या तो कहानी झूठी है, या फिर बच्चा बिगड़ गया | SHIVRAJ SINGH CHOUHAN REVIEW

शैलेन्द्र सरल/भोपाल। शिवराज सिंह चौहान ने मप्र में मुख्यमंत्री रहते हुए 12 साल पूरे कर लिए। इस अवसर पर उनके जीवन के हर पहलू को प्रकाश में लाया जा रहा है। समर्थक गुणगान कर रहे हैं तो विरोधी तंज कस रहे हैं। सीएम खुद अपनी सफलता का राज भी बता रहे हैं। यह सबकुछ तो राजनीति है। चलती रहेगी, लेकिन इस बीच एक विचारणीय बिन्दु भी सामने आया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपनी जिंदगी का पहला आंदोलन 9 साल की उम्र में किया था। चौंकाने वाली बात यह है कि आज सीएम बनने के बाद वो विरोध प्रदर्शन को भी पसंद नहीं करते। यदि किसी ने नारे लगाए तो नाराज हो जाते हैं। 

लोग बताते हैं कि शिवराज सिंह ने 9 साल की उम्र में अपने ही गांव में मजदूरों की मेहनत का पैसा दोगुना करने के लिए आंदोलन छेड़ दिया था। शिवराज के आंदोलन की इस आग ने सभी मजदूरों को एकसाथ कर दिया था और सभी ने हड़ताल में हिस्सा लेकर अपना हक मांगा था और उनकी मांग भी पूरी हो गई थी। 

मजदूरों को एकजुट किया, पूरे गांव में घूमे 

शिवराज सिंह कई सभाओं में यह दिलचस्प किस्सा बताते रहते हैं। उन्होंने बताया था कि जब वे 9-10 साल के थे, तब नर्मदा के तट पर एक दिन बूढ़े बाबा के चबूतरे पर उन्होंने ग्रामीण मजदूरों को एकजुट किया था और उनसे बोले- दो गुना मजदूरी मिलने तक काम बंद कर दो। मजदूरों का जुलूस लेकर शिवराज नारे लगाते हुए पूरे गांव में घूमते रहे। जैत गांव में 20-25 मजदूरों के साथ एक बच्चा नारे लगाते घूम रहा था, मजदूरों का शोषण बंद करो, ढाई पाई नहीं-पांच पाई दो। सभी हैरान थे।

चाचा ने पीटा फिर भी डटे रहे
घर लौटे तो चाचा आग-बबूला हो रहे थे, क्योंकि शिवराज के प्रोत्साहन करने से परिवार के मजदूरों ने भी हड़ताल कर दी थी। इस पर चाचा ने शिवराज सिंह की पिटाई कर दी। पिटाई करते हुए चाचा उन्हें पशुओं के बाड़े में ले गए और डांटते हुए बोले- अब तुम इन पशुओं का गोबर उठाओ, इन्हें चारा डालो और जंगल में चराने ले जाओ। शिवराज ने उनकी बात मान ली और यह पूरा काम पूरी लगन के साथ किया। इसके साथ ही उन्होंने मजदूरों को तब तक काम पर नहीं आने दिया, जब तक पूरे गांव ने मजदूरी दोगुनी नहीं कर दी।

या तो ये कहानी गलत है, या फिर बच्चा बिगड़ गया

अब हालात यह हैं कि सीएम शिवराज सिंह चौहान अपनी सरकार के विरुद्ध होने वाले हर विरोध प्रदर्शन को रोकने की कोशिश करते हैं। यहां तक कि आंदोलनकारियों में फूट डलवा देते हैं। आंदोलन समाप्त करवाने के लिए झूठी घोषणाएं कर देते हैं। लाठीचार्ज और कानूनी सख्ती से आंदोलन रोकने के तो कई उदाहरण दर्ज हैं। बात सिर्फ इतनी सी है कि या तो ऊपर लिखी गई कहानी गलत है या फिर वो बच्चा बिगड़ गया। उसे सत्ता का स्वाद लग गया है। अब वो न्याय और लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखता। 

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