मोदी के नए नियम से कर्मचारी नेताओं की नेतागिरी संकट में

नई दिल्ली। देश के सभी श्रमिक संगठनों के 75 प्रतिशत नेताओं को सिर्फ 'नेता' बने रहने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इसकी वजह मोदी सरकार द्वारा ट्रेड यूनियन्स के नियमों में संशोधन का बिल लेकर आने की तैयारी करना है। इस बिल में सुरक्षा संस्थान, रेलवे, डाक, इनकमटैक्स आदि संस्थानों में नेतागिरी करने का अधिकार सिर्फ इन संस्थानों में पदस्थ कर्मचारियों को ही होगा। यह बिल पास होने पर ट्रेड यूनियन्स के सेवानिवृत्त कद्दावर नेताओं को बाहर का रास्ता देखना पड़ेगा।

केन्द्रीय संस्थानों के कर्मचारी संगठनों के मुख्य पदों (अध्यक्ष, महासचिव) को वर्तमान में सेवानिवृत्त कर्मचारी संभाल रहे हैं। मोदी सरकार के ट्रेड यूनियन्स के नियमों में संशोधन बिल पास करते ही इन तजुर्बेकार नेताओं की नेतागिरी खत्म हो जाएगी। यह जानकारी सभी संगठनों के वरिष्ठ नेताओं को भी है इसलिए वह अपनी कुर्सी बचाने के लिए इस संशोधन बिल का एकजुट होकर विरोध कर रहे हैं। 

श्रमिक संगठनों के प्रमुखों का कहना है कि ट्रेड यूनियन्स के नियमों के अनुसार वर्तमान में श्रमिक संगठनों में 75ः25 के अनुपात में संस्थानों में पदस्थ कर्मचारी और सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। यही वजह है कि संगठन अपनी बात पूरी मजबूती से संस्थान प्रबंधन, सरकार के सामने रखते हैं। ट्रेड यूनियन्स के नियमों में संशोधन करके सेवानिवृत्त कर्मचारी नेताओं को बाहर कर दिया गया, तो कर्मचारी हित की बात अधूरी रह जाएगी। उक्त स्थिति में संस्थान का कर्मचारी अपने अधिकार ही नहीं मांग सकेगा।

इनका कहना है
केन्द्र सरकार ट्रेड यूनियन्स के नियमों में संशोधन करने बिल ला रही है। यह बिल आने से केन्द्रीय संस्थानों के कर्मचारियों को हक नहीं मिलेगा और उन्हें नौकरी जाने का डर सताएगा।
कामरेड एसएन पाठक, राष्ट्रीय अध्यक्ष, एआईडीईएफ

मोदी सरकार ट्रेड यूनियन्स नियमों में संशोधन करने बिल लाकर सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बाहर कर देगी, यह सुना है। यह नियम लागू होने पर देश की सभी ट्रेड यूनियन्स के अध्यक्ष, महासचिव भी बदले जाएंगे।
कामरेड नरेन्द्र तिवारी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, बीपीएमएस

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