चंद्र ग्रहण: तारीख, सूतक और विधि विधान यहां पढ़ें | JYOTISH

2018 में 31 जनवरी को वर्ष का पहला चंद्र ग्रहण आ रहा है। प्रथम पूर्ण चंद्र ग्रहण का सूतक काल 8 बजकर 18 मिनट पर प्रारंभ हो जायेगा। इस अवधि के बाद से मंदिरों में पूजा अर्चना और भगवान को भोग लगाना निषिद्ध हो जायेगा। सम्‍पूर्ण भारत में दिखने के कारण देश में चंद्र ग्रहण 5 बजकर 18 मिनट पर प्रारंभ हो जायेगा जबकि रात्रि 8 बजकर 53 मिनट पर उग्र यानि समाप्‍त होगा। ये चंद्र ग्रहण पुष्‍य एवम् अश्‍लेषा नक्षत्र और कर्क राशि में होगा इसलिए इसका सर्वाधिक प्रभाव इसी नक्षत्र में जन्‍मे लोगों पर ही पड़ेगा। इनके लिए इस ग्रहण के प्रभाव अत्‍यंत शुभकारी होंगे। इन लोगों की लंबे समय से चली आ रही चिंतायें समाप्‍त होंगी और आर्थिक लाभ भी होंगे। 

क्‍या करें क्‍या ना करें
चंद्र ग्रहण की अवधि में कई बातों का ख्‍याल रखना आवश्‍यक होता है। सूतक की अवधि के बाद भोजन का निषेध बताया जाता है। बच्‍चों, बुजुर्गों और रोगियों पर भोजन का नियम लागू नहीं होता। ये लोग समय पर भोजन और दवाओं को लेने में संकोच ना करें। 

चंद्र ग्रहण के समय मंदिर के दरवाजे बंद कर देने चाहिए और किसी भी भगवान की मूर्ति को हाथ नहीं लगाना चाहिए। इस समय तुलसी, शमी वृ्क्ष को छूना नहीं चाहिए। गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। ग्रहण के समय घर से बाहर न निकलें। ग्रहण के समय भोजन करना, भोजन पकाना, सोना नहीं चाहिए। इस दौरान सब्जी काटना, सीना-पिरोना आदि से बचना चाहिए। 

ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए। सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना। यदि गंगा-जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना फलदायी होता है। 

ग्रहण-काल जप, दीक्षा, मंत्र-साधना (विभिन्न देवों के निमित्त) के लिए उत्तम काल है। ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है। इस दौरान अल्ट्रावॉयलेट किरणें निकलती हैं जो एंजाइम सिस्टम को प्रभावित करती हैं इसलिए ग्रहण के दौरान सावधानी बरतने की जरूरत होती है। इस समय चंद्रमा, पृथ्वी के सबसे नजदीक होता है।

​जिससे गुरुत्वाकर्षण का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। इसी कारण समुद्र में ज्वार भाटा आते हैं। भूकंप भी गुरुत्वाकर्षण के घटने और बढ़ने के कारण ही आते हैं। ज्योतिष के अनुसार राहु, केतु को अनिष्टकारण ग्रह माना गया है। चंद्रग्रहण की के समय राहु और केतु की छाया सूर्य और चंद्रमा पर पड़ती है। इस कारण सृष्टि इस दौरान अपवित्र और दूषित को हो जाती है।

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