क्या हमारे अख़लाक़ ऐसे है जिन्हे देख लोग नफरत नहीं मोहब्बत रखें | EDITORIAL

शोएब सिद्दीकी। 25 साल की अखिला अशोकन, इस्लाम कुबूल कर अब हादिया है और आज घर, समाज और कानून से लड़ रही है। हादिया की इस्लाम की तरफ रग़बत उसके साथ पढ़ने वाली दो दोस्त फ़सीना और जसीना की वजह से हुई, इन दोस्तों के अच्छे अख्लाक़ और इबादत/नमाज़ की पाबंदी को देख, अखिला अशोकन को इस्लाम जानने-समझने की ख्वाइश हुई, किताबें पढ़ी, बयानात सुने और आखिर में इस्लाम मजहब को हक़ समझकर अपनाया। अपनी मर्ज़ी से अखिला से हादिया बनी।

खामोशी से इस्लाम पर अमल करने लगी फिर कुछ महीनो बाद, घर वालों को खबर हुई तो उनकी नाराजगी और अज़ीयते झेली फिर भी ईमान पर कायम रही, हिजरत की और अपनी दोस्तों फ़सीना और जसीना से मदद ली। बाद में एक दीनी इदारे में हादिया का दाखिला होता है, और आगे चलकर शाफ़िन नाम के शक्स से निकाह करती है। जब घर वालों को निकाह की खबर होती है तो सरकारी की मदद से उसे घर में क़ैद कर दिया जाता है, काफी वक़्त अकेले रहते हुए भी, हादिया इस्लाम पर कायम रहती है।

आप सोचिए क्या अजर होगा उन बहनों (फ़सीना और जसीना) का, जिनके किरदार को देख एक लड़की इस्लाम की तरफ आती है। पर क्या हमारे अख़लाक़ ऐसे है जिन्हे देख लोग इस्लाम से नफरत नहीं बल्कि मोहब्बत रखें, अफसोस आज हमारे अंदर इतना डर है की हमें लोगो को इस्लाम की बात करने और एक रब के बारे में बताने पर भी खौफ करते है।

हिम्मत तो हादिया में है, जो असल कुर्बानी देते हुए दीन का हक़ अदा कर रही है, कई सालो से, हादिया और उसका शोहर शफ़ीन, हमले और इलज़ामत झेल रहे है, कभी लव जिहाद या आतंकवाद के नाम पर तो कभी कहा गया कि लड़की का दिमाग काबू में नहीं, पर जो जवाब हादिया ने हाल में सुप्रीम कोर्ट में दिये, उसे सुन आप भी इसके काबिल ज़हन कि तारीफ करेंगे।

जब अदालत ने हादिया से उसके ख्वाब जानने चाहे तो उसका कहना था कि में आज़ादी से अपने दीन-इस्लाम पर अमल करते हुए शोहर के साथ रहना चाहती हूँ। जब अदालत ने कहा कि सरकार उसकी मदद करेगी पढ़ाई का खर्च उठाने में, तब हादिया का जवाब था कि मुझे सरकार से कोई मदद दरकार नहीं, मेरा शोहर जिन्दा है और वह ही मेरा खर्च उठाएंगे।

आज जरूरत है कि हम इस्लाम को सबसे पहले खुद समझे और इसकी तालीमात दूसरों में आम करे, लोगो को अल्लाह के बारे में बताए जो एक अकेला है, उन्हे शिर्क करने से बचाए, उन्हे तमाम भेजे हुए पैगम्बरो की दावत से अवगत कराये, उन्हें रब के भेजे आखिरी ईश्वरीय ग्रन्थ-क़ुरान बताये, उन्हें बताये की क्यों इस्लाम मज़हब आज इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी सबसे तेज़ी से फैलने वाला मज़हब है, वजह है कि लोग सुना-सुनी नहीं बल्कि खुद समझकर और पढ़कर, इस मज़हब को अपना रहे है। 

याद रखिए कि रब को हमारी जरूरत नहीं, हमे रब की जरूरत है, अल्लाह तो अपने काम लेगा, हम नहीं करेंगे तो हादिया जैसे आएंगे।
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