BANK हड़प लेगा आपका पैसा: पढ़िए इस नए कानून के बारे में | NATIONAL NEWS

नई दिल्ली। बैंक में जमाकर्ता (ACCOUNT HOLDERS) का पैसा कितना सुरक्षित रहेगा, यह विवाद का विषय बना हुआ है। वजह है फाइनेंशियल रिजॉल्यूशन डिपोजिट इंश्योरेंस (FRDI BILL) बिल। यह डिपोजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGS ACT) एक्ट की जगह लेगा। कहा जा रहा है कि इससे बैंक में जमा (DEPOSIT) करने वालों का पैसा (MONEY) वापस मिलने की गारंटी नहीं रहेगी। इंडस्ट्री ऑर्गेनाइजेशन और बैंकर्स भी इसके खिलाफ हैं। हालांकि प्रधानमंत्री (PM NARENDRA MODI) और वित्त मंत्री कह चुके हैं कि पैसा पूरी तरह सुरक्षित रहेगा। बिल पर पार्लियामेंट कमेटी को विंटर सेशन में सिफारिशें देनीं थीं, लेकिन इसे बजट सेशन तक का समय दे दिया गया है।

बोर्ड के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकेगी
जानकारों के मुताबिक भारत देश का फाइनेंसियल स्ट्रक्चर रिजर्व बैंक के बजाय सरकार के हाथों में आ जाएगा। इसमें स्पेशल बोर्ड बनाने का प्रोविजन है। इसके फैसले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकेगी। इसमें प्रेसिडेंट के अलावा आरबीआई, सेबी, इरडा, पीएफआरडीए और फाइनेंस मिनिस्ट्री के रिप्रजेंटेटिव, 3 होल-टाइम और 2 इंडिपेंडेंट डायरेक्टर रहेंगे। यानी बोर्ड के 11 सदस्यों में से 7 को सरकार अप्वाइंट करेगी।

कैबिनेट ने 14 जून को बिल को मंजूरी दी थी। मानसून सेशन में इसे लोकसभा में पेश किया गया। अभी यह संसद की ज्वाइंट कमेटी के पास है। कमेटी के एक सदस्य ने बताया कि बैंकर बिल को लेकर ज्यादा चिंतित हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके प्रावधानों से बैंक डूब जाएंगे। बैंक डूबने के कगार पर आता है तो उसे बचाने का मैकेनिज्म होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि बिल जी-20 के दबाव में नहीं लाया गया है।

विवाद के 2 प्रमुख कारण
डीआईसीजीसी एक्ट में प्रावधान है कि बैंक में जितने भी पैसे हों (SAVING AND FD), बैंक दिवालिया होने पर 1 लाख रु. मिलने की गारंटी है। एफआरडीआई बिल में कितने रकम की गारंटी होगी, इस बात का जिक्र नहीं है। इसलिए लोगों को आशंका है कि यह रकम ज्यादा हो सकती है और कम भी। नए एफआरडीआई बिल के प्रावधानों के अनुसार अगर बैंक दिवालिया हुआ तो उसे संकट से निकालने की जिम्मेदारी में सामान्य डिपॉजिट करने वाले भी शामिल होंगे। उनके पैसे का इस्तेमाल बैंक को बचाने में किया जाएगा।

बिल की जरूरत क्यों पड़ी
मौजूदा कानूनों में बैंकों या दूसरी फाइनेंसियल कंपनियों के लिए इन्सॉल्वेंसी के अलग नियम नहीं हैं। कोई बड़ी रिटेल कंपनी दिवालिया हुई तो बैंकिंग सिस्टम या लोगों पर ज्यादा असर नहीं होगा लेकिन बैंक दिवालिया हुआ तो जमा करने वाले प्रभावित होंगे, बैंकिंग सिस्टम के लिए भी खतरा बढ़ेगा। 2008 में अमेरिकी बैंक दिवालिया होने लगे तो 45 लाख करोड़ रु. का बेलआउट पैकेज देकर बचाया गया। इसी के बाद जी-20 के फाइनेंशियल स्टैबिलिटी बोर्ड ने सिफारिश की कि सभी सदस्य देश बेल-इन का प्रावधान करें।

नए बिल के मुताबिक रिजॉल्यूशन कॉरपोरेशन क्या काम करेगा?
यह बैंक और बीमा जैसी फाइनेंसियल कंपनियों के जोखिम की मॉनिटरिंग करेगा। बैंक बंद होने की-नौबत आती है तो उसका रिजॉल्यूशन प्लान बनाएगा।

बेल-इन प्रावधान क्या है?
फाइनेंसियल कंपनी दिवालिया होने की नौबत आई तो उसकी एसेट-लायबिलिटी किसी और को दी जा सकती है, दूसरी कंपनी में विलय हो सकता है या कंपनी खत्म भी की जा सकती है। एक और प्रावधान है देनदारी की आंतरिक रिस्ट्रक्चरिंग का। इसी को बेल-इन कहते हैं।

बेल-आउट से कैसे अलग है बेल-इन?
बेलआउट पैकेज में बाहर से पैसे देकर मदद की जाती है। यह मदद सरकार करती है। खाताधारकों का पैसा सुरक्षित होता है। यह टैक्सपेयर्स का पैसा होता है। बेल-इन में बैंक में पैसा जमा करने वालो के पैसे का इस्तेमाल होता है।

बेल-इन में क्या किया जाएगा?
दो बातें हो सकती हैं। बैंक की देनदारी खत्म की जा सकती है या उसकी देनदारी को कर्ज या इक्विटी में बदला जा सकता है।

इसे लेकर विवाद क्यों है?
विवाद की वजह है प्रायरिटी। यह इस तरह है- डिपॉजिट इंश्योरेंस, सिक्योर्ड जमाकर्ता, कर्मचारियों का वेतन, अन-इन्श्योर्ड डिपॉजिट, अन-सिक्योर्ड जमाकर्ता, सरकार का बकाया और शेयरहोल्डर। जमा करने वाले को शेयरहोल्डर बनाया तो वह पैसे लौटाने की प्रॉयरिटी में अंत में होगा। हालांकि इसके लिए उसकी सहमति लेनी पड़ेगी।

अभी बेल-इन का प्रावधान नहीं है?
नहीं। अभी बैंक फेल होने पर या तो उसका दूसरे बैंक में विलय होता है या बंद कर दिया जाता है।

डूबने के डर से बैंक से पैसे निकाल रहे हैं लोग
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट एस.एस. सिसोदिया के अनुसार नए बिल से जमाकर्ताओं के मन में बैंकों में जमा रकम डूबने का डर समा गया है। कई बैंक मैनेजरों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि रोजाना दर्जनों लोग इस डर से पैसे निकाल रहे हैं। भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) से जुड़े नेशनल आर्गेनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स (एनओबीडब्ल्यू) के वाइस प्रेसिडेंट अश्विनी राणा ने कहा कि बैंकों से मनी विड्राल को नहीं रोका गया तो बैंकों में अफरा-तफरी का माहौल बन जाएगा।

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