव आयोग OFFICE of PROFIT मामले में फैसला नहीं कर पाया। यदि लाभ के पद मामले में रमन सिंह के 11 संसदीय सचिव दिल्ली की तरह अयोग्य करार दे दिए जाते हैं तो यह सरकार कभी भी गिर सकती है। राज्य की कुल 90 सीटों में BJP के पास 49 विधायक हैं। जबकि बहुमत के लिए उनके पास 46 MLA होने चाहिए। 49 में से यदि 11 अयोग्य घोषित हो गए तो...। 

कांग्रेस समेत तमाम विरोधी दलों ने संसदीय सचिवों के खिलाफ जल्द कार्रवाई को लेकर चुनाव आयोग को पत्र भेजा है। हालांकि, संसदीय सचिवों की विधायकी ख़त्म करने को लेकर हाई कोर्ट में भी मामला विचाराधीन है, लेकिन तारीख पे तारीख मिलने के चलते मामले की सुनवाई नहीं हो पा रही है। दिल्ली में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के विधायकों पर चुनाव आयोग की गिरी गाज के बाद अंदाजा लगाया जा रहा है कि अब छत्तीसगढ़ की बारी है। कांग्रेस समेत कई स्वयं सेवी संगठनों ने राज्य के 11 संसदीय सचिवों की विधायकी खत्म करने को लेकर चुनाव आयोग को बहुत समय पहले शिकायत की थी, लेकिन आयोग ने इस शिकायत पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की। 

अब जब दिल्ली में आप पार्टी के विधायक चुनाव आयोग के रडार में आ गए हैं, इसलिए अंदाजा लगाया जा रहा है कि आयोग छत्तीसगढ़ में बीजेपी के विधायकों पर भी अपना फैसला सुनाएगा। मई 2015 में छत्तीसगढ़ में 11 संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उन्हें सभी 13 मंत्रियों के साथ अटैच किया था।

छत्तीसगढ़ में सचिवों को मिली हैं ये सुविधाएं
सभी संसदीय सचिवों को मंत्रियों की तरह सुविधाएं मुहैया कराई गई है। मसलन उन्हें सरकारी बंगला, दो पीए, पुलिस सुरक्षा, वाहन सुविधा और 11 हजार रुपए मासिक भत्ता के अलावा 73 हजार रुपए वेतन सरकारी खजाने से दिया जा रहा है। ये सभी संसदीय सचिव अपने विभाग के मंत्रियों से जुड़े काम संभालते हैं। इनका जलवा किसी मंत्री से कम नहीं होता। राज्य में संसदीय सचिवों को सरकारी बोझ और अपव्यय के साथ-साथ इसे संविधान का उलंघन बताते हुए हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की है। हालांकि, इस पर दो तीन बार सुनवाई हुई और उसके बाद से लगातार तारीख पे तारीख मिलती जा रही है।

RTI कार्यकर्त्ता डॉ. राजेश डेगवेकर के मुताबिक यह संविधान की धारा 163-164 का उल्लंघन है। साथ ही ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का भी उल्लंघन इसलिए है, क्योंकि राज्य की बीजेपी सरकार ने मनमाने तरीके से एक ऐक्ट बनाया जिसका नाम है विधान सभा सदस्य निर्भरता निवारण संशोधन अधिनियम। इसमें इन्होंने 90 पदों को लाभ के पदों से अलग कर दिया, जो कि अपने आप में मनमानी है। उनके मुताबिक उन्होंने उस संशोधन ऐक्ट को भी चैलेंज किया है. बिलासपुर हाई कोर्ट में दायर अपनी याचिका में डॉ. डेगवेकर ने जनता के धन का दुरूपयोग बताते हुए जल्द ही फैसले की मांग की है।

ये हैं छत्तीसगढ़ के संसदीय सचिव
छत्तीसगढ़ में विधायक तोखन लाल साहू, अंबेश जांगड़े, लखन लाल देवांगन, गोवर्धन मांझी, रूपकुमारी चौधरी, शिवशंकर पैकरा, सुनीति सत्यानंद राठिया, लाभचंद बाफना, चंपा देवी पावले, मोतीराम चन्द्रवंशी और राजू सिंह क्षत्रिय को राज्य की बीजेपी सरकार ने संसदीय सचिव की कुर्सी सौपी है।

बिलासपुर हाई कोर्ट ने अगस्त 2017 में अपनी शुरुआती सुनवाई में सभी 11 संसदीय सचिवों को प्रदत्त अधिकारों पर रोक लगा दी थी। यही नहीं, उनके वेतन और भत्तों पर भी पाबन्दी लगाई गई लेकिन कानूनी दावपेच का इस्तेमाल करते हुए राज्य की बीजेपी सरकार ने हाई कोर्ट के निर्देशों को हवा में उड़ा दिया। उन्हें पहले की तरह सुख सुविधाएं जारी रहीं। अब जबकि दिल्ली में संसदीय सचिवों पर गाज गिरी है, उसे चुनाव आयोग की तहरीर मानते हुए कांग्रेस समेत सभी विरोधी दल एकजुट होकर राज्य के संसदीय सचिवों के खिलाफ ठीक वैसी ही कार्रवाई जल्द किए जाने की मांग कर रहे हैं।

उनके मुताबिक एक संविधान और दो विधान नहीं हो सकते, मसलन 'आप' पार्टी के लिए चुनाव आयोग के निर्देश कुछ और राज्य के बीजेपी विधायकों के लिए और कुछ। राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह इन दिनों ऑस्ट्रेलिया प्रवास पर हैं, लिहाजा तमाम संसदीय सचिव चुनाव आयोग के रुख के बाद अपने इलाकों से नदारद हो गए हैं।

हमारे यहां संसदीय सचिव लाभ का पद नहीं: संसदीय सचिव
उम्मीद की जा रही है कि रमन सिंह के छत्तीसगढ़ आने के बाद ये संसदीय सचिव रायपुर की राह पकड़ लें। फिलहाल, राज्य के प्रभारी कानून मंत्री बृजमोहन अग्रवाल मोर्चा सभाले हुए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में दिल्ली जैसा संकट नहीं है, क्योंकि उनकी सरकार ने वैधानिक रूप से कार्रवाई करते हुए संसदीय सचिव के पद को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के दायरे से बाहर रखा है। इस मामले को लेकर कांग्रेस ने राज्यपाल बीड़ी टंडन के पास बीते दो सालों में 22 आवेदन और शिकायतें संसदीय सचिवों के खिलाफ दर्ज कराई हैं। इसमें 11 आवेदन संसदीय सचिवों को उनके पदों से हटाने के हैं, जबकि शेष 11 उन्हें अयोग्य घोषित करने के। हालांकि, कांग्रेस का आरोप है कि राज्यपाल ने किसी भी आवेदन और शिकायतों को चुनाव आयोग को नहीं भेजा और ना ही खुद उस पर सुनवाई की। बीजेपी के विरोधी तमाम दल और संगठन इसे ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला करार देकर अपनी बॉल चुनाव आयोग के पाले में डाल दी है।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !