शैलेन्द्र सरल/भोपाल। मध्यप्रदेश कांग्रेस में रियासतों का बंटवारा हो गया है। जिन नेताओं को इलाके सौंपे गए हैं उनमें दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय सिंह, अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया, विवेक तन्खा एवं सुरेश पचौरी शामिल हैं। इनमें से विवेक तनखा कमलनाथ के साथ और सुरेश पचौरी दिग्विजय सिंह के साथ काम करेंगे। अपने क्षेत्र के सभी फैसले क्षेत्रीय क्षत्रप लेंगे। यहां तक कि टिकट भी वही फाइनल करेंगे। हाइकमान को उम्मीद है कि इस तरह से वो उन सीटों को जीतने में कामयाब हो जाएंगे जहां 2013 के चुनाव में 5000 से कम वोटों से हार गए थे।
मध्यप्रदेश कांग्रेस में मौजूद गुटबाजी हाईकमान का वर्षों पुराना सिरदर्द है। तमाम कोशिशों के बावजूद सिर्फ इतना हासिल हो पाया है कि सभी दिग्गज एक मंच पर दिखाई देने लगे हैं परंतु जैसे ही पॉवर की बात आती है, एक दूसरे की टांग खिंचाई शुरू हो जाती है। तनाव बन चुकी गुटबाजी के बीच मध्यप्रदेश में 2018 का चुनाव जीतना एक बड़ी चुनौती है। हाईकमान लंबे समय से एक फार्मूले की तलाश में था कि गुटबाजी के बावजूद एकजुटता कैसे दिखाएं और किस तरह सबको संतुष्ट किया जा सके।
पहले तय किया गया था कि पूरा मध्यप्रदेश ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच बांट दिया जाए लेकिन दिल्ली तक जो बातें पहुंची उसने इस फार्मूले को फेल कर दिया। फिर विचार आया कि मध्यप्रदेश को 4 हिस्सों में बांट दिया जाए और 4 प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाएं। इस तरह ज्यादा से ज्यादा लोगों को पद भी दिए जा सकेंगे। फिलहाल इस पर फैसला नहीं हो पाया है परंतु चुनाव जीतने के लिए एक नई ट्रिक खोज निकाली गई है।
किसके हिस्से में क्या आए
बंटवारे के तहत दिग्विजय सिंह अब एक नए इलाके के राजा होंगे। अवकाश से लौटने के बाद नर्मदांचल का काम संभालेंगे। उनकी नर्मदा परिक्रमा इसमें काफी काम आएगी। सुरेश पचौरी उनके साथ रहेंगे। महाकौशल के सरताज कमलनाथ होंगे। विवेक तन्खा उनके साथ रहेंगे। दोनों के बीच अच्छी जुगलबंदी भी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर-चंबल के महाराज हैं, इसलिए वहीं रहेंगे। अजय सिंह को चित्रकूट में अच्छा प्रदर्शन करने के कारण विंध्य की रियासत सौंप दी गई है। इस बंटवारे में अरुण यादव की भी लॉटरी लग गई। उन्हे निमाण का जागीदार बना दिया गया है। कांतिलाल भूरिया अपने आदिवासी इलाके के साथ मालवा जैसे मालदार इलाके के देवता हो गए हैं।