मौलवी बरकतउल्ला थे हिंदुस्तानी सरकार के पहले प्रधानमंत्री

भोपाल। ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि आजादी के बाद भारत सरकार के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे, परंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि आजादी से पहले भी हिंदुस्तानी सरकारों का गठन हुआ था। इतिहास के कई जानकारों का मानना है कि अंग्रेजों के जमाने में पहली हिंदुस्तानी सरकार आजाद हिंद फौज ने बनाई थी परंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि उससे पहले भी एक हिंदुस्तानी सरकार का गठन हुआ था। साल 1915 में अफगानिस्तान में इसका गठन हुआ था और ये हिन्दुस्तान की अस्थाई सरकार थी। राजा महेंद्र प्रताप इसके राष्ट्रपति और मौलवी बरकतउल्ला इसके प्रधानमंत्री थे।

बरकतउल्ला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पैदा हुए और उन्होंने पढ़ाई से लेकर शुरुआती नौकरी भी इसी शहर में की। उन्हें पहचान भी बरकतउल्ला 'भोपाली' के नाम से ही मिली। भोपाल में आज भी उनके नाम से बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी का संचालन होता है। बरकतउल्ला गदर पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से थे। गदर पार्टी का इश्तेहार था, "तनख्वाह--मौत, इनाम--शहादत, पेंशन--देश की आजादी।"

बरकतउल्ला का जन्म भोपाल में 1859 में हुआ था। उनके पिता मुंशी कुदरतउल्हा भोपाल रियासत में कर्मचारी थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सुलेमानिया ओरिएण्टल कॉलेज, भोपाल में हुई थी। उन्होंने अरबी, फारसी और उर्दू भाषाओं का अध्ययन किया। सन 1883 में उन्होंने भोपाल छोड़ दिया और पहले खण्डवा और फिर बम्बई में शिक्षक रहे।

उच्च शिक्षा प्राप्त करने की लालसा उन्हें इंग्लैंड ले गयी। उन्होंने लिवरपूल में एक इंस्टीट्यूट में नौकरी कर ली। वहां से प्रकाशित होने वाले समाचार-पत्र ‘क्रिसेन्ट’ तथा एक पत्रिका ‘द स्लामिक वर्ल्ड’ के सहयोगी संपादक हो गये। उन्होंने ‘लंदन टाइम्स’ में अनेक लेख लिखे। इससे उनकी प्रतिष्ठा चारों ओर फैल गयी।

मौलाना बरकतउल्ला अन्य एशियाई क्रांतिकारियों की तरह जापान की ओर आकर्षित हुए। जापान में बरकतउल्ला ने भारतीयों को संगठित करने और राजनीतिक चेतना फैलाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया।
‘इस्लामिक फ्रेटर्निटी’ नामक एक पत्र का संपादन शुरू किया। उसके प्रभाव से घबराकर भारत में उसके प्रवेश पर अंग्रेजी सरकार ने रोक लगा दी। उन्होंने जापान प्रवास के दौरान हांगकांग, सिंगापुर और पूर्वी एशिया का दौरा कर भारतीयों को अंग्रेजों के विरुद्ध संगठित करने का भरसक प्रयास किया।

गदर पार्टी में सक्रिय भागीदारी
बरकतउल्ला सैन फ्रांसिस्को में भारतीय क्रांतिकारियों से संपर्क बनाये हुए थे। गदर पार्टी के एक नेता, भगवान सिंह के साथ 1914 में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को पहुंच गये। गदर पार्टी के मुखपत्र ‘गदर’ के संपादकीय विभाग में कार्य करने लगे। गदर पार्टी ने फैसला किया कि प्रवासी भारतीयों को भारत पहुंचकर, सशस्त्र-विद्रोह द्वारा अंग्रेजों को खदेड़ देना चाहिए। तब बरकतउल्ला ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर स्थान-स्थान पर सभाएं करके लोगों को भारत जाने के लिए प्रेरित किया।

बर्लिन समिति का गठन
सन् 1915 में मौलाना को जर्मनी से सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी राजा महेन्द्र प्रताप का पत्र मिला कि उन्हें क्रांतिकारी कार्य के लिए अफगानिस्तान पहुंंचना है। अतः 19 फरवरी, 1915 को वे बर्लिन पहुंंच गये। बर्लिन को भारतीय क्रांतिकारियों ने अपना मुख्यालय बनाकर ‘बर्लिन समिति’ का गठन कर लिया था। भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति के लिए बर्लिन में ‘जर्मन मिशन’ की स्थापना भी की गयी थी। मिशन के प्रमुख नेता थे राजा महेन्द्र प्रताप और बरकतउल्ला।

राजा और मौलाना अक्टूबर 1915 में काबुल पहुंचे। 1 दिसंबर, 1915 में, काबुल में स्थापित भारत की ‘अंतरिम सरकार’ में बरकतउल्ला को -प्रधानमंत्री और राजा महेन्द्र प्रताप को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। लेनिन से भेंट 7 मई, 1919 को क्रेमलिन में हुई। सन 1922 तक बरकतउल्ला रूस में रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों का संचालन करते रहे। सन 1927 में वे जर्मनी से अमेरिका रवाना हो गये। मौलाना बरकतउल्ला न्यूयार्क में बीमार पड़ गये। फिर वे कैलिफोर्निया प्रांत चले गये, क्योंकि वहां पर उनके अनेक सहयोगी थे। वहां 27 सितम्बर, 1927 को भोपाल के इस सपूत ने प्राण त्याग दिए।

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