कॉलेजों में पर्यावरण विज्ञान के प्राध्यापकों की नियुक्तियां कब होंगी | Environmental Science

डॉ० यशपाल सिंह नरवरिया/नई दिल्ली। हमारे देश के 100 विश्वविद्यालयों में लगभग 35 वर्षों से पर्यावरण विज्ञान में स्‍नातक, स्‍नातकोत्‍तर, एम.फिल./पी.एच.डी. की डिग्री हो रही हैं। इसके अलावा भारत के माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के दिनांक 06.12.1999 के एक आदेश के तहत स्‍नातक स्‍तर के सभी पाठक्रमों में पर्यावरण अध्‍ययन विषय अनिवार्य विषय के रूप में हमारे देश के सभी विश्वविद्यालयों एवं उनके अन्‍तर्गत आने वाले सभी महाविद्यालय में लागू हैं। आज पर्यावरण संरक्षण के लिए हमारे देश के साथ-साथ समूचा विश्‍व चिंतित है लेकिन वही आज हमारे देश में पर्यावरण विज्ञान/पर्यावरण अध्‍ययन के अध्‍यापन कार्य के लिए सहायक प्राध्‍यापक, सह प्राध्‍यापक एवं प्राध्‍यापक के पद पर्याप्‍त संख्‍या में स्‍वीकृत नहीं और यदि किसी विश्वविद्यालयों में मद स्‍वीकृत है तो उन पदों पर सहायक प्राध्‍यापक एवं प्राध्‍यापक की नियुक्‍ति नहीं की गई है और यदि किसी विश्वविद्यालयों में नियुक्‍ति की गई है तो वह सहायक प्राध्‍यापक एवं प्राध्‍यापक पर्यावरण विज्ञान में स्‍नातकोत्‍तर, एम.फिल./पी.एच.डी. की डिग्री (योग्‍यता) नहीं रखते हैं। 

उदाहरण के तौर पर जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्‍वालियर में  पिछले 25 वर्षों से पर्यावरण विज्ञान में स्‍नातकोत्‍तर/एम.फिल./पी.एच.डी. के कोर्सों का अध्‍यापन कार्य होता है पर पिछले 25 वर्षों से सहायक प्राध्‍यापक एवं प्राध्‍यापक की नियुक्‍ति नहीं की गई थी और वर्ष 2013 में एक सह प्राध्‍यापक की नियुक्‍ति गई है जो कि नियमों का उल्‍लंघन करके सह प्राध्‍यापक की नियुक्‍ति की गई है। पर्यावरण विज्ञान विषय में स्‍नातकोत्‍तर एवं पी.एच.डी. उपाधी वाले अनेक अभ्‍यर्थी को नजर अंदाज करके भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त चयन समिति द्वारा रसायन विज्ञान विषय में स्‍नातकोत्‍तर एवं पी.एच.डी. अभ्‍यर्थी का चयन किया गया।  वही दिल्‍ली विश्वविद्यालयों के कई महाविद्यालय एवं केन्‍दीय विश्‍वविद्यालयों में सहायक प्राध्‍यापक एवं प्राध्‍यापक की नियुक्‍ति घोटाला हुआ है जिसमे विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमो की अनदेखी कर  नियुक्‍तिा की जा रही हैं।

आज देश के ज्‍यादातर विश्‍वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान/पर्यावरण अध्‍ययन के अध्‍यापन कार्य के साथ खिलवाड़ की जा रही है और Interdisciplinary Subject के नाम पर पर्यावरण विज्ञान के स्‍वीकृत पदों पर किसी भी अन्‍य विषय में स्‍नातकोततर, एम.फिल./पी.एच.डी. डिग्री प्राप्‍त की नियुक्‍ति सहायक प्राध्‍यापक, सह प्राध्‍यापक एवं प्राध्‍यापक के पदों पर कर दी जाती हैं और पर्यावरण विज्ञान में उच्‍च शिक्षित बेरोजगार अपने आपको ठगा महसूस करता है । भारत के माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने दिनांक 06.12.1999 के एक आदेश द्वारा याचिका संख्‍या 860/1991 में निर्देश दिया था कि हमारे देश में सभी विश्‍वविद्यालय एवं उनके अंतर्गत आने वाले सभी महाविद्यालय में पर्यावरण अध्‍ययन विषय का अध्‍यापन कार्य एक अनिवार्य विषय के रूप मे लागू किया जाये। लेकिन देश का यह दुर्भाग्‍य है कि पर्यावरण अध्‍ययन विषय एक अनिवार्य विषय के रूप में लागू तो हुआ लेकिन पर्यावरण अध्‍ययन विषय के अध्‍यापन कार्य के लिए एक भी सहायक प्राध्‍यापक, सह प्राध्‍यापक एवं प्राध्‍यपाक पद स्‍वीकृत नहीं हैं और विषय को किसी भी विषय (भारत के माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय एक अन्‍य आदेश में लिखा है कि हिन्‍दी, अंग्रेजी, संस्‍कृत, भूगोल, इतिहास, कंप्‍यूटर, सामाजिक विज्ञान, गणित) के सहायक प्राध्‍यापक, सह प्राध्‍यापक एवं प्राध्‍यापक के द्वारा पढ़ाया जा रहा है।  

भारत के माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय एक अन्‍य आदेश में अनुसार दिनांक 17.07.2014 के एक आदेश द्वारा याचिका संख्‍या 12/2014 में निर्देश दिया था जिसमें कहा गया है कि पर्यावरण अध्‍ययन विषय के अध्‍यापन कार्यक्रम के लिए सहायक प्राध्‍यापक, सह प्राध्‍यापक एवं प्राध्‍यापक के पद के नियुक्‍ति के लिए निर्धारित शैक्षणिक योग्‍यता (न्‍यूनतम अर्हतायें) जो कि पर्यावरण विज्ञान स्‍नातकोत्‍तर, के साथ पर्यावरण विज्ञान में नेट और स्‍लेट/पर्यावरण विज्ञान में पी.एच.डी. डिग्री में शैक्षणिक योग्‍यता वाले आवेदक की नियुक्‍ति की जाये।

आज हमारे देश में पर्यावरण शिक्षा एक मजाक बन कर रह गई है। जो कि माननीय सवोच्‍च न्‍यायालय के आदेश की खुली अवहेलना है और विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के आदेश की अवहेलना के लिए जिम्‍मेदार हैं और आज विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा हमारे देश के लगभग 1 लाख (संसद के वर्तमान सत्र के एक प्रश्‍न के अनुसार हमारे देश में वर्ष 2011 में वर्ष 2004 तक पिछले तीन वर्षों में 781 छात्रों ने पर्यावरण विज्ञान में एम. फिल/पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्‍त की थी। लगभग भारत में प्रति वर्ष 300 छात्र एवं छात्राएं पर्यावरण विज्ञान में एम. फिल./पी. एच. डी. डिग्री प्राप्‍त करते हैं एवं लगभग 1000 छात्र एवं छात्राएं पर्यावरण विज्ञान में नेट और स्‍लेट करते हैं। 10000 छात्र एवं छात्राएं पर्यावरण विज्ञान में पर्यावरण विज्ञान स्‍नातकोत्‍तर, डिग्री प्राप्‍त करत हैं 100 विश्‍वविद्यालय में लगभग 3 वर्षों से पर्यावरण विज्ञान में स्‍नातक, स्‍नातकोतर, एम. फिल./ पी.एच. डी. की डिग्री हो रही है। नौजवानों जोकि पर्यावरण विज्ञान विषय में स्‍नातकोत्‍तर/एम. फिल./पी.एच.डी. डिग्री प्राप्‍त बेरोजगारों के साथ खिलवाड़ की जा रही है। हमारे देश के सभी विश्‍वविद्यालय एवं महाविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान को छोड़कर सभी विषयों में सहायक प्राध्‍यापक, सह प्राध्‍यापक एवं प्राध्‍यापक के पद स्‍वीकृत पर पर्यावरण विज्ञान में क्‍यों नहीं हैं?

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