राकेश दुबे@प्रतिदिन। दिल्ली के मैक्स अस्पताल में जो हुआ, वह अक्षम्य है। इसके लिए बलि के बकरे उन डाक्टरों के बनने का अनुमान है जो हाल ही एमडी करके इस व्यवसाय में आये हैं। ये कितने संघर्ष के बाद ये यहाँ तक पहुंचे है। इसकी संघर्ष गाथा भी सामने आई है। धन और परिश्रम के अलावा तीन साल के एमडी या एमएस की परीक्षा के लिए इन्हें जो करना होता है उस पर भी विचार जरूरी है खासकर पहले वर्ष में प्रतिदिन औसत 4 घंटे की नींद भी युवा चिकित्सकों को नहीं मिल पाती।कुछ विभागों में तो लगातार एक वर्ष वार्ड में रहना होता है। न घर, न हॉस्टल। बहुत डांट पड़ती है अपने सीनियर और प्रोफेसर से हर छोटी सी गलती पर भी।
मरीजों के प्रति व्यवहार और देखरेख पर बहुत से सेमीनार भी होते हैं। बीमारी, डिप्रेशन भी कुछ युवा चिकित्सकों को इस दौरान घेर लेता है। स्त्री रोग में एमएस करने वाली लड़कियां तो आये दिन रोती मिलती हैं। एम्स में प्रति 2 वर्ष में एक आत्म हत्या इन्ही दबावों के कारण होने के तर्क डाक्टर देते हैं। एम्स में प्रवेश के लाखों छात्र परीक्षा देते हैं। एम्स में कई बार बिना ग्लव्स, बिना मास्क के इन्हें काम करना होता है। अन्य जगहों की बात तो छोडिये। कई बार खाना तो दूर घंटो पानी पीने का तक उपलब्ध होते हुए नहीं पी पाते। दिन-रात लगातार काम के बाद पढ़ना भी होता है। शोध प्रबंध लिखना तो जरूरी है ही।
मानवाधिकारवादी एक हफ्ते में 40 घंटे काम की बात कहते हैं, वहीँ ये चिकित्सक कई बार लगातार 90 घंटे की ड्यूटी करते हैं। कभी कभी 40 घंटे तक सो नहीं पाते। हर सप्ताह में औसत ड्यूटी के घंटे 100 के ऊपर हो जाते हैं। छुट्टियां ले पाना भी मुश्किल होता है। मरीज चैन से सो सकें,इसलिए, रेज़िडेंट चिकित्सक जगा होता है। लापरवाह चिकित्सक, कातिल डॉक्टर, किडनी चोर डॉक्टर, डॉक्टर या हैवान जैसे विशेषण कभी भी सुनने को मिल सकते हैं।
इस संघर्ष गाथा से इतर डॉक्टर्स डे पर आईएमए ने यह चिंता जताई है कि डाक्टरी धंधे की गरिमा दांव पर लगी हुई है। दरअसल चिकित्सा के क्षेत्र में हमला चौतरफा है। देश की चिकित्सा शिक्षा प्रणाली अपनी गिरती क्वॉलिटी को लेकर पिछले एक दशक से दुनिया भर के मीडिया का निशाना बना हुई है। सन २०१० से २०१६ तक ६९ से अधिक मेडिकल कॉलेज और टीचिंग हॉस्पिटल नकल कराने और भर्ती में रिश्वत खाने में पकड़े गए हैं। देश के कुल ३९८ मेडिकल कॉलेजों में से हर छठे पर इस तरह के मामलों का मुकदमा चल रहा है। आईएमए का अनुमान है कि अभी देश में जितने लोग डॉक्टरी कर रहे हैं, उनमें लगभग आधों के पास इसकी पूरी ट्रेनिंग नहीं है। और तो और, फर्जी डिग्री बेचकर डॉक्टर बनाने का धंधा भी सिर्फ इसी देश में होता है, और उसके पीछे दिमाग किसी डाक्टर का ही होता है।
इस सब को नियंत्रित करने वाली संस्था भारतीय चिकित्सा परिषद के किस्से कहानी जग जाहिर है। ऐसे में डॉक्टरों का डर भगाने के लिए एक ऐसी नई व्यवस्था की जरूरत है, जो डाक्टरों में सेवा और मरीजों में सम्मान का भाव पैदा कर सके। डाक्टर मरीज और सरकार तीनो को अति से बचना चाहिए। देश में चिकित्सा शिक्षा की गिरती साख को रोकने में डाक्टरों की भूमिका अहम है, उन्हें लालच को तिलांजलि देना चाहिए। इस सबके मूल में लालच ही पहला कारक है,जो डाक्टरों को बीमार बनाता है और बना रहा है। इससे मैक्स जैसा कांड होता है। समग्र विचार जरूरी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।