नवरात्रि में श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ: नियम एवं 13 अध्यायों का फल

शास्त्रों में कहा गया है कि कलयुग में चंडी तथा भैरव आराधना त्वरित फल प्रदायक है। नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विधान है। इस पाठ के चमत्कारिक परिणाम मिलते हैं। इसमे कोई संशय वाली बात नही लेकिन देवी की पूजा पाठ में यदि आपने तांत्रिक मार्ग का चयन किया तो उसमे आपको विशेष सावधानी बरतनी होगी। देवी को कम ज्यादा अशुद्धि बिल्कुल नही चलती है। सप्तशती का पाठ वही कर सकता है जो नियम का पालन करे। उसका उच्चारण शुद्ध हो। 

थोड़ी सी भी गलती के उल्टे परिणाम मिल सकते है या तो किसी सिद्ध गुरु या ब्राह्मण के द्वारा ये पाठ करवाएं या फ़िर भगवती की सात्विक आराधना ही करें। माँ दुर्गा की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ सर्वोत्तम है। भुवनेश्वरी संहिता में कहा गया है, जिस प्रकार से ''वेद'' अनादि है, उसी प्रकार ''सप्तशती'' भी अनादि है। दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोकों में देवी-चरित्र का वर्णन है। दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं। दुर्गा सप्तशती के सभी तेरह अध्याय अलग अलग इच्छित मनोकामना की सहर्ष ही पूर्ति करते है।

प्रथम अध्याय
इसके पाठ से सभी प्रकार की चिंता दूर होती है व्यक्तित्व का विकास होता है एवं शक्तिशाली से शक्तिशाली शत्रु का भी भय दूर होता है शत्रुओं का नाश होता है।

द्वितीय अध्याय
इसके पाठ से कुल की वृद्धि होती है, शत्रु द्वारा घर एवं भूमि पर अधिकार करने एवं किसी भी प्रकार के वाद विवाद आदि में विजय प्राप्त होती है साथ ही धन की वृद्धि होती है।

तृतीय अध्याय
इस अध्याय से आपके पराक्रम व साहस की वृद्धि होती है, युद्ध एवं मुक़दमे में विजय, शत्रुओं से छुटकारा मिलता है।यात्रा आदि से भाग्योदय होता है।

चतुर्थ अध्याय
इस अध्याय के पाठ से धन, सुन्दर जीवन मकान,वाहन की प्राप्ति होती है। सामाजिक मान प्रतिष्ठा की वृद्धि होती है साथ ही माँ की भक्ति की प्राप्ति होती है।

पंचम अध्याय
इस अध्याय के पाठ से भक्ति मिलती है,बुद्धि तेज होती है प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त होती है,भय, बुरे स्वप्नों और भूत प्रेत बाधाओं का निराकरण होता है।

छठा अध्याय
इस अध्याय के पाठ से रोग,ऋण और शत्रुओं का नाश होता है।समस्त बाधाएं दूर होती है और समस्त मनवाँछित फलो की प्राप्ति होती है।

सातवाँ अध्याय
इस अध्याय के पाठ से परिवार व्यापार में में आने वाली दिक्कतों का समाधान प्राप्त होता है।ह्रदय की विशेष  कामना पूर्ति होती है।

आठवाँ अध्याय
इस अध्याय के पाठ से आयुष वृद्धि होती है अकाल मौत,दुर्घटना आदि से बचाव होता है,धन लाभ के साथ सोचा हुआ कार्य सम्पन्न होता है।

नौवां अध्याय
नवम अध्याय के पाठ से भाग्यपक्ष मजबूत होता है राज्य से कृपा प्राप्त होती है खोये हुए की तलाश में सफलता मिलती है, संपत्ति एवं धन का लाभ भी प्राप्त होता है।

दसवाँ अध्याय
इस अध्याय के पाठ से कर्मक्षेत्र में कद ऊँचा होता है मान सम्मान की वृद्धि होती है, किसी खोज में सफलता प्राप्त होती है साथ ही शक्ति और संतान का सुख भी प्राप्त होता है।

ग्यारहवाँ अध्याय
इस अध्याय के पाठ से आमदनी के स्त्रौत् में वृद्धि होती है,व्यापार में वृद्धि होती है। किसी भी प्रकार की चिंता से मुक्ति मिलती है।

बारहवाँ अध्याय
इस अध्याय के पाठ से विदेश से भाग्योदय और यात्रा आदि से लाभ होता है किसी भी प्रकार के दंड,रोगो से छुटकारा, निर्भयता की प्राप्ति होती है।

तेरहवां अध्याय
तेरहवें अध्याय के पाठ सभी पाठों का सार है इस अध्याय के पाठ से मां भक्त का कल्याण करती है जो भक्त के लिये अपेक्षित है वह वर प्रदान कर कृपा करती है।

विशेष
सप्तशती के पाठ के समय मानसिक पवित्रता संस्कृत का सही उचारण अति आवश्यक है गलत पाठ करने से अच्छा निर्मल भाव से ही मां का स्मरण करे,छोटी कन्याओं को भोजन करवाकर उन्हे प्रसन्न करे किसी निर्धन या गरीब कन्या की मदद करें ऐसा करने से मां भगवती आप पर प्रसन्न होगीं तथा कृपा करेगी।
*प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"*
9893280184,7000460931
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