MPSIC ने घूसखोर अफसरों से तंग रिटायर्ड महिला कर्मचारी राहत दिलाई, न्याय अभी बाकी है

भोपाल। दतिया में अधिकारियों ने एक रिटायर्ड महिला कर्मचारी के 20 लाख रुपए इसलिए अटका दिए थे क्योंकि उन्हे मुंहमांगी रिश्वत नहीं मिल रही थी। तंग करने की इंतहा यह थी कि आरटीआई के तहत उसे जानकारी भी नहीं दी गई परंतु जब मामला राज्य सूचना आयोग में आया तो सूचना आयुक्त आत्मदीप ने इस पर सख्त रुख अपनाया। घबराए अधिकारियों ने तत्काल मामले का निराकरण कर दिया लेकिन इसे मामले का सुखद अंत नहीं कहा जा सकता। यह तो प्रकरण की शुरूआत है। राज्य सूचना आयोग के प्रकरण से प्रमाणित हो गया है कि अधिकारियों ने रिश्वत के लिए रिटायर्ड महिला कर्मचारी को उसके अधिकार से वंचित रखा। यह अपने आप में गंभीर अपराध है। सूचना आयोग के हस्तक्षेप के कारण महिला कर्मचारी को उसका पैसा तो मिल गया परंतु यह पूरा न्याय नहीं है। पूर्ण न्याय तब होगा जब रिश्वतखोर अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई होगी। यह एक ऐसा प्रकरण है जिसमें अब किसी जांच, बयान और प्रमाण की जरूरत ही नहीं रह गई हैै। 
राज्य सूचना आयोग की ओर से जारी अधिकृत प्रेसनोट में रिश्वतेखोरी की कोशिश प्रमाणित होती है। हम इसे शब्दश: प्रकाशित कर रहे हैं, पढ़िए क्या कुछ लिखा है इसमें:

सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर कोई नागरिक/लोक सेवक किस तरह अपने साथ हुए अन्याय से निजात पा सकता है, इसका उल्लेखनीय प्रकरण सामने आया है। मप्र राज्य सूचना आयोग में अपील करने पर आयोग द्वारा पारित आदेश एक सेवानिवृत्त महिला लोक सेवक के लिए वरदान साबित हुआ है। उसे न केवल संबंधित अधिकारियों की रिश्वतखोरी के अभिशाप से मुक्ति मिल गई है, बल्कि जानबूझकर रोके गए लाखों रू. के विभिन्न भुगतान भी मिलने का रास्ता साफ हो गया है। आयोग के आदेश के बाद अपीलार्थी को 17 लाख रू. से अधिक का बकाया भुगतान कर दिया गया है और लगभग ढाई लाख रू. का शेष भुगतान भी एक माह में करने के साथ अपीलार्थी के लंबित पेंशन प्रकरण का निराकरण भी कर दिया जाएगा।

राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने मानवीय संवेदना की दृष्टि से महत्वपूर्ण श्रीमती मनोज पढ़रया की अपील का लगभग 8 माह में ही निराकरण कर दिया। उन्होने अपील मंजूर करते हुए अपने फैसले में कहा कि अपीलार्थी द्वारा चाही गई जानकारी उसकी सेवा पुस्तिका और अप्राप्त स्वत्वों से संबंधित है जिससे अपीलार्थी का जीवन प्रभावित है। स्वयं की सेवा पुस्तिका व बकाया भुगतान से संबंधित जानकारी प्राप्त करना हर लोक सेवक का मानवाधिकार भी है और वैधानिक अधिकार भी। इसलिए लोक सूचना अधिकारी का वह निर्णय रद्द किया जाता है जिसमें यह कह कर जानकारी देने से इंकार किया गया कि प्रश्नवाचक जानकारी तैयार कर देने का प्रावधान नहीं है। 

चाही गई जानकारी लोक हित व न्याय हित में देने योग्य है। अतः जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी को आदेशित किया जाता है कि अपीलार्थी को संबंधित अभिलेख का अवलोकन करा कर वांछित जानकारी निःशुल्क उपलब्ध कराएं और प्रकरण का निराकरण कर आयोग के समक्ष सप्रमाण पालन प्रतिवेदन पेश करें। 

कारण बताओ नोटिस भी:
सूचना आयुक्त ने अपीलार्थी की आरटीआई का समय सीमा में व उचित निराकरण न करने के कारण लोक सूचना अधिकारी को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया कि क्यों न उनके विरुद्ध जुर्माना लगाने व अपीलार्थी को हर्जाना दिलाने की कार्यवाही की जाए। 

इसके उत्तर में जिला सशक्तिकरण अधिकारी ने अपीलार्थी की पावती समेत पालन प्रतिवेदन प्रस्तुत कर बताया कि आयोग के आदेश के पालन में अपीलार्थी को उनकी सेवा पुस्तिका सहित वांछित सूचना समक्ष में मुफ्त दे दी गई है। इसके अलावा अपीलार्थी को सेवानिवृत्ति के बाद देय सभी स्वत्वों का भुगतान कर दिया गया है। पेंशन प्रकरण भी अंतिम पड़ाव पर है। अपीलार्थी को अंतरिम पेंशन के 6 लाख 29 हजार 655 रू, जीपीएफ के 10 लाख 12 हजार 537 रू, परिवार कल्याण निधि के 33,693 रू. और समूह बीमा के 32, 396 रू. का भुगतान कर दिया गया है। अर्जित अवकाश के 2 लाख 44 हजार 985 रू. के देयक, कोषालय में लंबित आपत्तियों का निराकरण करने के बाद भुगतान हेतु कोषालय में पेश किए जा चुके हैं। 

पदोन्नति
क्रमोन्नति व छठवां वेतन के वेतन निर्धारण की जांच कर संयुक्त संचालक, कोष व लेखा से अनुमोदन हेतु प्रकरण तैयार कर भेजा जा रहा है। अनुमोदन उपरांत पेंशन प्रकरण तैयार कर उसका तत्काल निराकरण कराया जाएगा। इस प्रकार अपीलार्थी के शेष स्वत्वों का निराकरण भी लगभग एक माह में करा दिया जाएगा। आयोग ने अपीलार्थी के प्रकरण का पूर्ण निराकरण होने तक के लिए लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध जारी एससीएन पर निर्णय सुरक्षित रखा है। 

यह था मामला
खंड महिला सशक्तिकरण अधिकारी के पद से डेढ़ साल पहले सेवानिवृत्त हुई श्रीमती मनोज पढ़रया अपनी सेवानिवृत्ति से पूर्व के और बाद के देय भुगतान जानबूझकर अटकाए जाने तथा संबंधित अधिकारियों द्वारा मोटी घूस मांगे जाने से परेशान थी। उनकी सेवापुस्तिका गुम कर दी गई। कलेक्टर, दतिया के आदेश के बाद भी डुप्लीकेट सेवा पुस्तिका समय पर नहीं बनाई गई। जबकि संबंधित दस्तावेज कार्यालयीन रेकार्ड में संधारित थे। इस बावत सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी भी उन्हें नहीं दी गई। उनकी प्रथम अपील पर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। तब उन्होने सूचना आयोग में अपील दायर कर न्याय की गुहार लगाई। उनका कहना था कि वे दमा, हार्ट, शूगर, बीपी जैसे कई रोगों से पीडि़त हैं और 20 लाख रू. से अधिक के बकाया भुगतान न मिलने से मानसिक, आर्थिक, शारीरिक व सामाजिक रूप से संत्रास भुगतने को मजबूर हैं। देय स्वत्वों का भुगतान करने की जगह उल्टे उन्हें विभागीय जांच के नाम पर 35,360 रू. का जुर्माना भरने पर मजबूर किया गया। फिर भी उन्हें इंसाफ नहीं मिला। आयोग के आदेश से उन्हे महीने भर में ही न्याय मिलने का रास्ता साफ हो गया।

भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी या नहीं
इस मामले में प्रमाणित हो गया है कि भ्रष्ट अधिकारियों ने रिटायर्ड महिला कर्मचारी को तंग किया। उसके अधिकार के 20 लाख रुपए अटकाए और उसे तब तक परेशान किया गया जब तक कि अधिकारियों पर आयोग की तलवार नहीं लटक गई। पूरे प्रकरण में घूसखोरी प्रमाणित हो गई है। सवाल यह है कि क्या मप्र शासन अपने घूसखोर अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। राज्य सूचना आयोग ने यह नहीं बताया है कि क्या उसने प्रकरण की पूरी जानकारी संबंधित विभागों को कार्रवाई के लिए प्रेषित कर दी है ताकि दूसरे कर्मचारियों ने इस सिंडिकेट के चंगुल से बचाया जा सके। 

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