नवरात्रि में नदी से प्रकट हुईं माँ भद्रकाली की प्राचीन प्रतिमा

तमिलनाडु के डिंडिगुल जिले के इराविमंगलम गांव में नदी क्षेत्र से ‘भद्र काली’ की एक प्राचीन प्रतिमा निकाली गई है। वी.नारायणमूर्ति ने बताया कि खूबसूरत नक्काशी वाली पत्थर की यह प्रतिमा करीब एक हजार साल पुरानी है। उन्होंने बताया कि यह प्रतिमा 100 सेंटीमीटर लंबी और 137 सेंटीमीटर चौड़ी है। देवी पत्थर के एक खंड पर बैठी हुई हैं। जिसमें उनका बायां पांव ‘असुर’ के ऊपर है और दायां पांव पालथी मार कर बैठने की अवस्था में है। मूर्ति के एक हाथ में एक खोपड़ी पकड़ी हुई है और सिर पर मुकुट भी है। प्रतिमा के दाएं हाथ में त्रिशूल है। अन्य हाथों में अन्य सामान हैं। पुरातत्वविद् ने बताया, “शिल्पकार ने बहुत खूबसूरती से प्रतिमा के चेहरे पर क्रोध का भाव प्रदर्शित किया है जो बेहद स्वाभाविक लगता है।”

हरियाणा में है भद्रकाली का शक्तिपीठ
यह ऐतिहासिक मंदिर हरियाणा की एकमात्र सिद्ध शक्तिपीठ है, जहां मां भद्रकाली शक्ति रूप में विराजमान हैं। वामन पुराण व ब्रह्मपुराण आदि ग्रंथों में कुरुक्षेत्र के सदंर्भ में चार कूपों का वर्णन आता है। जिसमें चंद्र कूप, विष्णु कूप, रुद्र कूप व देवी कूप हैं। श्रीदेवी कूप भद्रकाली शक्तिपीठ का इतिहास दक्षकुमारी सती से जुड़ा हुआ है। शिव पुराण में इसका वर्णन मिलता है। माता सती के अग्निस्नान प्रसंग के बाद भगवान शिव जब सती की मृत देह को लेकर ब्राह्मांड में घूमने लगे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52 हिस्सों में बांट दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां पर शक्ति पीठ स्थापित हुए।

हरियाणा के एकमात्र प्राचीन शक्तिपीठ श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर कुरुक्षेत्र के देवी कूप में सती का दायां गुल्फ अर्थात घुटने से नीचे का भाग गिरा और यहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से मां भद्रकाली की पूजा की और कहा था कि महादेवी मैंने सच्चे मन से पूजा की है अत: आपकी कृपा से मेरी विजय हो और युद्ध के उपरांत मैं यहां पर घोड़े चढ़ाने आऊंगा। शक्तिपीठ की सेवा के लिए श्रेष्ठ घोड़े अर्पित करूंगा। श्रीकृष्ण व पांडवों ने युद्ध जीतने पर ऐसा किया था, तभी से मान्यता पूर्ण होने पर यहां श्रद्धालु सोने, चांदी व मिट्टी के घोड़े चढ़ाते हैं। 

मां भद्रकाली की सुंदर प्रतिमा शांत मुद्रा में यहां विराजमान है। हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन मां भद्रकाली की पूजा अर्चना व दर्शन करते हैं। मंदिर के बाहर देवी तालाब है। तालाब के एक छोर पर तक्षेश्वर महादेव मंदिर है। पुराणों में कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण व बलराम के मुंडन संस्कार यहां पर हुए थे। रक्षाबंधन के दिन श्रद्धालु अपनी रक्षा का भार माता को सौंप कर रक्षा सूत्र बांधते हैं। मान्यता है कि इससे उसकी सुरक्षा होती है। महाशक्तिपीठ में विशेष उत्सव के रूप में चैत्र व आश्विन के नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं।

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