सिर्फ दिल्ली ही नहीं, 13 राज्य फंसे हैं लाभ का पद मामले में | NATIONAL NEWS

नई दिल्ली। OFFICE OF PROFIT मामले में चुनाव आयोग ने दिल्ली की ARVIND KEJRIWAL GOVERNMENT के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया। इसी के साथ ELECTION COMMISSION पर सवालों के हमले शुरू हो गए हैं। बताया जा रहा है कि भारत के 13 राज्य इस मामले में फंसे हुए हैं। विवाद जारी है। कुछ मामले हाईकोर्ट में हैं। कुछ राज्यों ने कानून बनाकर लाभ के पद को बिना लाभ का पद घोषित कर दिया। अब इस पर भी विवाद है। सवाल यह उठ रहा है कि दिल्ली के मामले में ही चुनाव आयोग ने उतावलापन क्यों दिखाया। 

पश्चिम बंगालः  ममता बनर्जी सरकार ने 24 विधायकों की संसदीय सचिव के तौर पर नियुक्ति की थी। कलकत्ता हाईकोर्ट ने असंवैधानिक बताया था। मामला सुप्रीम कोर्ट में विधाचाराधीन है।
कर्नाटकः कर्नाटक सरकार ने 11 विधायक और विधान परिषद सदस्यों को संसदीय सचिव के तौर पर नियुक्ति की थी। मामला वहां की हाईकोर्ट में विचाराधीन है।
राजस्‍थानः राजस्‍‌थान सरकार ने इसी धारा पर चलते हुए 10 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की थी। वे राज्य मंत्री के स्तर का दर्जा प्राप्त हैं। इसके लिए अक्तूबर 2017 में एक कानून भी पास करा लिया गया। इसे वहां की हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।

ओडिशाः ओडिशा सरकार ने साल 2016 में 20 विधायकों की नियुक्ति जिला योजना समति के प्रमुख के तौर पर की थी और इन्हें राज्य मंत्री की हैसियत की सुविधाएं मिलने लगी थीं, इसके वहां एक कानून में संशोधन किया गया था। इन सभी विधायकों को गाड़ी और सचिव सहायक की सुविधाएं मिल रही हैं पर इन्हें कोई अतिरिक्त वेतनमान नहीं मिलता। 

तेलंगानाः तेलंगाना सरकार ने छह विधायकों को संसदी सचिव बनाया था। साल 2014 में कानून बनाकर इन विधायकों को केंद्रीय मंत्री का सा दर्जा दिला दिया था। साल 2016 में हाईकोर्ट ने इन नियुक्तियों को रद्द कर दिया।

पूर्वोत्तर भारत के पांच प्रदेशः अरसे तक नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश दोनों में 26-26 संसदीय सचिव रहे। साल 2004 में असम हाईकोर्ट ने इन पदों को असंवैधानिक बताया था। इसके बाद मणिपुर से भी 11 और मिजोरम से 7 संसचीय सच‌िवों ने इस्तीफा दिया था। इसी तरह के मेघालय हाईकोर्ट के एक फैसले में मेघालय के 17 संसदीय सचिवों को अवैध ठहराया था, जिसके बाद उन सभी इस्तीफा दे दिया था।

हरियाणा व पंजाबः पिछले साल जुलाई में पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा चार विधायकों की मुख्य संसदीय सचिव के पद पर हुई नियुक्तियों के एक पुराने मामले में इन्हें असंवैधिनिक करार दिया था। जबकि पंजाब की अकाली दल व बीजेपी सरकार के 18 विधायकों के इसी पद को खत्म किया था। बाद में इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में स्टे के लिए अर्जी दी गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगाने से मना कर दिया है।

छत्तीसगढ़- छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार भी विधायकों को संसदीय सचिव पद पर नियुक्त करने को लेकर विवादों से घिर चुके है। बीजेपी के 11 विधायकों को राज्य सरकार ने ऐसे पद पर नियुक्त किया था।

क्या होता है संसदीय सचिव
हालिया मामला आप विधायकों को संसदीय सचिव बनाए जाने का है। किसी भी शख्स के संसदीय सचिव नियुक्त होने पर इन्हें अपने कर्तव्यों के साथ अपने वरिष्ठ मंत्री की सहायता करनी होती है। कुछ-कुछ देशों में इन्हें सहायक मंत्री के तौर पर काम कराया जाता है। भारत समेत राष्ट्रमंडल देश ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में प्रधानमंत्री को खुद के लिए या अपनी राजनीतिक पार्टी के कैबिनेट मंत्रियों की सहायता के लिए संसदीय सचिवों की नियुक्ति करनी होती है। राज्यों में यही काम मुख्यमंत्री करते हैं। यह पद मिलने में विधायकों को राज्य मंत्री सरीखा दर्जा मिल जाता है और वाहन भत्ता समेत कुछ विशेष सुविधाएं भी मिलतीं हैं। 

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