शिवराज सिंह ने किसान छोड़ महिलाओं पर फोकस किया | mp news

भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी चौथी पारी के लिए थोकबंद वोटों की तलाश में हैं। उन्हे मालूम है कि जिन वोटर्स ने उन्हे दूसरी और तीसरी पारी में जिताया वो अब नाराज हो गए हैं। उन्हे मनाना काफी मुश्किल है। इसलिए विधानसभा 2018 जीतने के लिए कुछ नया चाहिए। किसानों की राजनीति करने वाले शिवराज सिंह ने इसी योजना के तहत दलित कार्ड पर काम किया। 'माई का लाल' जैसा नुक्सानदायक बयान भी दे दिया लेकिन फिर भी दलित वोटर्स की तरफ से वो रेस्पांस नहीं मिला जिसकी उम्मीद थी इसलिए अब सीएम ने महिलाओं पर फोकस कर दिया है। अब उनके हर भाषण और कार्यक्रम में महिलाएं नजर आने लगीं हैं। मजेदार तो यह है कि कांग्रेस के पास अभी तक शिवराज सिंह के इस अभियान की कोई काट ही नहीं है।

किसानों की राजनीति ने दिलाई थी सफलता

सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपनी राजनीति की शुरूआत बड़े किसानों के यहां काम करने वाले किसान मजदूरों से की थी। बचपन से लेकर 2013 तक किसान और खेती के नाम पर वो हर चुनाव जीतते आए। किसानों को उन्होंने कई सपने दिखाए। घोषणाएं कीं। किसानों ने भी उन्हे थोकबंद वोट दिए। बतौर सीएम उनकी दूसरी और तीसरी पारी में किसान वोटर्स का बड़ा योगदान था। 2013 के चुनाव में तो जब कांग्रेस को पूरा यकीन था कि भाजपा हार जाएगी, शिवराज सिंह का किसान कार्ड सफलतापूर्वक चला और जबर्दस्त बहुमत हासिल किया। 

पूरी ताकत से खेला था दलित कार्ड, लेकिन...

जब किसान नाराज हुए और सवार करने लगे तो शिवराज सिंह के रणनीतिकारों को समझ आ गया कि जिस तरह 2013 में थोकबंद वोटिंग का फायदा मिला था, इस बार ऐसा ही थोकबंद नुक्सान हो सकता है। भरपाई के लिए दलित कार्ड खेला। 'माई का लाल' जैसा जोखिम भरा बयान भी दिया। तब शायद शिवराज सिंह को यकीन नहीं था कि इसका विरोध भी हो सकता है। अनारक्षित वर्ग ने 'माई का लाल' का भारी विरोध किया। हालात यह बने ​कि पारंपरिक वोटबैंक भी खतरे में चला गया। इधर उम्मीद थी कि शिवराज सिंह दलितों के मसीहा कहलाएंगे परंतु ऐसा भी नहीं हुआ। दलितों ने उन्हे कंधों पर नहीं बिठाया। उल्टा प्रमोशन में आरक्षण मामले में सीएम पर दवाब बनाया गया। 

नर्मदा सेवा यात्रा से भरपाई की कोशिश

किसान और दलित से उम्मीदें खत्म होने के बाद सीएम शिवराज सिंह ने नर्मदा सेवा यात्रा का आयोजन किया। देश विदेश तक इसका प्रचार कराया गया। फोकस था 100 से ज्यादा सीटों पर अपना प्रभाव जमाना। नर्मदा की लहरों पर चुनाव की कश्ती पार लगाना। काफी कुछ हासिल भी हुआ लेकिन वो उतना नहीं है जितनी की उम्मीद थी। उल्टा जो कुछ बोया था उसके कटने से पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पांव-पांव परिक्रमा पर निकल गए। कोई और समझे ना समझे लेकिन शिवराज सिंह पांव-पांव की पॉवर जानते हैं। पांव-पांव के निशान हेलीकॉप्टर की उड़ान से ज्यादा असर डालते हैं। शिवराज सिंह के पास अब ना तो समय है और ना ही स्वास्थ्य इसलिए पांव-पांव नहीं चल सकते। समस्या यह है कि अब क्या। 

यूपी से मिला आइडिया और बनी रणनीति

उत्तप्रदेश के चुनाव परिणाम ने शिवराज सिंह को एक नया आइडिया दिया। वहां तीन तलाक मुद्दे के कारण मुस्लिम महिलाओं ने भाजपा के लिए थोकबंद वोटिंग की थी। नतीजे क्या आए सबको पता है। अत: शिवराज सिंह ने भी महिलाओं को फोकस कर लिया। तीन तलाक पर मोदी सरकार कानून बनाने जा रही है। धन्यवाद वोटिंग 2018 में भाजपा को मिल ही जाएगी लेकिन ये पर्याप्त नहीं है। इसीलिए गैंगरेप के आरोपियों को सजा ए मौत का कानून बनाया और महिलाओं पर फोकस शुरू कर दिया। अब सीएम शिवराज सिंह के हर भाषण हर कार्यक्रम मेें महिलाओं को महत्व दिया जा रहा है। रणनीतिकारों का मानना है कि महिलाएं थोड़ी जागरुक हो गईं हैं। वो चुपके से अपने पति की पसंद के खिलाफ भी वोटिंग कर देतीं हैं। बस अब यही टारगेट है। मजेदार तो यह है कि कांग्रेस के पास इसकी कोई काट नहीं है। 

सब नाराज हैं लेकिन मप्र में महिलाएं नाराज नहीं हैं

सीएम शिवराज सिंह की सरकार से समाज का लगभग हर वर्ग नाराज है। किसान की नाराजगी रिकॉर्ड में दर्ज हो चुकी है। कर्मचारियों से भी उतनी मदद नहीं मिलेगी। व्यापमं के कारण युवा वर्ग नाराज है। पंचायतों के सरपंच सचिव नाराज हैं। जीएसटी के कारण व्यापारी नाराज है। बेतहाशा टैक्स थोपे इसलिए मिडिल क्लास नाराज है लेकिन महिलाओं के खिलाफ शिवराज सिंह सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे वो नाराज हो जाएं। भारत में सबसे ज्यादा बलात्कार मध्यप्रदेश में होते हैं परंतु कांग्रेस इसे महिलाओं का मुद्दा नहीं बना पाई। शिवराज सिंह ने कानून बनाकर इसका फायदा उठा लिया। यदि एक बार महिलाओं के मन में जगह बन गई तो सारे के सारे सर्वे और अनुमान धरे के धरे रह जाएंगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया अकेले क्या, पूरी कांग्रेस एकजुट हो जाए तब भी कुछ नहीं कर पाएगी। 

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