शैल कम्पनियों के मामलों में पूरी कार्रवाई कीजिये | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सरकार अब 1 लाख 20 हजार और शैल कंपनियों का नाम आधिकारिक रिकॉर्ड से हटाने जा रही है। इन SHELL COMPANY का पंजीकरण रद्द करना कालाधन के खिलाफ कार्रवाई की दिशा एक कदम करार दिया जा रहा है। इसके पहले सरकार 2 लाख 26 हजार कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर चुकी है। यह संख्या आश्चर्य में डालती है। सरकार की बात माने कि यह सब BLACK MONEY की समाप्ति के लिए किया जा रहा है तो निसंदेह यह एक यह बहुत बड़ा कदम है। इस तरह कुल मिलाकर 3 लाख 46 हजार कंपनियों का पंजीकरण रद्द हो जाएगा। प्रश्न यह है कि COMPANY REGISTRATION, उनमे वेष्ठित पूंजी और उनके संचालन की निगहबानी करने वाले अमले ने अब तक क्या किया ? इस अमले (OFFICIALS) पर भी क्या नही होना कार्यवाही होना चाहिए ?

अभी तो सरकार की माने की वह कालेधन के खिलाफ लड़ाई के तहत विभिन्न नियमों का पालन नहीं करने वाली कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर रही है। पता नहीं आगे कितनी कंपनियों का नाम रद्द होने वाली सूची में किस किस का नाम आएगा। केंद्र सरकार पर कालाधन के खिलाफ बड़े कदम न उठाने का आरोप लगाने वालों को यह जवाब है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई भाषणों में जिक्र किया है कि नोटबंदी के कारण अनेक कंपनियां पकड़ में आई, जिनकी भारी संख्या में खाते थे, कई तो केवल शेल कंपनियां थीं जो कालधन के सफेद बनाने के लिए इस्तेमाल की जातीं थीं। कई कम्पनियां ऐसी थीं जो कोई काम कर ही नहीं रहीं थीं लेकिन उनके खातों में धन आ रहा था। अभी यह पता करना मुश्किल है कि इन कंपनियों ने कितनों के वारे-न्यारे किए। उम्मीद है पूरी छानबीन के बाद भी पूरा घोटाला राशि सामने न आ पाए। कारण इसमें वे बड़े नाम शामिल है, जिनकी पहुंच सत्ता के केंद्र तक थी, है, और रहेगी।

सरकार चाहे तो शेल कंपनियां बनाकर धनों का वारा-न्यारा करने वाले लोगों के लिए सरकार की कार्रवाई भय निरोधक की भूमिका अदा कर सकती है। इन कंपनियों से जुड़े 3,09 लाख निदेशकों को अयोग्य भी घोषित किया जा चुका है। पंजीकरण रद्द हो जाने वाली कई कंपनियों ने पुन: पंजीकरण बहाली के आवेदन भी किए हैं। उनका तर्क है कि इन्होंने कुछ गलत नहीं किया है। ये  मामले राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के पास भेज दिए गये हैं, किंतु ऐसी कंपनियों की संख्या अभी 1200 से कम ही है जो रद्द होने वाले की संख्या में इनका अनुपात लगभग नगण्य है। इससे यह प्रमाणित होता है कि ज्यादातर कंपनियां धोखाधड़ी में शामिल रही होंगी।

सरकार इस बात की भी समय-समय पर समीक्षा करना चाहिए है कि जिनका पंजीयन रद्द किया गया उनके खिलाफ कार्रवाई क्या हुई? और उन अधिकारियों को तो बिलकुल नहीं बख्शा जाना चाहिए जो इसके लिए जिम्मेवार हैं। वास्तव में केवल पंजीयन रद्द करना और रिकॉर्ड से उनका नाम हटाना ही पर्याप्त नहीं है। इसकी तो आयोग बनाकर जांच होनी चाहिए संबंधित सरकारी विभागों की मिलीभगत के बगैर यह ऐसा भ्रष्टाचार संभव ही नहीं है। इसलिए केवल निदेशकों तक कार्रवाई सीमित रखना अधूरा निर्णय है, जो कहीं से न्याय संगत नहीं है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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