कोई भी कम नहीं, “धर्मनिरपेक्ष” तत्व को कम करने में | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। पता नहीं देश की राजनीति को चलाने का दम भरने वाली पार्टियाँ चुनाव के दौरान संविधान के “धर्मनिरपेक्ष” तत्व को क्यों अनदेखा करने पर उतारू हो जाती है। देश का मतदाता जिसे ये हकीकत मालूम होती है, अब निर्णय दूसरे प्रकार से करने लगा है। उत्तर प्रदेश की स्थानीय संस्थाओं के चुनाव में इस मुद्दे को लेकर भी मत प्रतिशत इधर-उधर हुआ है। देश में धर्म आधारित राजनीति हो रही हैं। राजनीति का धर्म तो होना चाहिए लेकिन धर्म की राजनीति नहीं होनी चाहिए। जो काम बीजेपी ने पिछले 25 सालों में श्रीराम के नाम पर किया, और कर रही है। वही काम कांग्रेस जनेऊ और शिवभक्ति के नाम पर करना चाहती है। 

लेकिन कांग्रेस को यह समझना पड़ेगा कि बीजेपी सिर्फ हिंदुत्व के सहारे अपने उत्कर्ष पर नहीं पहुंची है, इसके पीछे कथित गुजरात मॉडल और विकास के लिए किए गए वादों ने भी अहम भूमिका निभाई है। लोकसभा चुनाव के बाद भी अगर बीजेपी की लहर कायम है तो उसकी वजह है लोगों में बीजेपी की कार्यपद्धति पर विश्वास, जिस दिन बीजेपी के नेताओं का भ्रष्टाचार भी कांग्रेस की तरह लोगों के सामने आ गया, उसके बाद के चुनाव में निश्चित ही बीजेपी को सत्ता के सिंहासन से उतार कर फेंक देने में जनता देर नहीं लगाएगी।

किसी पार्टी की स्थायी छवि बनने में दशकों लग जाते हैं।बीजेपी ने यदि अपनी ‘हिंदू हित’ वाली राष्ट्रवादी छवि बनाई है, तो उसमें सालों लगे हैं। इस छवि के साथ यदि किसी रैली में भाषण देते हुए नरेंद्र  मोदी अजान के समय रुक जाते हैं तो उसे मुस्लिम तुष्टीकरण के तौर पर नहीं देखा जाएगा क्योंकि ‘हिंदू हित’ वाली राष्ट्रवादी छवि के साथ बीजेपी को जितना मिला है, वह उनका और उनकी पार्टी का चरम है। इससे आगे यदि बीजेपी जाती है तो ‘छवियों’ से बाहर निकलकर पार्टी को जमीन पर विकास दिखाना होगा। इसके विपरीत अपने पूरे इतिहास में मुस्लिम तुष्टीकरण के सहारे ही राजनीति चमकाने वाली कांग्रेस के नेता यदि अचानक मंदिर जाने लगते हैं, माथे पर चंदन का लेप लगाने लगते हैं, खुद को शिवभक्त बताने लगते हैं भले ही वे बिना किसी लालच के कर रहे हों, आम व्यक्ति इसे कांग्रेस द्वारा अपनी ‘छवि परिवर्तन’ की कोशिश को चुनावी हथकंडे की तरह  ही  देख समझ रहा है।

पार्टियों  को अगर यह लगता है कि आम लोग सबकुछ भूल जाते हैं तो यह उनकी गलतफहमी है। जैसे आज कांग्रेसी प्रवक्ता हिंदू वोटबैंक साधने के लिए अयोध्या में मंदिर का ताला खुलवाने का तर्क दे रहे हों लेकिन लोग श्रीरामसेतु पर सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के दिए गये तर्कों  को नहीं भूल सकते। गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार बताते हुए 15 सालों तक जिस मोदी को हत्यारा, खून का दलाल और न जानें क्या-क्या कहा गया लेकिन गोधरा में हुए नरसंहार पर चुप्पी साधे रखी गई, इससे दोहरे चरित्र साफ़ दिखते हैं। दोनों के दामन अलग- अलग रंगों से सराबोर हैं, लोकतंत्र कायम रखने के लिए पार्टियों को बहकाने से बचना चाहिए,और नागरिकों को बहकने से।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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