कालपुरुष के दंडाधिकारी शनिदेव भगवान कृष्ण के परम भक्त हैं। भगवान कृष्ण का अवतार शनि ग्रह के कर्मयोग की महत्ता तथा निष्काम कर्मयोग द्वारा जीव को कर्मबंधन से मुक्ति के लिये गीता के उपदेश के लिये हुआ था। गीता का मुख्य उपदेश निष्काम कर्मयोग ही है। आकाश परिषद मॆ शनिदेव को कर्मफल का अधिस्ठाता बनाया गया है। जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष पूजा करके लोग शनि के प्रकोप से बच सकते हैं। इसके लिए उन्हे कुछ विशेष अनुष्ठान उपाय नहीं करने। यह उपाय वो अपने घर पर भी कर सकते हैं।
शनिदेव की कृष्णभक्ति कथा
भगवान श्रीकृष्ण बाल्यकाल से ही कृष्णभक्ति मॆ लीन रहते थे। विवाह के पश्चात भी उनका ध्यान कृष्णभक्ति मॆ लगा रहता था। एक बार मिलन की इच्छा से उनकी पत्नी जब शनिदेव के समीप आई तो वो ध्यानस्थ थे। काफी इंतजार के पश्चात भी जब शनिदेव ने आँख नही खोली तब उनकी पत्नी ने उन्हे श्राप दिया कि अब जहां भी आपकी दृष्टि पड़ेगी वहां विनाश तथा तबाही होगी। इसके शाप के शमन के लिए भगवान कृष्ण ने वरदान दिया की जो मेरी भक्ति करेगा तथा शनि अर्धांग्नि स्त्रोत का पाठ करेगा उसे शनि पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।
शनि के प्रकोप से बचने के लिए क्या करे
जिन्हे भी शनि ग्रह की साड़ेसाति महादशा ढैया अडैया या शनि चंद्र का विष योग हो वे जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण तथा शनिदेव का मध्यरात्रि मॆ पंचोपचार तथा नीले फूलों से पूजन करें। राधा जी का साथ मॆ विशेष पूजन करें। शनिदेव के साथ उनकी अर्धाग्नी का भी पूजन करेंं। शनि अर्धांग्नि स्त्रोत का पाठ करे उनकी अर्धाग्नी के नामों का पाठ करें। इससे आपको शनिदेवकृत कष्टों से छुटकारा मिलेगा साथ जी भगवान कृष्ण की कृपा भी मिलेगी। जिस तरह भगवान कृष्ण राधाजी के अधीन है उसी तरह शनिदेव के श्राप कष्ट तथा मुक्ति से शनिदेव की पत्नी का सम्बंध है।
शनि भार्या अर्धांगिनी स्त्रोत
ध्वजनी धामीनी चैव कंकालि कलहप्रिया।
कल्ही कन्टकि चापी अजा महिषि तुरंगमा ।
नामानी शनि भार्या नित्य जपंति य:पुमान।
तस्य दुःखा विनस्यंति सुख सौभाग्य विवर्धते।
इस स्त्रौत्र को पवित्र होकर पीपल के पास जपने से शनि कष्टों से मुक्ति मिलती है
कब करें
शनिदेव भगवान कृष्ण को अपना इष्ट मानते है तथा सदैव उनकी भक्ति मॆ ही डूबे रहते है इसीलिये राधाअष्टमी, जन्माष्टमी तथा किसी भी शनिवार को शनिदेव तथा भगवान कृष्ण की बताई गई उपरोक्त पूजा आप कर सकते है।
*प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"*
9893280184,7000460931