मौसम के मिज़ाज को भी समझने की कोशिश कीजिये

राकेश दुबे@प्रतिदिन। इस साल मौसम की मिजाज कुछ ज्यादा ही बिगड़े दिखे। हार्वी और इरमा तूफानों ने टैक्सस समेत दक्षिणी राज्यों को प्रभावित किया। वहीं भारतीय उपमहाद्वीप में अतिवृष्टि और बाढ़ ने उत्तरी बिहार, बांग्लादेश और नेपाल को चपेट में लिया। इन घटनाओं ने एक बार फिर जलवायु परिवर्तन और गर्मी से समुद्रों के बढ़ते जल स्तर का मामला चर्चा में ला दिया। हार्वी सतह पर आने से पहले मैक्सिको की खाड़ी से गुजरा। वहां के तापमान ने उसकी तीव्रता में इजाफा किया। समुद्र की सतह का तापमान बीती एक सदी से लगातार बढ़ता आ रहा है और यह अब भी जारी है। 

इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) का गठन किया। उसका कहना है कि उन्हें इनके बीच कोई सीधा संबंध नहीं मिला है। इसके विपरीत वैज्ञानिक समुदाय के एक बड़े तबके का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और तूफानों की बढ़ती तादाद के बीच का रिश्ता स्वयंसिद्ध है। धरती को जो नुकसान पहुंचाया जा रहा है, भला वह उससे कैसे और कब तक बच सकेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 2017 में पेरिस में आयोजित जलवायु परिवर्तन वार्ता को बाधित कर दिया था। 

सवाल यह है कि आखिर वैश्विक तापमान में हो रही बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक थामने पर कैसे प्रतिबद्धता कायम की जाए और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उचित संसाधन कैसे आवंटित किए जाएं। कड़वी हकीकत को ध्यान में रखें तो वह यह है कि बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के आलोक में हर देश को यह प्रयास करना होगा कि वह जलवायु परिवर्तन के मोर्चे पर अपना उत्तरदायित्व निबाहे। वर्ष 2017 के वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक का एक खंड इस पर भी केंद्रित है कि आखिर जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा प्रभाव किन पर पड़ रहा है? इस प्रश्न का उत्तर है कि जलवायु जोखिम वाले 182 देशों की सूची में भारत का स्थान चौथा है। आंकड़े बताते  है कि वर्ष 2015 में केवल मोजांबिक, डोमिनिका और मलावी को ही भारत से अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा। यहां तक कि वानुआटू, म्यांमार, बहामस, घाना और मेडागास्कर जैसे देशों पर भी भारत से कम असर हुआ। ये देश भी शीर्ष 10 देशों में शुमार हैं। यह सूची जारी करने वाली जर्मन वाच नामक संस्था कहती है कि वर्ष 2015 में भारत में क्रय शक्ति समता के संदर्भ में 40 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ जबकि 4300 लोगों की मौत हुई। बेमौसम की बारिश के कारण फरवरी और मार्च में बाढ़ आई और लू की वजह से 2300 जानें गईं। 

वहीं अगस्त और दिसंबर में एक बार फिर बाढ़ से बहुत अधिक नुकसान हुआ। हालात लगातार खराब हो रहे हैं। वर्ष 2017 के यूनिसेफ के आंकड़े बताते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में अतिवृष्टिï से 1288 लोगों की जान गई है। करीब 4 करोड़ लोग (1.6 करोड़ बच्चों समेत) बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। भारत में अलग-अलग प्राकृतिक घटनाओं में 800 लोगों की मृत्यु हुई। अमेरिका में हार्वी तूफान ने 60 जानें लीं जबकि इरमा के चलते क्यूबा में 10 लोगों की जान गई। इसके लिए बहुत बड़े पैमाने पर तैयारी की आवश्यकता है और इस तैयारी के लिए अधिक से अधिक संसाधनों तथा बुनियादी ढांचे की जरूरत है। तभी सही अनुमान जताया जा सकेगा, तैयारी की जा सकेगी और आपदा के प्रभाव को कम किया जा सकेगा। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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