प्रोफेसर ने ट्रेन में भीख मांगकर पूंजी जुटाई, 1 करोड़ का इंग्लिश मीडियम स्कूल खोला | success story

इंदौर। यदि आप समाज की सेवा के लिए कुछ करना चाहते हैं तो क्या कर सकते हैं। ज्यादातर लोग अपने फालतू समय का दान तक नहीं करते। कुछ ऊपर वाली जेब में रखा सबसे छोटा नोट निकालकर दे देते हैं परंतु मरीन इंजीनियर के रूप में करियर शुरू कर प्राइवेट कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट और देश के जाने माने संस्थान एसपी जैन मैनजमेंट कॉलेज के प्रोफेसर संदीप देसाई इससे कहीं ज्यादा कुछ किया। वो ग्रामीण बच्चों को नि:शुल्क इंग्लिश मीडियम शिक्षा देने के लिए स्कूल खोलना चाहते थे। उन्होंने मुंबई की लोकल ट्रेन में भीख मांगकर 1 करोड़ रुपए पूंजी जुटाई और 3 स्कूल खोल लिए। चौंकाने वाली बात तो यह है कि उन्हे भीख देने वाला पहला व्यक्ति मुंबई का पॉकेटमार टपोरा था जिसने 5 रुपए देते हुए कहा कि आज एक गुटखा कम खाउंगा। 

मंगलवार को एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए संदीप देसाई ने बताया कि जब नौकरी छोड़ उन्होंने संस्था की शुरुआत की तो करीब 200 कॉर्पोरेट कंपनियों से सीएसओ के तहत मदद मांगी, लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली। फिर ख्याल आया कि क्यों न उन्हीं लोगों से मदद लें, जो इन कंपनियों के उत्पाद खरीद उन्हें मुनाफा देते हैं। लोकल ट्रेन जैसी कैप्टिव ऑडियंस कहीं ओर नहीं मिलती तो बस सोच लिया कि अब यहीं से मदद लूंगा।

पहली बार जब ट्रेन में चढ़ा तो चार स्टेशन बीत गए, लेकिन भीख मांगने की हिम्मत नहीं हुई। इसके बाद शुरुआत की तो ट्रेन में ही खड़े तीन टपोरी किस्म के लड़कों में से एक मेरे पास आया और दो रुपए दिए। उसने अपने दोस्तों से कहा कि दिन का एक गुटखा कम खा लो, लेकिन शिक्षा के लिए मदद करो। 

बस इसके बाद यह सिलसिला शुरू हुआ और लोगों की मदद से 1 करोड़ से भी ज्यादा रुपए लोकल ट्रेन में भीख मांगकर ही जुटा लिए। यहां तक कि पैसे बचाने के लिए सादा पेपर पर विजिटिंग कार्ड बनाए और लोगों को दिए। आज संस्था की वैल्यू 2 करोड़ से भी अधिक है। इसके लिए सलमान खान की फाउंडेशन भी उनकी मदद कर रही है।

समाज सेवा से उतार रहे पिता का कर्ज

संदीप ने बताया कि उनकी मां एक शिक्षिका हैं और उनसे ही उन्हें इस बात की प्रेरणा मिली। वे बताते हैं कि जब मेरे दादा का देहांत हुआ था तब मेरे पिता महज दो साल के थे। लोगों ने उन्हें पढ़ाया और एक गांव से निकलकर वे मुंबई के अंग्रेजी माध्यम से कॉलेज तक पहुंचे। समाज का उनके ऊपर यह एक कर्ज था। मां ने कहा कि अब तुम्हारा समय है कि अपने पिता के इस कर्ज को उतारो और समाज को इस भलाई के बदले कुछ भला दो।

दूसरी ओर कॉलेज में पढ़ाते हुए देखा कि यहां चंद साल की पढ़ाई कर बच्चे लाखों के पैकेज पर काम करते हैं और वहीं गांव में शिक्षा का कोई स्तर ही नहीं। बस यहीं फैसला कर लिया कि अब नौकरी छोड़कर संस्था बनाना है और गरीब बच्चों के लिए कुछ करना है।

मुंबई का स्कूल बंद कर पहुंचे ग्रामीण क्षेत्र में
देसाई ने बताया कि मुंबई में आज से 17 साल पहले 300 छात्रों के साथ स्लम एरिया में इंग्लिश मीडियम स्कूल की शुरुआत की। हर साल यहां 100 से भी अधिक बच्चे बढ़ते गए। 2009 में आरटीई एक्ट के आने के बाद महसूस हुआ कि बड़े शहरों में इतने इंग्लिश मीडियम स्कूल हैं कि यदि इसके अंतर्गत वहां गरीब बच्चों को एडमिशन मिले तो नि:शुल्क स्कूल की जरूरत ही नहीं।

इसके बाद चार साल में सभी 800 बच्चों को अच्छे स्कूलों में आरटीई के अंतर्गत एडमिशन दिलाया और महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित गांव बंजारा, जहां किसान बहुत अधिक संख्या में आत्महत्या कर रहे थे, स्कूल खोला। इसके बाद राजस्थान और बिहार में भी स्कूल खोला है। उन्होंने कहा कि वे अपने जीवनकाल में 100 ऐसे स्कूल खोलना चाहते हैं, जहां गांव के गरीब बच्चों को नि:शुल्क इंग्लिश मीडियम पढ़ाई करने का मौका मिले।

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