Motivational story in Hindi - उपासना करने वाला दु:खी नहीं होता

उपासना में रहने वाला व्यक्ति परमात्मा के समीप ही रहता है और उसके परिणाम स्वरूप उसकी विशेषताएं ग्रहण करता रहता है। परमात्मा सारी श्रेष्ठताओं तथा उत्कृष्टताओं का विधान है । इसलिए वे गुण उपासक में आने और बसने लगते हैं। कोई कारण नहीं कि मनुष्य हिमाच्छादित पर्वतों के समीप रहे और शीतलता अनुभव न करे। फूलों से भरी वाटिका में रहने पर तन -मन सुगंधित न हो उठे, ऐसा होना संभव नहीं। जो भी उपासना द्वारा परमात्मा का सामीप्य प्राप्त करेगा उसके समीप बना रहेगा, उसमें परमात्मा के गुण, श्रेष्ठता का स्थानान्तरण होना चिर स्वाभाविक ही है ।

हजारों लाखों व्यक्ति नित्य ही पूजा-पाठ करते दिखलाई देते हैं। वे ऐसा भी समझते हैं कि उपासना कर रहे हैं। बहुत से दूसरे लोग भी उन्हें उपासक मान बैठते हैं; पर उनकी यह उपासना वाँछित फल के साथ सफल नहीं होती। न तो उन्हें श्रेष्ठता मिलती है और न आत्म-शाँति । वे पूजा-पाठ करने के बाद भी झूठ बोलते हैं, मक्कारी करते हैं। क्रोध, लोभ और मोह के वशीभूत रहते हैं जिसके फलस्वरूप मन में न तो शीतलता और न आत्मा में संतोष की अनुभूति होती है। ज्यों के त्यौँ, शोक-संतापों, यातनाओं, त्रासों, शङ्काओं, अभावों तथा असन्तोषों से पीड़ित रहा करते हैं। पूरी तरह से यथावत भव-रोगी बने रहते हैं। परमात्मा के वे श्रेष्ठ गुण, जिन्हें प्रेम, सौहार्द, करुणा, दया, आत्मीयता, आनन्द, सन्तोष, शांति आदि के नामों से पुकारा जाता है, प्राप्त नहीं होते। शतश: सिंचन के बाद भी स्थाणु के स्थाणु बने रहते हैं, न उनमें कोई पल्लव प्रस्फुटित होते हैं और न फूल खिलते हैं।

परमात्मा की उपासना करने से उसकी श्रेष्ठताओं का आत्मान्तरित होना एक अटल सत्य है। इसमें अपवाद हो ही नहीं सकता। जब उपासना करता दिखलाई देने पर भी किसी व्यक्ति में श्रेष्ठ परिवर्तन के लक्षण दृष्टिगोचर न हों कोई भी बुद्धिमान् व्यक्ति असंदिग्ध घोषणा कर सकता है कि वह उपासना, उपासना नहीं, बल्कि उसका आडम्बर मात्र है, दिखावा है, प्रदर्शन है।

सच्ची उपासना का अर्थ है आत्मा को परमात्मा से जोड़ देना। ऐसा करने पर, जिस प्रकार प्रणाली द्वारा खाली जलाशय को भरे जलाशय से सम्बन्धित कर देने से उसकी जलराशि उसमें भी आने लगती है और रिक्त जलाशय भी उसकी तरह ही पूर्ण हो जाता है, उसी प्रकार आत्मा द्वारा परमात्मा से सम्बन्ध बना लेने से परमात्मा की श्रेष्ठताएँ मनुष्य में भी प्रवाहित हो आती हैं; किन्तु इस माध्यम के बीच कोई व्यवधान रख दिया जाए तो प्रवाह रुक जाएगा ।
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