रोहिंग्या मुसलमान: बौद्ध युवती का RAPE ना करते तो ये हालात भी ना होते

नई दिल्ली। रोहिंग्या मुसलमान आज दुनिया भर में सुर्खियां बने हुए हैं। म्यांमार की पुलिस और सेना उन्हे मार रही है। वो जान बचाने के लिए भाग रहे हैं। संवेदनशील लोग और संस्थाएं उन्हे हर हाल में मदद करना चाहते हैं। भारत में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हो गया जो 12वीं सदी से म्यांमार मे रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को जान बचाकर भागना पड़ रहा है। यह विवाद 2012 में तब शुरू हुआ जब रोहिंग्या मुसलमानों ने एक बौद्ध युवती का रेप किया। जब बौद्धों ने इसका विरोध किया तो रोहिंग्या मुसलमानों ने उन पर हमला कर दिया। बस यहीं से बौद्ध हिंसक हो गए और दोनों समुदायों के बीच हिंसक हमले होने लगे। 2015 के बाद रोहिंग्या मुसलमान कमजोर पड़ने लगे। अब वो जान बचाकर भाग रहे हैं परंतु भागते भागते भी म्यामांर की पुलिस पर हमला कर देते हैं। 

समस्या दशकों पुरानी है
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों का विवाद दशकों पुराना है। यहां बौद्ध और रोहिंग्या रहते हैं। बौद्ध म्यांमार को अपना देश मानते हैं और रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेशी। इसलिए यहां वर्ग भेद की स्थिति बनी हुई है। 1948 में म्यांमार की आजादी के बाद कुछ रोहिंग्या मुस्लिमों को नागरिकता प्रदान की गई थी लेकिन इसे लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। इस विवाद को तब और हवा मिली, जब यहां सैन्य शासन आ गया। 1962 में सैन्य विद्रोह के बाद इनकी मुश्किलें बढ़ने लगीं। 1982 में कानून में बदलाव किया गया। रोहिंग्या की नागरिकता वापस ले ली गई। 1962 से 2011 तक म्यांमार में सैन्य शासन रहा। रोहिंग्या मूल रूप से बांग्लादेशी माने जाते हैं। इसलिए इन्हें बांग्लादेशी प्रवासी कहा जाता है। एक अनुमान के मुताबिक रोहिंग्या मुस्लिमों की आबादी लगभग 10 लाख है। ये मुख्य रूप से म्यांमार के रखाइन प्रांत में रह रहे हैं।

बौद्ध युवती का रेप किया, विरोध कर रहे बौद्धों पर हमला भी किया
2012 में रोहिंग्या मुस्लिमों और सुरक्षाकर्मियों के बीच व्यापक हिंसा हो गई थी। आरोप है कि जून 2012 में म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों ने एक बौद्ध युवती से बलात्कार किया। जब बौद्धों ने इसका विरोध किया, तो रोहिंग्या मुसलमानों ने हमला बोल दिया। बौद्धों ने भी इस हमले का जवाब हमले से दिया। उसके बाद स्थानीय बौद्धों का उनसे हिंसक झड़प होता रहा है। दोनों ही ओर से एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए जाते रहे हैं। साल 2015 में रोहिंग्या मुसलमानों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हुआ था।

पलायन के बीच पुलिस पर हमला 
करीब तीन लाख रोहिंग्या मुसलमानों ने बांग्लादेश में शरण ले रखी है। मुख्य रूप से ये बांग्लादेश के शामलापुर और कॉक्स बाजार में ठहरे हुए हैं। 25 अगस्त को रोहिंग्या ने पुलिस दल पर हमला कर दिया था। इसके बाद म्यांमार के सुरक्षाबलों ने कड़ी कार्रवाई की। 400 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। 

भारत में 40 हजार रोहिंग्या, सभी अवैध 
भारत में करीब 40 हजार रोहिंग्या मुस्लिमों ने शरण ली है। ये मुख्य रूप से जम्मू, हैदराबाद, दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मौजूद हैं। भारत सरकार का कहना है कि रोहिंग्या मुस्लिम भारत में अवैध प्रवासी हैं। ये भारतीय नागरिक नहीं हैं। रोहिंग्या लोगों को निकालना पूरी तरह से कानूनी स्थिति पर आधारित है। केंद्र ने कहा कि रोहिंग्या मुस्लिम हमारे देश में अवैध प्रवासी हैं और उनके लंबे समय तक यहां बसने के राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित गंभीर परिणाम हो सकते हैं। भारत ने शरणार्थियों को लेकर हुई संयुक्त राष्ट्र की 1951 शरणार्थी संधि और 1967 में लाए गए प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए देश में कोई शरणार्थी कानून नहीं हैं। 

कोई भी देश शरण देने को नहीं है तैयार 
रोहिंग्या मुस्लिमों से सहानुभूति रखने के बावजूद कोई भी उन्हें शरण देने के लिए तैयार नहीं है। पलायन के दौरान रोहिंग्या मुस्लिम थाइलैंड जाना चाहते थे, लेकिन वहां की सरकार ने इजाजत नहीं दी। इंडोनेशिया ने हालांकि कुछ लोगों को शरण प्रदान की है। तुर्की के राष्ट्रपति रचैब तैयब सहयोग करना चाहते हैं। लेकिन उन्होंने भी जगह नहीं दी। उनका कहना है कि रोहिंग्या को म्यांमार में ही रहना चाहिए। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी भी बयान दे रहे हैं। रूस ने रोहिंग्या के समर्थन में विरोध प्रदर्शन करने वालों पर कार्रवाई की है। 
इनके संबंध आतंकवादियों से हैं: म्यांमार
सू ची ने साफ कर दिया है कि वे अंतरराष्ट्रीय समुदायों के आगे नहीं झुकेंगी। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के संबंध आतंकी संगठनों से हैं। इसलिए कार्रवाई होगी लेकिन जो लोग वेरिफिकेश प्रोसेस में सहयोग करेंगे, उन्हें वापस बुलाया जा सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि सैन्य कार्रवाई में पूरी एहतियात बरती जा रही है। इसके लिए उन्होंने सेना को निर्देश भी दिए हैं। सू ची ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधि भी यहां आकर देख सकते हैं।

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