10 लाख सरकारी और प्राइवेट कर्मचारी जानलेवा बीमारी का शिकार

नई दिल्ली। भारत के कम से कम 10 लाख सरकारी और प्राइवेट कर्मचारी एक जानलेवा बीमारी का शिकार हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जिसका शिकार समझ ही नहीं पाता कि वो इस बीमारी का शिकार हो गया है। इसलिए वो इसका इलाज भी नहीं कराता। सबसे अचीब बात यह है कि यह बीमारी सबसे ज्यादा कर्मचारी वर्ग को ही शिकार बनाती है। इसे मेंटल डिप्रेशन कहते हैं। जिसके चलते कई बार व्यक्ति सुसाइड भी कर लेता है। सामान्यत: मेंटल डिप्रेशन के कारण वो कई तरह की दूसरी बीमारियों का शिकार हो जाता है और सारी जिंदगी उन्हीं दूसरी बीमारियों का इलाज कराता रहता है जबकि इलाज के तनाव से मेंटल डिप्रेशन बढ़ता रहता है। 

जानें क्या है मेंटल डिप्रेशन
चिकित्सकीय भाषा में कहें तो मेंटल डिप्रेशन एक डिसऑर्डर है। इसके तहत किसी व्यक्ति को उदासी की भावना अपनी चपेट में ले लेती है। इससे उसकी जिंदगी में दिलचस्पी कम हो जाती है। सबसे परेशानी की बात तब शुरू होती है, जब उसमें नकारात्मक भाव ज्यादा आते हैं। डिप्रेशन में किसी भी इंसान को अपना एनर्जी लेवल लगातार घटता महसूस होता है। इस तरह की भावनाओं से कार्यस्थल पर किसी भी इंसान के प्रदर्शन पर असर पड़ता है। उसकी रोजमर्रा की जिंदगी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहती। इस तरह के डिप्रेशन को क्लिनिकल डिप्रेशन कहा जाता है।

डिप्रेशन के लक्षण
1. लगातार उदासी से घिरे रहना।
2. पसंदीदा कामों में रुचि न रहना।
3. बॉडी में एनर्जी लेवल कम महसूस होना।
4. हर वक्त थकान का शरीर पर हावी रहना।
5. नींद न आना या फिर तड़के नींद खुल जाना।
6. सबसे ज्यादा खतरनाक बहुत ज्यादा नींद आना।
7. भूख कम लगने से लगातार वजन गिरना। जरूरत से ज्यादा खाने से मोटापा।
8. मन में सुसाइड के ख्याल आना। खुदकुशी की कोशिश करना। 
9. बेचैनी महसूस करना। किसी न किसी वजह से मूड खराब रहना।
10. जिंदगी से कोई उम्मीद न होना। घोर निराशा।
11. अपराध बोध होना, हर टाइम जिंदगी को बोझ मानना और मनपसंद काम न कर पाने की लाचारी महसूस करना।

एम्स के मनोचिकित्सा विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश सागर ने कहा कि कामकाज का बोझ बढ़ने से लोग देर रात तक काम करने के आदी हो रहे हैं। हालात यह हैं कि छुट्टी के बाद घर जाकर भी लोग दफ्तर का काम निपटा रहे होते हैं। इस वजह से लोग परिवार को समय नहीं दे पाते।इस कारण कार्यस्थलों पर कर्मचारियों में मानसिक तनाव व अवसाद के मामले बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि अस्पताल व मेडिकल कॉलेज इससे अछूते नहीं हैं।

मेडिकल के छात्र व डॉक्टर अवसाद से अधिक पीड़ित होते हैं। दूसरों का इलाज करने से पहले खुद स्वस्थ होना जरूरी है। तभी दूसरों का इलाज कर सकते हैं। इसी तरह सभी कार्यस्थलों पर खुशनुमा माहौल हो तो कर्मचारी बेहतर परिणाम दे सकते हैं, इसलिए जरूरत सोच बदलने की है।कार्यस्थलों पर कर्मचारियों को बेहतर माहौल उपलब्ध कराया जाना चाहिए, क्योंकि डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में आगाह किया है कि कर्मचारियों में मानसिक तनाव व अवसाद के कारण हर साल तीन हजार बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान दुनिया को झेलना पड़ रहा है।

डॉक्टरों के अनुसार, भारत में भी तनाव व अवसाद बड़ी समस्या है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार देश में हर 20 में से एक व्यक्ति मानसिक अवसाद से पीड़ित है। सफदरजंग अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कुलदीप कुमार ने कहा कि कार्यालय में यदि कोई कर्मचारी तनावग्रस्त हो तो उसे अपनी समस्या सहकर्मियों व बॉस से जरूर साझा करना चाहिए।

कई कर्मचारी तनाव के कारण शराब या अन्य नशे का सेवन करने लगते हैं। इससे स्वास्थ्य तो खराब होता ही है, कामकाज पर भी असर पड़ता है, इसलिए कर्मचारियों का मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होना जरूरी है। अस्पताल में आयोजित सम्मेलन में डॉक्टर इस बात पर ही चर्चा करेंगे कि कैसे कर्मचारियों को मानसिक रूप से स्वस्थ रखा जा सकता है।

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