मीसाबंदियों को ताउम्र पेंशन, कर्मचारियों को समान वेतन तक नहीं

भोपाल। मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह सरकार उन लोगों को भी ताउम्र पेंशन दे रही है जो आपातकाल के दौरान मात्र 1 दिन के लिए जेल गए परंतु दशकों से हर रोज न्यूनतम मजदूरी दर पर काम कर रहे कर्मचारियों को समान वेतन भी नहीं दे रही है। जबकि जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि समान कार्य का समान वेतन दिया जाए। ये कैसा वित्त विभाग है जो मीसाबंदियों को पेंशन तो स्वीकृत कर देता है परंतु कर्मचारियों की पेंशन बंद कर रहा है। 

म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने कहा कि देशभर में राज्य सरकारों ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश एवं संविधान की खुली अवहेलना कर मनमाने तरीके से नाम बदलकर कम वेतन देकर वर्षो से कर्मचारियों का शोषण करने का आसान रास्ता निकाला है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी महत्वपूर्ण है जिसमें कहा गया है कि कम वेतन पर कोई काम करता है तो वह लाचारी में पारिवारिक जवाबदेही के कारण। सरकारों ने भी बेरोजगारी को एक वस्तु मानकर प्रचुर उपलब्धता की कम बोली लगा कर लाचारी और विवशता का भरपूर अनैतिक आर्थिक दोहन करने से गुरेज नहीं किया है। 

मप्र सरकार की भी इसमें अहम भूमिका है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायत, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग सहित कई विभोगों के साथ अब राजस्व विभाग में भी कम वेतन व मानदेय पर संविदा भर्ती की मुहिम जारी कर रखी है। प्रदेश के शिक्षा विभाग में शिक्षक संवर्ग को डाइंग केडर (मृत संवर्ग) घोषित कर 1995-96 में शिक्षाकर्मी भर्ती किये फिर 1998 में पुनः इन्हें नये सिरे से नियुक्त कर पूर्व का सेवाकाल गणना से बाहर कर दिया। 

2003 से संविदा शिक्षक के रूप में नये अवतार हुए। 2007-08 में अध्यापक संवर्ग का पुनर्जन्म कर म.प्र.की पावन धरती पर जगह दी गई। इस वर्ग को वेतनमान का झुनझुना देकर सही गणना पत्र के लिए लगातार आंदोलन के लिए मजबूर किया जाता रहा है। क्यों नही वित्त विभाग स्पष्ट वेतननिर्धारण बुकलेट उदाहरण सहित जारी कर पूरे प्रदेश में समान स्थिति बनाता है? म.प्र. सरकार स्पष्ट करे कि 2005 के नियुक्त शिक्षा सहित किसी भी विभाग के कर्मचारी  पेंशन के हकदार क्यों नहीं हैं।

जबकि मीसाबंदी चाहे एक दिन भी जेल में रहा हो वह पेंशन के लिए पात्र है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ,सहायिका, रसोइया न्यूनतम वेतन के लिए आवाज उठते है जिसकों सुनने वाला कोई नहीं । हाल ही में प्रदेश में 24 हजार प्रेरकों एवं विभिन्न विभागों के 36 हजार संविदा कर्मचारियों को सेवामुक्त कर पेट पर लात मारकर मुंह का कौर छिन लिया। वह भी तब जबकि माननीयों ने अपने वेतन भत्तो में मनमाफिक वृद्धि कर ली। क्या यही जन कल्याण है ?

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