भारत में बेरोजगारी बहुत अच्छे संकेत हैं: रेलमंत्री

नई दिल्ली। भारत के रेल मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि भारत में बेरोजगारी बहुत अच्छे संकेत हैं। उनकी दलील है कि जब सरकारी ने नौकरियां कम कर दीं तो इसका मतलब है कि सरकार युवाओं को कारोबारी बनाना चाहती है। इन दिनों मोदी सरकार के कई मंत्री और नीतियां आलोचना का शिकार हो रहीं हैं। नोटबंदी और जीएसटी ने भी तनाव दे रखा है। आए दिन होने वाले रेल हादसों ने सुरेश प्रभु को डिरेल कर दिया था। अब ऐसे में पीयूष गोयल का यह बयान, कहीं आग में घी का काम ना कर दे। 

बेरोजगारी पर चिंतित उद्योग जगत
गुरुवार को वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम के इंडिया इकोनॉमिक समिट में उद्योग क्षेत्र के नामी लोगों ने देश में रोजगार की स्थिति पर चिंता जताई। भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील भारती मित्तल ने बताया कि किस तरह भारत की शीर्ष 200 कंपनियों में पिछले कुछ दिनों के दौरान नौकरियां कम होती जा रही हैं। उन्होंने कहा, "अगर ये 200 कंपनियां नौकरियों का सृजन नहीं करतीं तो बिजनेस समुदाय के लिए समाज को साथ ले कर चलना बहुत कठिन होगा और तब आप लाखों लोगों को पीछे छोड़ देंगे। 

नौकरी जाना "बहुत अच्छा संकेत"
जब उद्योगपति रोजगार की स्थिति पर चिंता जता रहे थे। तभी गोयल उन्हें बीच में टोकते हुए कहते हैं, "क्या सुनील ने जो कहा है, मैं उनका नज़रिया बदलने के लिए उसमें थोड़ा जोड़ सकता हूं? सुनील ने रोज़गार को कम करने वाली कंपनियों की बात की। वास्तव में यह एक बहुत अच्छा संकेत है। सच्चाई यह है कि आज का युवा नौकरी तलाश करने की होड़ में नहीं है। वह नौकरी देने वाला बनना चाहता है। आज देश का युवा उद्यमी बनना चाहता है, जो एक अच्छा संकेत है।

गोयल के इस विश्वास की वजह क्या है?
क्या ऐसा कोई आंकड़ा है जिसमें कोई युवा नौकरी गंवाने के फ़ौरन बाद अपनी नई कंपनी खोल देता है या अपना कोई धंधा करने लगता है, जिसमें पैसों की दरकार भी होती है? और अगर करता भी है तो इनमें से कितने लोग हैं जो लंबे समय तक इन उद्यमों से बिजनेस में बने रहते हैं?

क्या मनमोहन सही और मोदी ग़लत साबित हुए?
अंग्रेजी अख़बार 'इंडियन एक्सप्रेस' ने कई क्षेत्रों के कुछ आंकड़े पेश किए, इसके अनुसार कारोबारी बिल्कुल ही खुश नहीं हैं। 'द वायर' के अनुसार 2016 में 212 स्टार्टअप्स बंद हो गए। यह पिछले साल की तुलना में 50 फ़ीसदी अधिक है। 2017 में भी यह ट्रेंड बना रहा और स्टेज़िला और टास्टबॉब जैसी दो बड़ी कंपनियां बंद हो गईं। 'लाइवमिंट' की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 के पहले नौ महीने में केवल 800 नए स्टार्टअप्स बाज़ार में उतरे। जबकि 2016 के दौरान इनकी कुल संख्या 6,000 थी। अगर हज़ारों लोगों का नौकरी गंवाना बहुत उत्साहवर्धक है और वो स्टार्टअप्स की शुरुआत की ओर बढ़ रहे हैं तो ये आंकड़े बढ़ने चाहिए, लेकिन इनमें गिरावट आई है।

स्टार्टअप्स में निवेश भी कम हो गया
ट्रैक्सन के आंकड़े के मुताबिक स्टार्टअप्स की फंडिंग में हालांकि पिछले साल की तुलना में बढ़ोतरी हुई है, बिजनेस की मात्रा कम हुई है। स्टार्टअप्स ने 2016 के 4.6 बिलियन डॉलर की तुलना में 2017 के पहले नौ महीने में 8 बिलियन डॉलर इकट्ठा किए हैं। वहीं 2016 के 1000 की तुलना में इसकी मात्रा 2017 में केवल 700 ही है।

इस साल की शुरुआत में मानसिक स्वास्थ्य पर काम कर रही एक स्टार्टअप ने कहा था कि नौकरी की अनिश्चितता अलग अलग क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों के बीच अवसाद का कारण बनता जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान एनडीए के वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने भी वर्तमान केंद्र सरकार नीतियों पर सवाल उठाते हुए देश की आर्थिक स्थिति और रोजगार सृजन नहीं कर पाने पर चिंता जताई थी।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !