भारतीय सेना के पक्ष में एक बड़ा फैसला

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सैन्य कर्म और उससे जुडी गतिविधियाँ भारत में पवित्र कार्य मानी जाती हैं, उन पर किसी प्रकार की टिप्पणी ठीक नही है, पर मामला सुधार और बेहतर प्रबन्धन का हो तो इस विषय को चिन्तन परिधि में लाना जरूरी है। सरकार ने भारतीय सेना के असैन्य पक्ष के प्रबंधन में बहुत बड़ा सुधार करने का फैसला किया है। नॉन ऑपरेशनल जिम्मेदारियों में तैनात 57 हजार अफसरों और सैनिकों की नए सिरे से तैनाती करके उन्हें ऑपरेशनल भूमिकाओं में लगाया जाएगा। इसके लिए सेना से जुड़े कई गैर-जरूरी विभागों को बंद कर दिया जाएगा और एक ही तरह के काम में लगे विभागों को एक साथ मिला दिया जाएगा। 

सशस्त्र बलों की क्षमता बढ़ाने के लिए पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के कार्यकाल में रक्षा मंत्रालय ने लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डीबी शेकतकर की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित की थी। इसकी कई सिफारिशों को अरुण जेटली ने को मंजूरी दे दी, अब निर्मला सीतारमण इसे लागू कराएगी। वैसे भारतीय सेना में सुधार की बातें समय-समय पर उठती रही हैं। बीच-बीच में कभी गोला-बारूद की कमी, कभी रक्षा संसाधनों की खरीद में गड़बड़ी, कभी पैसे के अपव्यय तो कभी जवानों के असंतुलित व्यवहार की खबरें आती रहती हैं। अगर,निर्णय में इन सब पर विचार हुआ है, तो निर्णय के लाभदायी परिणामों पर सोचा जा सकता है।

भारतीय फौज का गठन ब्रिटिश शासन में उसकी जरूरतों के अनुरूप एक साम्राज्यवादी सेना के ढांचे पर किया गया था। इसमें अफसरों और जवानों के कुछ खास रिश्ते तय कर दिए गए थे। फौजी अफसरों को ऐसी सारी सुविधाएं दी गई थीं जो उन्हें ब्रिटेन से दूरी न महसूस होने दें, साथ में इस देश का शासक होने का एहसास भी कराती रहें लेकिन आजादी के इतने वर्षों बाद घुड़साल, डेरी फार्म, पोलो और गोल्फ के विशाल मैदान वगैरह भारतीय सेना के लिए गैरजरूरी हो चुके हैं। समय के साथ कई ढांचों और रिश्तों को बदल देने की जरूरत थी, पर दुर्भाग्य से यह प्रक्रिया धीमी रही। 

सेना में कई ऐसे विभाग अब भी कायम हैं, जिनकी अब कोई भूमिका नहीं रह गई है लेकिन उन्हें हटाने की पहलकदमी नहीं की गई, जिसके चलते उन पर नियुक्तियां होती रहीं। इस तरह एक ऐसा तबका खड़ा हो गया, जिसकी सेना के लिए कोई ठोस भूमिका नहीं है। क्या यह सूचना ही चौंकाने वाली नहीं है कि 57 हजार सैनिक और अधिकारी अब तक नॉन ऑपरेशनल कामों में लगे हैं। सेना पर इन्हें बोझ बनाकर रखने की बजाय इनका उपयोग सैन्य संसाधन के रूप में किया जाना श्रेयस्कर है। सुधार के इस कदम से भारतीय सेना और ज्यादा चुस्त-दुरुस्त हो जाएगी। होना भी चाहिए, चुनौती पूर्ण समय में युक्तियुक्तकरण ही सुखदायी परिणाम देता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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