बड़ा सवाल सेना का राजनीतिकरण ? | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। यह बहुत ही संवेदनशील और गंभीर मुद्दा है कि देश की सेना के प्रमुख बिपिन रावत यह महसूस कर रहे हैं कि सैन्य बलों का राजनीतिकरण हुआ है। यह अलग बात है कि उन्होंने किसी खास घटना, व्यक्ति या सरकार का नाम नहीं लिया जो इसके लिए जिम्मेदार हो। फिर भी जब उन्होंने इस मुद्दे को सार्वजनिक मंच पर उठाया है, तो इसका कोई अर्थ अवश्य है। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारतीय सेना का अतीत और वर्तमान दोनों स्वर्णिम हैं। हमारे सैन्य बल में हर धर्म, जाति और संप्रदाय के लोग हैं और सभी धर्मनिरपेक्ष और जातिनिरपेक्ष माहौल में रहकर सीमा की सुरक्षा करते हैं। वैसे आज तक ऐसी कोई घटना नहीं हुई जिसके आधार पर सेना के धर्मनिरपेक्ष आचरण पर कोई सवाल उठा हो। इसीलिए यह कहा जा सकता है कि भारतीय लोकतंत्र की सफलता में हमारी सेना की धर्मनिरपेक्षता और गैर-राजनीतिक आचरण की बड़ी महती भूमिका रही है।

देश में पिछले कुछ दिनों में सेना से जुड़े कुछ मुद्दे राजनीतिक विमर्श का विषय बने। वन रैंक, वन पेंशन, दो वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की वरीयता की अनदेखी करके जनरल बिपिन रावत को सेना प्रमुख बनाया जाना। इन मुद्दों पर सरकार के फैसले को लेकर विपक्षी दलों ने सवाल खड़े किए और इन्हें सार्वजनिक विमर्श का विषय बना दिया। समान्य चर्चा में भी ये मुद्दे छाए रहे।सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर भी सरकार और विपक्ष का रुख अलग-अलग रहा है। जो नहीं होना चाहिए था। इसका राजनीतिक फायदा उठाने में पड़ोसी और प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान भी पीछे नहीं रहा। ऐसा लगता है सेना प्रमुख का इशारा इसी ओर है, जरूरत उनके इशारे को समझने की है| इतिहास गवाह है कि औपनिवेशिक सत्ता से आजाद हुए एशिया-अफ्रीका के जिन-जिन देशों में सेना का राजनीतिकरण हुआ वहां लोकतंत्र सफल नहीं हुआ।

हकीकत में सेना का राजनीतिकरण और लोकतंत्रीकरण दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं। अब यह बहस का मुद्दा हो सकता है कि सेना प्रमुख जिसे राजनीतिकरण बता रहे हैं, उसका मतलब सेना में लोकतंत्रीकरण से तो नहीं है? यह सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि उन्होंने यह भी कहा है कि एक वक्त था, जब सेना के भीतर आम बातचीत में महिला और राजनीति के लिए कोई जगह नहीं थी। ये दोनों विषय धीरे-धीरे विमर्श में ही सही अपनी जगह पर आ कर रहे हैं। मुद्दा यह है कि अगर सेना प्रमुख का यह विश्वास है कि सैन्य बलों का राजनीतिकरण हो रहा है, तो इस प्रवृत्ति पर तत्काल प्रभाव से रोक लगनी चाहिए। इसमें सत्ता पक्ष की जिम्मेदारी ज्यादा है तो विपक्ष की भी कम नहीं है। दोनों को मिल कर इसे रोकना होगा। देश हिता में यह जरूरी भी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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