GRMC में लिंगभेद: 1969 से 2016 तक हजारों लड़कियां शिकार

ग्वालियर। GAJRA RAJA MEDICAL COLLEGE GWALIOR में लिंगभेद का मामला सामने आया है। यहां महिलाओं को पुरुषों से दोयम माना जाता है चाहे वो टॉप क्यों ना कर जाए। यह लिंगभेद कॉलेज के नियमों में शामिल है। 1969 से यही भेदभाव चला आ रहा है। अब तक हजारों लड़कियां इसका शिकार हो चुकीं हैं। मामला टॉपर्स को अवार्ड का है। इस कॉलेज में 27 मेडल दिए जाते हैं लेकिन नियम यह है कि लड़कों को गोल्ड और लड़कियों को सिल्वर आरक्षित कर दिए गए हैं, फिर चाहे लड़कियों की रेंक, लड़कों से ज्यादा ही क्यों ना हो, उसे किसी भी हालत में गोल्ड मेडल नहीं मिलता। 

गजराराजा मेडिकल कॉलेज में यूजी छात्रों को मेडल दिए जाते हैं। इसमें 27 मेडल विषयवार दिए जाते हैं, जबकि एक गोल्ड मेडल बेस्ट ब्वॉयज के लिए आरक्षित है। वहीं बेस्ट गर्ल्स को सिल्वर मेडल दिया जाता है। कुल मिलाकर लड़का यदि 60 प्रतिशत भी लाता है तो वह गोल्ड का हकदार है, जबकि 80 प्रतिशत लाने पर भी लड़की को सिल्वर मेडल पर संतोष करना होगा। बेस्ट स्टूडेन्ट अवार्ड का मुद्दा पिछले एक साल से जीआर मेडिकल कॉलेज में गहराया हुआ है। सितंबर 2016 में एक छात्र संघ अध्यक्ष ने इस विषय को कॉलेज काउंसिल में रखते हुए लड़कियों के लिए भी गोल्ड मेडल की मांग उठाई थी।

इसको स्वीकार भी किया गया था और दिसंबर 2016 में मेडिकल कॉलेज के डीन ने कार्यक्रम में बकायदा अगले साल से लड़कियों को भी गोल्ड मेडल दिए जाने की घोषणा की थी लेकिन इस बार जब नोटिस बोर्ड पर फिर से बेस्ट ब्वॉयज के लिए गोल्ड एवं बेस्ट गर्ल्स को सिल्वर मेडल के लिए आवेदन करने का पत्र चस्पा किया तो मामला फिर से गरमा गया है।

बेस्ट ब्वॉयज एवं बेस्ट गर्ल्स का मेडल 50 प्रतिशत एकेडमिक एवं 50 प्रतिशत कल्चरल गतिविधि के लिए दिया जाता है। चौंकाने वाली बात ये है कि लड़के-लड़की का परफार्मेन्स समान होने पर भी लड़के को गोल्ड, जबकि लड़की को सिल्वर मेडल ही मिलता है।

इनके नाम से मिलते हैं मेडल
वर्तमान में यूजी स्टूडेन्ट को 4 लोगों के नाम पर मेडल दिए जाते हैं। इसमें डॉ. बी. नागराजराव गोल्ड मेडल, डॉ. वीपी पाराशर गोल्ड मेडल है। ये लड़के एवं लड़की किसी को भी परफार्मेन्स के आधार पर मिल सकते हैं। इसके बाद डॉ. पंकज तिवारी बेस्ट ब्वॉयज गोल्ड मेडल एवं डॉ. जीपी टंडन बेस्ट गर्ल्स सिल्वर मेडल हैं। इस श्रेणी में लड़कियों के लिए गोल्ड का प्रावधान ही नहीं है।

हालांकि, ये मेडल किसी के द्वारा अपने किसी की स्मृति में दान किए जाते हैं। यदि कॉलेज प्रबंधन चाहता तो इस विसंगति को दूर करने के लिए कॉलेज की तरफ से भी बेस्ट गर्ल्स के लिए गोल्ड मेडल की घोषणा की जा सकती थी, लेकिन किसी ने भी इस विसंगति को दूर करने का अब तक कोई प्रयास नहीं किया है। इसकी वजह से बेस्ट होते हुए भी लड़कियों को सिल्वर मेडल के कारण हीनभावना झेलना पड़ती है।

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