सिन्हा के बोल और BJP के जवाब

राकेश दुबे@प्रतिदिन। वित्त मंत्री अरुण जेटली और जयंत सिन्हा की प्रतिक्रियाओं ने यह प्रमाणित कर दिया है कि यशवंत सिन्हा की बातें भाजपा को गहराई तक चुभ गई है। जेटली का यह कहना कि यशवंत सिन्हा ८० वर्ष की उम्र में नौकरी खोज रहे है प्रमाणित करता है कि वरिष्ठ भाजपा नेता यशवंत सिन्हा की बातों ने भाजपा के मर्म पर चोट की है। अर्थव्यवस्था के बारे में सिन्हा ने जो कुछ कहा उसे भाजपा के अतिरिक्त सब सही कह रहे है और भाजपा नेतृत्व को अपने मार्गदर्शक की यह बातें  नागवार गुजर रही हैं। वैसे सिन्हा अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के बहुत महत्त्वपूर्ण मंत्री रहे हैं। एक वक्त चंद्रशेखर सरकार में भी उनका स्थान अहम था। वे राजनीति में आने से पहले आईएएस अधिकारी रहे हैं।

इस कारण सिन्हा की यह उम्मीद निराधार नहीं थी कि मोदी सरकार सिन्हा की क्षमताओं का सदुपयोग करेगी, पर ऐसा कुछ मोदी सरकार ने नहीं किया, बल्कि कमोबेश यशवंत सिन्हा को मार्गदशर्क मंडल का सदस्य ही बना दिया। इसके बावजूद भी सिन्हा की कही गई कुछ बातें बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। जैसे अब भाजपा नेतृत्व वाली सरकार अर्थव्यवस्था की बदहाली के लिए कांग्रेस सरकार को दोषी न ठहराए क्योंकि इस सरकार को काम करने के लिए भरपूर समय मिल चुका है। मौजूदा हालात सुधारने के लिए सरकार के प्रयास कमजोर हैं। यशवंत सिन्हा ने रोजगार के अवसरों की कमी पर गहरी चिंता दर्शायी है।

अरुण जेटली के आलावा सिन्हा के पुत्र और केंद्र में मंत्री जयंत सिन्हा अपने पिता से असहमति जताते हुए कहा है कि अर्थव्यवस्था के दीर्घकालीन हित सुरक्षित हैं। जयंत सिन्हा ने तो यहाँ तक कहा कि कुछ संक्षिप्त अवधि के आंकड़ों पर कोई निष्कर्ष निकाल लेना ठीक नहीं होगा। जयंत सिन्हा का यह स्पष्टीकरण नया नहीं है। भाजपा नेतृत्ववाली सरकार के कई प्रवक्ता और नेता इस तरह के स्पष्टीकरण देते रहे हैं।

सवाल है कि जमीन पर ठोस क्या दिखाई पड़ रहा है? जमीन पर ठोस यह दिखाई पड़ रहा है कि कंपनियां नई नौकरियां नहीं दे रही हैं। सॉफ्टवेयर कंपनियां एक जमाने में कम से कम एक सेक्टर के लोगों को तो नौकरियां देती थीं। अब वहां भी मंदी है। घरेलू कंपनियों में से कुछ सेक्टरों को छोड़ दें, तो भी नौकरियां नहीं पैदा हो रही हैं। ऐसा क्यों है कि कंपनियों को नये रोजगार अवसर पैदा करने की जरूरत नहीं पड़ रही है। इसकी एक वजह तो यह है कि बाजार में कुछ सेक्टरों को छोड़ दें, तो नई मांग नहीं पैदा हो रही है। नई मांग न पैदा होने के चलते निवेश नहीं आ रहा है। 

यह एक एक सर्व ज्ञात तथ्य है कि नया निवेश तब आता है, जब अर्थव्यवस्था में तेजी हो, हर सेक्टर के आइटम और सेवाओं की मांग में इजाफा हो। ऐसा नहीं हो रहा है। ऐसा क्यों नहीं हो रहा है। इस पर राजनीतिक बयानबाजी के बजाय केंद्र सरकार को गंभीर विमर्श करना चाहिए और जहां से भी बेहतर सुझाव मिले, लेने चाहिए। और यशवंत सिन्हा जैसे वरिष्ठ नेताओं को चाहिए कि समस्याओं को आपने रेखांकित करने के स्थान पर कुछ ठोस उपाय भी बताएं। वरन, अरुण जेटली और बाकी भाजपा कुछ भी कहेगी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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