ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिग्विजय सिंह का झंडा उठाया

उपदेश अवस्थी/भोपाल। भारत सरकार के पूर्व मंत्री, सांसद और इस सबसे ज्यादा मप्र के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित राजघराने के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम कैंडिडेटशिप के लिए हर आखरी कोशिश कर रहे हैं। किसी जमाने में ग्वालियर के महल से मप्र का सीएम तय हुआ था आज उसी महल का महाराज कांग्रेस के उस नेता का झंडा उठाता दिखाई दे रहा है जिसने उसके पिता कैलाशवासी माधवराव सिंधिया की राह मेंं हरदम रोड़े अटकाए। कभी किसी प्रमुख पद तक पहुंचने ही नहीं दिया। 

खबर आ रही है कि गैर राजनैतिक, धार्मिक एवं पूरी तरह से व्यक्तिगत नर्मदा परिक्रमा कर रहे दिग्विजय सिंह के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया मंगलवार को 14 किमी तक रहे। सुबह इंदौर से निकले सिंधिया मोरटक्का पहुंचे तो पता चला कि सिंह 7 किमी पीछे हैं तो सिंधिया पीछे की तरफ चल दिए और दिग्विजय सिंह के साथ यात्रा में भाग लिया। वो दिग्विजय सिंह के साथ करीब ढाई घंटे तक रहे। सिंधिया के साथ 30 से ज्यादा वाहनों का काफिला था। उनके साथ प्रदेश उपाध्यक्ष तुलसी सिलावट, शहर अध्यक्ष प्रमोद टंडन, राजूसिंह चौहान, राजेश चौकसे, अमन बजाज सहित कई बड़े नेता साथ थे। लवाजमे की कमान दीपक राजपूत, पवन जायसवाल के पास थी।

ये है कांग्रेस में सिंधिया विरोध का इतिहास
इतिहास बताता है कि मप्र में कांग्रेस का एक कुनबा ऐसा है जिसने आज तक सिंधिया परिवार के लोगों को कभी प्रमुख पदों पर आने ही नहीं दिया। पहले इस कुनबे के नेता अर्जुन सिंह हुआ करते थे फिर यह कमान उनके चेले दिग्विजय सिंह ने संभाली। कहा जाता है कि कांग्रेस में माधवराव सिंधिया को जितना दर्द दिग्विजय सिंह ने दिया उतना किसी ने नहीं दिया। सिंह जब सीएम बने तो धीरे धीरे करके उन्होंने माधवराव सिंधिया का विरोध इतना बढ़ा दिया कि वो अपने ही क्षेत्र में विवादित हो गए। 

अर्जुन सिंह ने क्या किया था
1989 में चुरहट कांड के चलते अर्जुन सिंह पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा तो राजीव गांधी चाहते थे कि तत्कालीन रेलमंत्री माधवराव सिंधिया को मध्यप्रदेश की कमान सौंप दी जाए लेकिन अर्जुन सिंह, सिंधिया के लिए अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं थे। इधर माधवराव सिंधिया भोपाल आ गए। उन्हे बताया गया था कि उनके नाम का ऐलान होने वाला है। वो इंतजार कर रहे थे कि तभी अर्जुन सिंह ने एक चाल चली और मोतीलाल वोरा के नाम का ऐलान हो गया। 

राजीव गांधी ने बाजी पलटी लेकिन सिंधिया तब भी नहीं
इस चालबाजी से राजीव गांधी इस कदर नाराज हुए कि उन्होंने अर्जुन सिंह के खिलाफ श्यामाचरण शुक्ला को कांग्रेस में वापस बुलाया और शक्तिशाली बना दिया। वोरा के बाद शुक्ला सीएम बनाए गए। अर्जुन सिंह को मप्र की राजनीति से बाहर कर दिया गया। उस प्रसंग का असर यह है कि आज भी अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह का गांधी परिवार में कोई खास सम्मान नहीं है। 

तीसरी बार फिर मौका आया लेकिन दिग्विजय सिंह सामने आ गए 
पुराने कांग्रेसी बताते हैं कि पहले दिग्विजय सिंह और माधवराव सिंधिया के बीच अच्छी बनती थी परंतु अर्जुन सिंह ने अपनी चालें चलना शुरू कर दिया। वो दिल्ली से बैठकर दिग्विजय सिंह को आगे बढ़ाने लगे। 1993 में एक बार फिर वही समय लौटकर आया और माधवराव सिंधिया का नाम सीएम के लिए फाइनल किया गया। लास्ट मिनट में फिर से एक रणनीति पर काम हुआ और दिग्विजय सिंह को मप्र का मुख्यमंत्री बना दिया गया। 

दोस्ती दुश्मनी में बदल गई
दिग्विजय सिंह और माधवराव सिंधिया के बीच राजनैतिक प्रतिस्पधा से कहीं आगे व्यक्तिगत दुश्मनी के भाव थे। हाईकमान का पूरा सपोर्ट होने के बावजूद दिग्विजय सिंह ने जब जब मौका मिला माधवराव सिंधिया का नुक्सान किया और बार बार उन्हे अपमानित किया। 

इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया
अब ऐसा ही कुछ एक बार फिर होने जा रहा है। माधवराव सिंधिया के वारिस एवं सिंधिया राजवंश के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सीएम कैंडिडेटशिप के लिए फाइनल होता नजर आ रहा है। कमलनाथ ने भी अपनी एनओसी दे दी है परंतु दिग्विजय सिंह ने अब भी पेंच अड़ा रखा है। कांग्रेसी सूत्र कहते हैं कि जब तक दिग्विजय सिंह पूरी तरह से सिंधिया को समर्थन नहीं देंगे उनके नाम का ऐलान नहीं हो सकता। 

ग्वालियर के महल से सीएम कब फाइनल हुआ
मप्र की राजनीति में ग्वालियर के महल का अपना ही रुतबा हुआ करता था। उन दिनों जनसंघ का कोई खास जनाधार नहीं था। सभाओं में टेंट लगाने के लिए भी जनसंघ के पास पैसे नहीं होते थे। तब ग्वालियर महल की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर जनसंघ का हाथ थामा। उन्होंने केवल पैसा ही नहीं दिया बल्कि मप्र में जनसंघ की संविद सरकार भी बनवाई। वो चाहतीं तो खुद सीएम बन सकतीं थीं परंतु ग्वालियर का महल किंगमैकर हुआ करता था। इसके बाद महल की मदद से मप्र को कई दिग्गज नेता मिले। 

माधवराव ने आत्मसम्मान से कभी समझौता नहीं किया
मप्र कांग्रेस की राजनीति में माधवराव सिंधिया का अपना ही महत्व था। ग्वालियर के महल से जो लिस्ट जारी होती थी, हाईकमान उन्हीं प्रत्याशियों को टिकट दे दिया करता था। अर्जुन सिंह और फिर दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गजों ने माधवराव सिंधिया का कद छांटने की हर संभव कोशिश की परंतु जनता में उनकी पकड़ और समर्थकों में उनका सम्मान कभी कम नहीं हुआ। हालात यह थे कि कई बार तो सिंधिया के सम्मान में भाजपा ने उनके सामने कमजोर कैंडिडेट उतारा ताकि सिंधिया अपने समर्थकों का प्रचार कर सकें। कांग्रेस में उनके खिलाफ कई चालबाजियां हुईं। नुक्सान भी हुआ परंतु उन्होंने आत्म सम्मान से कभी समझौता नहीं किया। 

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !