अध्यापकों के विसगंतिपूर्ण 6वे वेतनमान के आदेश में हाईकोर्ट ने लगाई रोक

मंडला। माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर ने मण्डला के डी.के.सिंगौर और अन्य 80 याचिका कर्ताओं की ओर से दायर याचिका पर अध्यापकों के विसंगतिपूर्ण छठवें वेतनमान के 7 जुलाई2017 और 22 अगस्त 2017 के आदेष के क्रियान्वयन में रोक लगा दी है। साथ ही यह भी कहा है कि याचिका कर्ताओं को दिया गया वेतन कम नहीं किया जायेगा। 26 सितम्बर को माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर के विद्वान न्यायाधीष जे,के, माहेश्वरी की एकल पीठ में सुनवाई हुई जिसमें याचिका कर्ताओं ने कहा कि राज्य शासन ने 4सितम्बर 2013 द्वारा अध्यापक संवर्ग को शिक्षक संवर्ग के समान वेतनमान का लाभ सितम्बर 2013 में 4 किष्तों में दिये जाने का निर्णय लिया था। 

जिसके अनुसार अध्यापक सवंर्ग को सितम्बर 2017 से षिक्षक संवर्ग के समान वेतनमान देय हो जाता। लेकिन इसी सन्दर्भित आदेष के अनुक्रम में राज्य शासन ने 25फरवरी 2016 के द्वारा सितम्बर 2017 के स्थान पर 1 जनवरी 2016 से छठंवा वेतनमान दिये जाने का निर्णय लिया। लेकिन लगभग डेढ वर्ष का समय बीत जाने के बाद भी अध्यापक संवर्ग को छठंवे वेतनमान का सही सही लाभ प्राप्त नहीं हुआ है इस अवधि में राज्य शासन ने कई गणना पत्रक जारी किये और निरस्त किये लेकिन आज दिनांक तक अध्यापकों को छठवें वेतनमान(षिक्षक संवर्ग के समान वेतन) का सही लाभ नहीं मिल रहा है। 

7 जुलाई और 22 अगस्त 2017 के आदेष में अध्यापकों को छंठवे वेतनमान का फार्मूला अध्यापक संवर्ग की सेवा अवधि के आधार पर बनाया है जबकि इसके पूर्व 31/5/16 और 15/10/2016 के दोनों आदेषों में फार्मूला विद्यमान वेतनमान के मूलवेतन को बनाया था। राज्य शासन के अन्य कर्मचारियों में भी 6वें वेतनमान का फार्मूला विद्यमान वेतनमान का मूलवेतन ही था। अध्यापक 15/10/2016 के आदेष से 9 माह से वेतन ले रहे हैं अब 7/7/2017 और 22/8/2017 के आदेष से सभी अध्यापकों का वेतन कम हो रहा है। 

याचिका कर्ताओं ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि सहायक अध्यापक, अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक के वेतन निर्धारण के लिये म.प्र.वेतन पुनरीक्षण नियम 2009 की जिन तालिका क्रमांक 6, 8 और 9 और 10 को आधार बनाया है वे तालिकाएं मौजूदा वेतनमान में मूलवेतन के आधार पर पुनरीक्षित वेतन की गणना के लिये बनाई गई हैं न कि सेवा अवधि की वर्ष वार गणना के आधार पर गणना करने के लिये। यदि सेवा अवधि के आधार पर वर्षवार गणना करके पुनरीक्षित वेतन की गणना करना है तो 3 प्रतिषत वार्षिक वेतनवृद्धि जोड़कर टेबल बनाना चाहिये। यदि अध्यापकों को 2007 में 6वें वेतनमान का लाभ दे दिया गया होता तो उसे पुनरीक्षित वेतनमान के मूलवेतन और ग्रेड पे को जोड़कर 3 प्रतिषत वार्षिक वेतनवृद्वि प्रतिवर्ष देय होती और जनवरी 2016 में जो मूलवेतन होता वहीं मूलवेतन अब जनवरी 2016 में देय होना चाहिये। इस सम्बंध में कई जिले के जिला षिक्षा अधिकारियों ने लेखाअधिकारी सहित विषेषज्ञ अधिकारियों की कमेटी गठित करके वेतन निर्धारण का प्रारूप जारी किया था वो एकदम सही और विसंगतिरहित था। उसे लागू किया जाये तो कोई विसंगति नहीं होगी और छठवें वेतनमान का सही लाभ अध्यापकों को मिलेगा। 

7/7/2017 के आदेष अनुसार अध्यापक संवर्ग में पूर्ण की गई सेवा अवधि के आधार पर वेतन निर्धारण करने से वर्ष 1998 से षिक्षाकर्मी सेवाकाल की उन वेतनवृद्वियों का लाभ नहीं मिलेगा जो अध्यापक संवर्ग में संविलयन के दौरान सहायक अध्यापक,अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक को क्रमषः 3, 2 और 2 वेतनवृद्वियों का लाभ मिला था। अध्यापक भर्ती एवं सेवा शर्ते नियम 2008 नियम 5 (1)(4)) जिसके अन्तर्गत सहायक अध्यापक, अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापक को क्रमषः 3000, 4000 और 5000 के स्थान पर 3300, 4250 और 5350 का मूलवेतन दिया गया था। शासन ने इस गणना पत्रक में 3300, 4250 और 5350 के स्थान पर 3000, 4000 और 5000  से गणना प्रारम्भ किया है। षिक्षाकर्मी की नियमित सेवाएं अध्यापक संवर्ग में मर्ज हुई हैं इसलिये षिक्षाकर्मी सेवा के वेटेज को समाप्त नहीं किया जा सकता। उक्त विसंगति के चलते 1998 में षिक्षाकर्मी के पद पर नियमित रूप से नियुक्ति अध्यापक और 2004 में संविदा षिक्षक के पद पर नियुक्त अध्यापकों का वेतन एक समान हो गया है।

याचिकाकर्तााओं की ओर से याचिका में आगे यह भी कहा गया कि क्रमोन्नति और पदोन्नति के मामले के लिये 22/8/2017 के आदेष की  तालिकाओं में क्रमोन्नत/पदोन्नत पद की सेवा अवधि के सामने जो पुनरीक्षित मूलवेतन दिया है वह विसंगति पूर्ण है। क्रमोन्नति/पदोन्नति का वर्ष अर्थात प्रारम्भ में जिस क्रमोन्नत/पदोन्नत विद्यमान मूलवेतन (क्रमोन्नति में 3500,4500 और 5500 और पदोन्नति में 4000 और 5000) के आधार पर गणना हुई है क्रमोन्नति और पदोन्नति में अध्यापकों द्वारा  इस मूलवेतन को पार कर लिया गया था। सही निर्धारण के लिये आवष्यक है कि पदोन्नति क्रमोन्नति के समय जो मूलवेतन था उसको प्रथम वर्ष मानकर पदोन्नति और क्रमोन्नति की सेवा अवधि की गणना करके पुनरीक्षित मूलवेतन की गणना करनी चाहिये। इस हेतु टेबल में क्रमोन्नति और पदोन्नति के मूलवेतन का उल्लेख होना चाहिये। साथ ही चूंकि टेबल सेवा अवधि के आधार पर है इसलिये सही टेबल 3 प्रतिषत वार्षिक वेतनवृद्वि के आधार पर बनाना चाहिये।

याचिका कर्ताओं ने यह भी कहा कि 22/8/2017 के आदेष अनुसार 1 जनवरी 2016 के पहले क्रमोन्नति पदोन्नति प्राप्त अध्यापकों के वेतन निर्धारण षिक्षकों के समान नियम, मूलभूत नियम और वित विभाग द्वारा समय समय पर जारी निर्देषों और नियमों से नहीं होना है तो फिर  वेतन निर्धारण की विसंगतियों को दूर कैंसे किया जा सकता है उल्लेखित नहीं है। 1/1/16 के पहले पदोन्नति और क्रमोन्नति के प्रकरण में भी मूलभूत नियम लागू होना चाहिये।

याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में और भी कई विसंगतियों का जिक्र करते हुये इस आदेष के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग की। याचिका कर्ताओ ने अपनी याचिका में गृहभाड़ा भत्ता व परियोजना भत्ता दिये जाने की भी मांग की है साथ ही अध्यापकोें को छठवें वेतनमान का लाभ 2007 से दिये जाने की मांग की है। याचिका कर्ताओं की ओर से एडव्होकेट डीके दीक्षित के.सी. घिल्डियाल और रोहित सौहगौरा ने पैरवी की है। 
‘‘अध्यापकों ने हाईकोर्ट के इस स्टे आर्डर से राहत की सांस ली है यह आदेष प्रदेष के सभी अध्यापकों में लागू होगा‘‘

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